!!अनुज कुमार सिन्हा!!
लंबे समय तक यह विवाद बना रहा कि 18 अगस्त, 1945 को विमान दुर्घटना में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत हुई थी या नहीं. एक बड़ा वर्ग मानता रहा कि नेताजी की मौत ताइवान की उस विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी. कुछ लोग यह भी मानते रहे कि उत्तराखंड में कई सालों तक रहने वाले जिस स्वामी शारदानंद की मौत 14 अप्रैल, 1977 को हुई थी, दरअसल में वे नेताजी ही थे. हालांकि, सरकार इससे इनकार करती रही. नेताजी की मौत की जांच के लिए कई आयोग (मुखर्जी आयोग, खोसला आयोग आदि) बने.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर जनवरी, 2016 में नेताजी की मौत से जुड़ी कई गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक किया गया. जो गोपनीय दस्तावेज आम लोगों के लिए सार्वजनिक किये गये, उसमें ऐसा कुछ नहीं मिला, जिससे यह कहा जा सके कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी.
आइएनए में रहे नेताजी के सहयोगी (रांची निवासी) मेजर (डॉ) बीरेंद्र नाथ राय (बीरेन राय) यह मानते रहे कि नेताजी की मौत ताइवान की विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी. उनका मानना था कि विमान दुर्घटना के बाद नेताजी ने स्वामी शारदानंद बनकर भारत में अपना जीवन बिताया था. डॉ बीरेन राय ने जांच आयोग के समक्ष अपना दावा पेश करने का प्रयास किया था, लेकिन उनकी बात सुनी नहीं गयी. इसका उन्हें अफसोस था. 6 जनवरी, 1989 को डॉ बीरेन राय ने राज्यसभा के तत्कालीन सांसद और प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी को पत्र लिखा था.
इस पत्र में उन्होंने उल्लेख किया था कि समय-समय पर नेताजी के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए सीआईडी की टीम उनके पास आती रही है और पूछताछ करती रही. 29 जनवरी, 1986 को भी सीआइडी के लोग उनके पास (तीसरी बार) आये थे और नेताजी के बारे में पूछताछ की थी.
डॉ बीरेन राय के पास नेताजी के बारे में जो भी जानकारी थी, उसे उन्होंने सीआईडी को बता दिया था. जेठमलानी को लिखे पत्र में डॉ राय ने एक पंपलेट का जिक्र किया था, जो यूपी में छपा था और जिसमें स्वामी परमहंस देव की तसवीर छपी थी. डॉ राय ने नेताजी की मौत की जांच के लिए बने आयोगों को भी लगातार खुला पत्र लिखा था.
डॉ बीरेन राय हार माननेवाले नहीं थे. उन्होंने नेताजी के संबंध में एक किताब लिखी, लेकिन उसे प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ. इसका जिक्र डॉ राय ने 30 जनवरी, 1986 को प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर को लिखे पत्र में किया है. बीरेन राय की मौत के बाद उनकी पुस्तक सैनिक नेताजी : हिज डिस एपियरेंस एंड इवेंट देयर आफ्टर को एक स्मारिका-बुकलेट के तौर पर उनके पुत्र उत्पल कुमार राय ने प्रकाशित करायी. इसमें प्रो एसडी सिंह, डॉ एनएस सेन, प्रो अरुण ठाकुर, डॉ भास्कर गुप्ता, डॉ पीडी सिन्हा ने बड़ी भूमिका अदा की. इसमें नेताजी के बारे में कई जानकारियां हैं, डॉ बीरेन राय के अपने विचार हैं.
हालांकि, नेताजी के बारे में केंद्र सरकार ने जो गोपनीय दस्तावेज जारी किये हैं, उसमें ऐसा कुछ भी नहीं मिलता, जिससे यह साबित हो सके कि नेताजी विमान दुर्घटना के बाद भी जीवित थे. जापान सरकार ने भी नेताजी की मौत के बारे में जांच करायी थी, जिसे 60 साल तक सार्वजनिक नहीं किया गया था. दो साल पहले जापान सरकार ने दस्तावेज जारी कर दिया था.
इनवेस्टिगेशन ऑन द काउज ऑफ डेथ एंड अदर मैटर्स ऑफ द लेट सुभाष चंद्र बोस शीर्षक से यूके आधारित वेबसाइट बोसफाइल्स डॉट इनफो ने जांच रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसमें कहा गया था कि जनवरी, 1956 में ही जापान सरकार ने जांच पूरी कर ली थी और जांच रिपोर्ट जापान में भारतीय दूतावास को सौंप दी थी. किसी ने भी इस रिपोर्ट को उस समय सार्वजनिक नहीं किया था. वेबसाइट के अनुसार, सात पेज की जापानी भाषा में यह जांच रिपोर्ट है (अंगरेजी अनुवाद दस पेज में). इसमें यह लिखा है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान के ताइहोकू से उड़ान भरने के तुरंत बाद विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. घायल नेताजी को तीन बजे ताइपेई आर्मी हास्पीटल के नानमन ब्रांच में भरती कराया गया था, जहां सात बजे उनकी मौत हो गयी थी.
दस्तावेज ने मौत की पुष्टि की है, लेकिन इस पर एक राय नहीं बन पायी. जो भी हो, नेताजी के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए सीआईडी की टीम का तीन-तीन बार रांची आना और डॉ बीरेन राय से पूछताछ करना यह बताता है कि डॉ बीरेन राय नेताजी के कितने करीब थे.
कौन थे डॉ बीरेन राय
रांची के रहनेवाले डॉ बीरेंद्र नाथ राय (डॉ बीरेन राय के नाम से मशहूर), नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी थे और इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) में मेजर के पद पर थे. डॉ राय 1943 से 1945 तक आईएनए के मेडिकल विंग से जुड़े थे. उनका दर्जा मेजर का था. एक बार नेताजी ने उन्हें कहा था-भारत एक गरीब देश है. इसलिए ध्यान रखना कि कम से कम पैसे और कम से कम दवा में कैसे गरीबों का इलाज कर सके. डॉ बीरेन राय ने नेताजी के उसी सुझाव के तहत रांची में गरीबों का इलाज किया. मरीजों से वे सिर्फ एक रुपया फीस लेते थे. जो गरीब मरीज एक रुपया भी नहीं दे पाते थे, उनसे वे फीस की मांग नहीं करते थे. ऐसे मरीजों को वे मुफ्त में दवा भी देते थे. आईएनए से हटने के बाद उन्होंने पूरा जीवन रांची में गरीबों की सेवा में लगा दिया. वे इंडियन मेडिकल एसाेसिएशन के सक्रिय सदस्य थे और कभी भी कांफ्रेंस में जाने से चूकते नहीं थे.
डॉ बीरेन राय 1947 से रांची म्युनिसिपेलिटी के सदस्य थे. 1953-1967 तक वे वाइस चेयरमैन भी रहे. 1962 से 1966 तक वे बिहार विधानसभा के सदस्य भी रहे. डॉ राय बिना किसी भय के अपनी बात रखते थे. अंतिम समय तक वे मरीजों की सेवा करते रहे. अपनी सादगी, ईमानदार, सेवा भावना और देशभक्ति के कारण वे बहुत ही लोकप्रिय थे. 1989 में उनका निधन हो गया.