रांची : आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह झारखंड जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिख कर मांग की है कि असम में अंग्रेजों द्वारा लगभग 150 साल पूर्व वृहद झारखंड से जबरन चाय बागान क्षेत्रों में बसाये गये लगभग 50 लाख झारखंडी आदिवासी काे आंतरिक नागरिकता मिलनी चाहिए़
उन्होंने कहा है कि आज जब भारत सरकार पड़ोसी देशों की प्रताड़ित आबादी को देश की नागरिकता प्रदान कर न्याय देना चाहती है, तब सरकार से निवेदन है कि देश के अंदर असम में प्रताड़ित हो रहे झारखंडी आदिवासियों को अविलंब एसटी का दर्जा दिया जाये, अन्यथा भारत सरकार, असम सरकार और झारखंड सरकार मिल कर उन सभी झारखंडी आदिवासियों को झारखंड की उप नागरिकता प्रदान करे़ झारखंड वापस ला कर उनका पुनर्वास करे, अन्यथा वे असम ही नहीं, भारत की नागरिकता से भी वंचित हो सकते है़ं
असम शांति समझौता में झारखंडी मूल के आदिवासियों की गयी चिंता
उन्होंने कहा कि बोड़ो उग्रवादियों के साथ शांति समझौता के नाम पर 27 जनवरी को केंद्रीय गृहमंत्री, असम के मुख्यमंत्री और कई बोडो संगठनों ने शांति समझौता पर हस्ताक्षर किया, पर इसमें झारखंडी आदिवासी आबादी, जो पूरे असम में 50 लाख से अधिक है, के हितों की चर्चा और चिंता नहीं की गयी़ यह आबादी अंग्रेजों द्वारा वृहद झारखंड क्षेत्र से चाय की खेती के नाम पर लगभग 150 वर्ष पूर्व जबरन असम ले जायी गयी थी़
असम की सरकारी जमीन पर अब नहीं रह सकता कोई गैर आदिवासी
पत्र में उन्होंने कहा है कि 1996 से बोडो- संथाल जातीय दंगों का दौर प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से जारी है़ 24 नवंबर 2007 को लक्ष्मी उरांव को असम की राजधानी में सरेआम नंगा घुमाया कर गया. कोई जांच नतीजा नहीं आया़ वर्तमान की असम सरकार ने चुनाव पूर्व उन्हें एसटी का दर्जा देने की घोषणा कर ठग दिया़ असम हाइकोर्ट ने हाल में निर्देश जारी किया है कि आदिवासी क्षेत्रों में सरकारी जमीन पर कोई भी गैर आदिवासी सरकारी जमीन पर निवास नहीं कर सकता़ इसका सीधा असर असम के 50 लाख झारखंडी आदिवासियों पर पड़ने वाला है़
उन्होंने इस बारे में कई बार संसद में आवाज उठायी और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से नौ दिसंबर 2003 को असम के प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात कर उन झारखंडी आदिवासियों को एसटी बनाने और न्याय दिलाने की गुहार लगायी, पर कुछ भी सकारात्मक नहीं हुआ है़