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स्कूलों में बच्चों को दी जायेगी वित्तीय शिक्षा, बनी सहमति

बिपिन सिंह रांची : राज्य में वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के लिए जल्द ही स्कूलों के पाठ्यक्रम में इस तरह की शिक्षा को शामिल किया जायेगा. रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के क्षेत्रीय कार्यालय के साथ शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बैठक के बाद कुछ विषयों पर सैद्धांतिक तौर पर सहमति बन गयी है. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड […]

बिपिन सिंह
रांची : राज्य में वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के लिए जल्द ही स्कूलों के पाठ्यक्रम में इस तरह की शिक्षा को शामिल किया जायेगा. रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के क्षेत्रीय कार्यालय के साथ शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बैठक के बाद कुछ विषयों पर सैद्धांतिक तौर पर सहमति बन गयी है.
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसइ) द्वारा तैयार सिलेबस को छठी से लेकर 10 वीं कक्षा तक के बच्चों को सामान्य पारंपरिक और डिजिटल बैंकिंग में ग्राहकों के अधिकार, उनकी जिम्मेदारी के बारे में पढ़ाया जायेगा. राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की मानें तो अगले सत्र से इसे स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया जायेगा. जेएससीइआरटी के साथ विमर्श के बाद इस संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से एक पत्र झारखंड एजुकेशन प्रोजेक्ट काउंसिल काे भेजा गया है.
कई एजेंसियों के माध्यम से तैयार किया गया पाठ्यक्रम : वित्तीय साक्षरता से विद्यार्थी आगे चलकर बेहतर ग्राहक बन सकते हैं. यह पाठ्यक्रम सीबीएससी, आरबीआइ, आइआरडीए, बीमा नियामक इरडा, पीएफआरडीए और सेबी के साथ मिलकर तैयार किया गया है. इसके अलावा आरबीआइ ने छात्रों, किसानों, उद्यमियों, वरिष्ठ नागरिकों और स्वयं सहायता समूहों को वित्तीय शिक्षा देने पर फोकस किया है.
कोर्स को कक्षा छह से 10 तक की पुस्तकों में शामिल किया जायेगा
वित्तीय शिक्षा पाठ्यक्रम का प्रारूप तैयार होने के बाद अगर सरकार गंभीरता दिखाती है तो इसे जल्द ही कक्षा छह से 10 वीं तक की पाठ्य पुस्तकों में शामिल कर लिया जायेगा. इसमें पारंपरिक बचत और डिजिटल बैंकिंग में ग्राहकों के अधिकार, उनकी जिम्मेदारी तथा बैंकिंग की सामान्य जानकारी के साथ शेयर बाजार और निवेश के बारे में भी बताया जायेगा.
बच्चों को जागरूक करना मकसद
18 साल से ज्यादा की उम्र की देश की 76 प्रतिशत आबादी को वित्तीय मामलों के बारे में मूलभूत जानकारी तक नहीं है. वित्तीय संस्थाओं की मानें तो आम तौर पर युवाओं को पैसे के बारे में उसी तरह समझाया जाना चाहिए, जैसे वे इससे डील करते हैं. उन्हें पैरेंट्स से पैसे मिलते हैं और वे इसे खर्च कर देते हैं. पैरेंट्स को कार्ड स्वाइप करते देखना, एटीएम से पैसे निकालते देखना बच्चों को बहुत कुछ सिखा सकता है.

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