सलाम कीजिये शीला की हिम्मत को, जो दुष्कर्म की शिकार नाबालिग का परवरिश कर, न्याय दिलाने के लिए लड़ रहीं है़ं
विवेक चंद्र दामिनी फिल्म आपने देखी होगी़ दामिनी ने अपने परिवार, समाज से लड़कर अपने दुष्कर्मी देवर को सजा दिलायी थी़ उसकी साहस ऐसी तमाम महिलाओं को स्वाभिमान व सच्चाई की लड़ाई जारी रखने की ताकत देती है़ दामिनी के संघर्ष में फिल्म के हीरो सन्नी देवल ने साथ दिया था. बेलथरवा गांव की शीला […]
विवेक चंद्र
दामिनी फिल्म आपने देखी होगी़ दामिनी ने अपने परिवार, समाज से लड़कर अपने दुष्कर्मी देवर को सजा दिलायी थी़ उसकी साहस ऐसी तमाम महिलाओं को स्वाभिमान व सच्चाई की लड़ाई जारी रखने की ताकत देती है़ दामिनी के संघर्ष में फिल्म के हीरो सन्नी देवल ने साथ दिया था. बेलथरवा गांव की शीला असल जीवन में दामिनी का चरित्र जी रही है़ं वह दुष्कर्म की शिकार मासूम नाबालिग और उसकी बच्ची की परवरिश करते हुए उन्हें न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहीं है़ं अपने परिवार, अपने गांव से जूझती हुई संघर्ष की कहानी लिख रही है़ं लेकिन बेलथरवा की दामिनी को अब तक इस लडाई में साथ देनेवाले लोग नहीं िमले हैं. समाज में प्रतिष्ठा और स्वीकार्यता के लिए शीला अकेले ही लड़ रही है़
रांची : चान्हो प्रखंड के बलथरवा गांव की रहनेवाली शीला कुमारी को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सराहा है. अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री ने कहा है : धन्यवाद शीला जी, आप जैसे लोगों ने समाज को जीवंत कर रखा है.
पड़ोस में रहनेवाली अनाथ व मंदबुद्धि नाबालिग के साथ हुए दुष्कर्म के बाद शीला अपने ही परिवार के खिलाफ खड़ी हो गयी. दुष्कर्म के दोषी अपने सगे भतीजे समेत गांव के ही चार अन्य लड़कों को सजा दिलाने की मुहिम छेड़ दी. आर्थिक रूप से कमजोर होते हुए भी अपनी सारी पूंजी पीड़िता को न्याय दिलाने में लगा दी. मुहिम अब भी जारी है. पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए वह राष्ट्रपति से लेकर मानवाधिकार आयोग तक को चिट्ठी लिखती रहती हैं.
साधारण सी दिखनेवाली शीला में कमाल की हिम्मत है. अप्रैल 2016 में 14 वर्ष की मासूम के पेट में सात माह तक गर्भ पलने के बाद दुष्कर्म की जानकारी बलथरवा गांव को हुई. 23 व 24 अप्रैल को स्थानीय स्कूल मैदान में ग्रामीणों की बैठक हुई. तय हुआ कि पीड़िता को पांच दुष्कर्मियों में से चार मुआवजा देगा और एक अपने पास रखेगा. लेकिन, रात में ही मामला पलट गया. अगले दिन ग्रामीणों ने पीड़िता को मार कर दफनाने का फैसला कर लिया.
शीला ने विरोध किया. उसके परिवार ने उसे घर में बंद कर दिया. लेकिन, शीला किसी तरह निकल गयी. उसने पीड़िता को साथ लिया और रांची भाग आयी. शीला केवल मैट्रिक तक पढ़ी है. वह झारखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर में संविदा पर चतुर्थ श्रेणी की कर्मचारी है. उसने अपने आॅफिस में अधिकारियों को सारी बतायी. उनकी सलाह पर शीला महिला आयोग और चान्हो थाना गयी. वह मांडर की तत्कालीन विधायक गंगोत्री कुजूर के पास भी गयी. लेकिन, हर जगह से निराशा ही हाथ लगी. विधायक ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि वह कुछ नहीं कर सकती. महिला आयोग और चान्हो थाना में भी उसका केस नहीं लिया गया.
शीला ने हार नहीं मानी. उसने मुख्यमंत्री जनसंवाद में शिकायत दर्ज करायी. ग्रामीण एसपी के पास पहुंची. जनसंवाद के हस्तक्षेप पर चान्हो थाना में मामला दर्ज किया गया. फिर केस शुरू हुआ. केस दर्ज होने से शीला की हिम्मत बढ़ी. वह पीड़िता को लेकर फिर से अपने गांव पहुंच गयी. लेकिन, उसके अपने परिवार ने उसे अलग कर दिया था. बातचीत बंद कर दी थी.
गांव में ग्रामीणों के साथ उसके भाइयों और भाभियों ने भी उसके साथ गाली-गलौज और मारपीट की. शीला को फिर से पीड़िता को साथ लेकर रांची भागना पड़ा. गांव के लोगों ने शीला के खेत बर्बाद कर दिये. खेतों में लगायी गयी बादाम और भिंडी की फसल क्षतिग्रस्त कर दी. ग्रामीणों ने फिर से बैठक की. पीड़िता के जीजा पर लड़की को रखने का दबाव बनाया. उसके जीजा से जबरन सादा कागज पर अंगूठा लगवाया. उससे कहा कि केस वापस लेना होगा. शीला को भी मनाने का जिम्मा जीजा को ही सौंपा गया. लेकिन, शीला नहीं मानी. वह किसी से नहीं डरी.
आज भी शीला पीड़िता और उसकी बेटी के लिए लड़ रही है. बच्चा पालने में अक्षम पीड़िता और उसकी बेटी का लालन-पालन शीला ही कर रही है. अब भी शीला को समय-समय पर डराया-धमकाया जाता है. कई बार उसके घर दिया जाने वाला अखबार जला दिया जाता है. घर बाहर से बंद कर दिया जाता है. उसे समाज से अलग होने का अहसास दिलाया जाता है. लेकिन, शीला की हिम्मत नहीं टूटी है.
कोट
गलत का साथ मैं क्यों दूंगी
मुझे जो सही लगा वही किया. मेरे भाई, भतीजे और मेरे गांव के लोग गलत करेंगे, तो मैं उनका साथ क्यों दूंगी. मैं गांव भी नहीं छोडूंगी. यहीं रहूंगी. मैं एक निर्दोष और मासूम लड़की को न्याय दिलाने के लिए लड़ रही हूं. मां-बेटी को उनका हक मिलने तक लड़ती रहूंगी. शीला