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ग्रामीणों ने खोजा मशीनीकृत हेचरी का विकल्प

रांची: कई ग्रामीण ऐसे भी होते हैं, जो अपनी जिंदगी को बदलने के लिए अपने स्तर से कुछ न कुछ नया करने की कोशिश में लगे रहते हैं.प्रभात खबर डिजिटल प्रीमियम स्टोरीSpies In Mauryan Dynasty : मौर्य काल से ही चल रही है ‘रेकी’ की परंपरा, आज हो तो देश में मच जाता है बवालRajiv […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:47 PM

रांची: कई ग्रामीण ऐसे भी होते हैं, जो अपनी जिंदगी को बदलने के लिए अपने स्तर से कुछ न कुछ नया करने की कोशिश में लगे रहते हैं.

इसी क्रम में कांची व टाटी के ग्रामीणों ने हेचरी के क्षेत्र में नयी खोज की है. उनके इन प्रयासों से बत्तख पालन को बढ़ावा मिलेगा. गैर सरकारी संस्था केजीवीके ने आजीविका संबंधी क्रियाकलापों के तहत सैकड़ों ग्रामीणों की आय बढ़ाने के लिए बत्तखपालन पर जोर दिया है.

इस कार्यक्रम के तहत इन दोनों गांवों समेत सैकड़ों गांवों में बत्तख की नयी उन्नत नस्ल खाखी कैंपबेल का वितरण किया जा रहा है. बत्तख की इस नस्ल को कम पानी में आसानी से पाला जा सकता है. यह नस्ल मांस व अंडा दोनों की दृष्टिकोण से काफी फायदेमंद साबित हुई है.

परंतु इस नस्ल के साथ एक कमी यह रही है कि इस नस्ल की मादा बत्तख अंडे तो देती हैं, परंतु अपने अंडे को सेती नही है. इसके अंडे से चूजा तैयार करने का कार्य उन्नत मशीनकृत हेचरी में ही संभव है. कांची व सिलवे के ग्रामीणों ने इस धारणा को बदलते हुए खाखी कैंपबेल के अंडे से चूजे तैयार करने का काम घरेलू स्तर पर शुरू किया है. आनेवाले समय में बत्तखपालन के क्षेत्र में यह मील का पत्थर साबित होगा.

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