बैक्टीरिया की वजह से लगती है भूख

एजेंसियां, न्यूयॉर्कपेट में भूख के मारे चूहे कूदने और चूहों के कबड्डी खेलने की कहावतें तो आम हैं, लेकिन दरअसल में पेट में चूहे नहीं बल्कि बैक्टीरिया कबड्डी करते हैं.आपके मन में मोटापा कम करने की इच्छा है, लेकिन आप खुद को चर्बी और वसायुक्त भोजन खाने से रोक नहीं पाते? वास्तव में यह आपकी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 17, 2014 4:00 PM

एजेंसियां, न्यूयॉर्कपेट में भूख के मारे चूहे कूदने और चूहों के कबड्डी खेलने की कहावतें तो आम हैं, लेकिन दरअसल में पेट में चूहे नहीं बल्कि बैक्टीरिया कबड्डी करते हैं.आपके मन में मोटापा कम करने की इच्छा है, लेकिन आप खुद को चर्बी और वसायुक्त भोजन खाने से रोक नहीं पाते? वास्तव में यह आपकी जुबान की नहीं बल्कि आपके पेट में पाये जाने वाले बैक्टीरिया के कारण होता है. एक ताजा अध्ययन में सामने आया है कि हमारे पेट में पाये जाने वाले बैक्टीरिया हमारे दिमाग को नियंत्रित करते हैं और कुछ विशेष खाद्य पदाथार्ें के प्रति हमारी रु चि जगाते हैं. विज्ञान पत्रिका ‘बायोएसेज’ के ताजा अंक में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने कहा है कि इनसान के पेट में पाये जाने वाले ‘माइक्र ोब्स’ मनुष्यों की खाने से संबंधित रु चियों को प्रभावित करते हैं. वास्तव में ये माइक्र ोब्स मनुष्यों को ऐसी चीजें खाने के लिए प्रेरित करते हैं जिनसे उन्हें पनपने में ज्यादा मदद मिले.खाने की आदतें प्रभावितअमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्थित कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के कालार्े मैले ने अपने शोधपत्र में कहा है, हमारी आंतों में पाये जाने वाले बैक्टीरिया हमारी खाने की आदतों को प्रभावित करते हैं. अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, मानव की आंत में पाये जाने वाले माइक्र ोबियम में मानव की भोजन संबंधी रु चियों से जुड़े जीवाणु मौजूद रहते हैं जो कुछ विशेष पदाथार्ें का स्राव कर भोजन को लेकर हमारे निर्णय को प्रभावित करने वाले संकेत प्रेषित करते हैं.ऐसे कर सकते हैं इनमें बदलावचूंकि हमारी आंत हमारे प्रतिरोधक तंत्र, अंतस्रावी तंत्र और नर्व सिस्टम से भी जुड़ी होती है, इसलिए आंत में इन जीवाणुओं द्वारा छोड़े गये संकेत हमारी शारीरिक और व्यावहारिक प्रतिक्रि याओं को भी प्रभावित करते हैं. अनुसंधानकर्ताओं ने हालांकि यह भी कहा है कि इन जीवाणुओं द्वारा सरलता से पचाये जा सकने वाले पदाथार्ें को न खाकर इन जीवाणुओं की अनुकूलता को प्रभावित किया जा सकता है. ऐसा करके हम 24 घंटे में माइक्र ोबियम में बदलाव कर सकते हैं.

Next Article

Exit mobile version