रांची: हाइकोर्ट के कोर्ट नंबर एक में गुरुवार को भी कई प्रार्थियों ने अपने मामले में स्वयं (इन पर्सन) पक्ष रखा. कोर्ट ने दिन भर विभिन्न मामलों की सुनवाई की तथा आदेश पारित किया.
बीएसएफ के कांस्टेबल (बम-गोली से हुए नि:शक्त) को सेवा मुक्त करने के मामले में एकल पीठ के आदेश को चुनौती देनेवाली दायर अपील याचिका पर सुनवाई हुई. एक्टिंग चीफ जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए एकल पीठ के आदेश को निरस्त कर दिया. खंडपीठ ने प्रार्थी को सेवा में पुनर्बहाल करने का आदेश पारित किया.
साथ ही समान सेवा शर्त, समान वेतनमान व पुनरीक्षित वेतनमान का लाभ देने का निर्देश दिया. बकाया अंतर वेतन की गणना के लिए बीएसएफ को 12 सप्ताह का समय दिया. इसके बाद चार सप्ताह के अंदर पूर्ण भुगतान करने को कहा गया. खंडपीठ में लगभग साढ़े पांच घंटे तक लगातार सुनवाई हुई. खंडपीठ ने अच्छा बहस करने के लिए जवान की प्रशंसा भी की.
अधिवक्ताओं के बहिष्कार के बावजूद अपील पर सुनवाई के दौरान व्हील चेयर पर लाये गये जम्मू व कश्मीर में बम-गोली लगने और स्टील के शरीर में धंसने के कारण अपना दोनों पैर गंवा चुके बीएसएफ के एक जवान प्रार्थी शैलेंद्र सिंह ने स्वयं पक्ष रखा. उन्होंने कोर्ट के समक्ष दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए पूरी आपबीती सुनायी. न्याय करने का आग्रह किया.
कोर्ट के अंदर पहली बार पहुंचा व्हील चेयर से प्रार्थी
झारखंड हाइकोर्ट के इतिहास में पहली कोई प्रार्थी व्हील चेयर से प्रथम तल्ले पर स्थित कोर्ट रूम में पैरवी करने के लिए पहुंचा. बिना किसी ङिाझक के तथा शालीनता से प्रार्थी ने स्वयं अपना पक्ष रखा. लगभग साढ़े पांच घंटे तक न्यायाधीशों के सवालों का जवाब भी देता रहा. सुनवाई के बाद जवान शैलेंद्र सिंह और उनकी बेटी निक्की ने खुशी के आंसू के साथ इस फैसले को न्याय की जीत बताया.