वेस्टर्न म्यूजिक का मैजिक
लाइफ रिपोर्टर @ रांचीये हैं राजधानी के यूथ. गिटार पर अंगुलियों का जादू दिखा रहे हैं. रांची के युवा वेस्टर्न म्यूजिक को लेकर ज्यादा के्रजी हैं. वह खुद को सिर्फ पढ़ाई तक ही बांध कर नहीं रख रहे हैं. युवा किताबों में ही उलझा नहीं रहना चाहता है. अब उसके शौक सामने आने लगे हैं. […]
लाइफ रिपोर्टर @ रांचीये हैं राजधानी के यूथ. गिटार पर अंगुलियों का जादू दिखा रहे हैं. रांची के युवा वेस्टर्न म्यूजिक को लेकर ज्यादा के्रजी हैं. वह खुद को सिर्फ पढ़ाई तक ही बांध कर नहीं रख रहे हैं. युवा किताबों में ही उलझा नहीं रहना चाहता है. अब उसके शौक सामने आने लगे हैं. उनके शौक को उनके अभिभावकों का सपोर्ट भी मिलता है. कई क्षेत्र हैं, जहां हुनर दिखा रहे हैं. छिपी प्रतिभा को निखार रहे हैं. इसके लिए वे अपना अतिरिक्त समय भी देने को तैयार हैं. रांची के यूथ वेस्टर्न म्यूजिक के क्रेजी हैं. म्यूजिकल वाद्ययंत्रों को बजाना सीखना एक ऐसा क्षेत्र है, जिसने युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया है. अतिरिक्त समय देने से भी गुरेज नहींम्यूजिकल वाद्ययंत्रों सीखने और बजाने पर युवा अतिरिक्त समय भी देने से गुरेज नहीं करते हैं. वे अपनी पढ़ाई के साथ-साथ इन वाद्ययंत्रों पर काफी समय दे रहे हैं. कई युवा ऐसे भी हैं जो वेस्टर्न म्यूजिक को अपना कैरियर बनाना चाह रहे हैं. कुछ शौकिया तौर पर भी सीखते हैं. शहर में कई ऐसे संस्थान हैं जहां इसकी पढ़ाई हो रही है. वेस्टर्न यंत्रों पर ज्यादा जोरयुवाओं में ऐसे यंत्रों को सीखने को लेकर बदलाव देखने को मिल रहे हैं. अब युवावर्ग परंपरागत भारतीय वाद्ययंत्रों के मुकाबले वेस्टर्न म्यूजिक को सीखने पर ज्यादा ध्यान देते हैं. रवींद्रनाथ संगीत प्रशिक्षण विद्यालय के संतोष कुमार सिंह कहते हैं कि हमारे यहां वैसे, तो दोनों ही तरह के वाद्ययंत्र की ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन औसतन परंपरागत भारतीय वाद्ययंत्रों को सीखने वाले छात्रों की संख्या वेस्टर्न म्यूजिक यंत्रों को सीखने वाले छात्रों के मुकाबले 40 फीसदी ही होती है. वहीं पाजेब डांस अकादमी के निदेशक दीपक सिन्हा कहते हैं कि वेस्टर्न म्यूजिकल यंत्रों से आज के युवा खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, यही कारण है कि वे इस ओर परंपरागत वाद्ययंत्रों को सीखने के मुकाबले ज्यादा जोर देते हैं. लेकिन हम ऐसा पूरी तरह नहीं कह सकते हैं कि वे परंपरागत वाद्ययंत्रों को नहीं सीखना चाहते हैं. इन वेस्टर्न इक्विपमेंट्स पर देते हैं जोरपाजेब के निदेशक दीपक सिन्हा बताते हैं कि लोग गिटार, माउथ आर्गन, की-बोर्ड जैसे वेस्टर्न इक्विपमेंट्स को सीखना चाहते हैं. अब तो ऐसा है कि इन चीजों को बजाना सामने वाले को प्रभावित करने का बेहतर माध्यम है.हारमोनियम नहीं गिटार पर है जोरयुवाओं में अन्य वेस्टर्न इक्विपमेंट्स में गिटार पहली पसंद होती है. कॉलेज गोइंग छात्र भी इस ओर आकर्षित होते हैं, लेकिन टीन एजर्स में गिटार ज्यादा पापुलर है. वेस्टर्न इक्विपमेंट्स में गिटार ही एक ऐसा इक्विपमेंट है, जिसके प्रति लड़कियां भी आकर्षित होती हैं. ये युवा स्कूल-कॉलेजों कें विभिन्न कार्यक्रमों में अपने इस हुनर का प्रदर्शन भी करते हैं. यदि परंपरागत भारतीय इक्विपमेंट्स की बात करें, तो प्रशिक्षक मानते हैं कि युवाओं में इसका क्रेज कम है. आज के समय में हारमोनियम परंपरागत यंत्रों में एक है, जिसे लोग सीख रहे हैं. पढ़ाई की व्यवस्थाशहर के प्रतिष्ठित संस्थान द्वारा विधिवत कोर्स के रूप में इसकी पढ़ाई करायी जाती है. शौकिया तौर पर छह से साल भर में कुछ यंत्रों को सीखा जा सकता है, लेकिन कई ऐसे यंत्र हैं जिन्हें लंबे समय तक सीखने के बाद ही उसपर महारत हासिल की जा सकती है. वायलिन ऐसा इक्विपमेंट्स है जिसपर महारत हासिल करने में पांच साल तक का समय लगता है. पांच सालों तक निरंतर अभ्यास के बाद बतौर कैरियर इसे ले सकते हैं. ऐसे में कैरियर विकल्प के रूप में संभावनाएं बढ़ जाती हैं. क्या कहते हैं लोग कोकर के कुणाल प्रसाद का कहना है कि यह कोई जरूरी नहीं है कि बच्चे किस तरह के इक्विपमेंट्स सीख रहे हैं. यह अच्छी बात है कि वे अपने हुनर को पॉलिस कर रहे हैं. हां, हालांकि वे परंपरागत इक्विपमेंट्स के मुकाबले वेस्टर्न पर ज्यादा जोर देते हैं. चर्च रोड की रोजी का कहना है कि वेस्टर्न में गिटार ही ऐसा इक्विपमेंट्स है, जो सबसे ज्यादा आकर्षित करता है. इसमें एक रॉकिंग सी फिलिंग आती है. न्यू मोरहाबादी के प्रशांत भी गिटार में खुद को रॉक स्टार वाली फिलिंग पाते हैं.