किस नियम के तहत शिडय़ूल एरिया का निर्धारण हुआ
रांची: हाइकोर्ट में गुरुवार को राज्य में लागू शिडय़ूल एरिया को चुनौती देनेवाली विभिन्न जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई. एक्टिंग चीफ जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर राज्य सरकार को फटकार लगायी. खंडपीठ ने प्रार्थी का पक्ष सुनने के बाद कहा […]
रांची: हाइकोर्ट में गुरुवार को राज्य में लागू शिडय़ूल एरिया को चुनौती देनेवाली विभिन्न जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई. एक्टिंग चीफ जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर राज्य सरकार को फटकार लगायी.
खंडपीठ ने प्रार्थी का पक्ष सुनने के बाद कहा कि किस नियम व प्रक्रिया के तहत शिड्यूल एरिया का निर्धारण किया गया. केंद्र के नियमों का पालन किया गया या नहीं. राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
खंडपीठ ने प्रार्थी की बातों को दुहराते हुए तथा पूर्वी सिंहभूम जिला का उदाहरण देते हुए पूछा कि शिड्यूल एरिया के निर्धारण में केंद्र सरकार के नियमों का पालन नहीं किया गया, जिस कारण लगभग 72.16 प्रतिशत आबादी अपने राजनीतिक अधिकार से वंचित है. बिना प्रक्रियाओं को अपनाये वर्ष 1977 में जारी केंद्र सरकार के आदेश के अनुसार राज्य के 12 पूर्व व तीन जिलों को आंशिक रूप से शिडय़ूल एरिया घोषित कर दिया गया, जिस पर प्रार्थी ने गंभीर आपत्ति दर्ज करायी है. केंद्र सरकार ने भी अपने जवाब में राज्य सरकार ने 1977 के आधार पर ही वर्ष 2007 में शिडय़ूल एरिया घोषित करने का प्रस्ताव दिया था, उसे स्वीकार किया था. हालांकि इस संबंध में बनी विशेषज्ञ कमेटी ने 1977 के नियमों में संशोधन का सुझाव दिया था. वैसी परिस्थिति में लोगों के राजनीतिक अधिकारों का संरक्षण कैसे होगा. यह आम नागरिक के मौलिक अधिकारों के साथ साथ संविधान की प्रस्तावना के उस भाग का भी उल्लंघन है, जिसमें अधिकारों की समानता दी गयी है.
खंडपीठ ने पूर्वी सिंहभूम का उदाहरण देते हुए कहा कि यहां सिर्फ 27.84 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी है. इसके बावजूद इसे शिड्यूल एरिया घोषित कर दिया गया, जबकि 50 प्रतिशत या उससे अधिक एसटी आबादी रहने पर शिडय़ूल एरिया घोषित करने का प्रावधान है. प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार, सरधू महतो व अन्य ने पैरवी की. मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर को होगी. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी मो आशिक अहमद, उपेंद्र नाथ महतो व कर्नल लाल ज्योतिंद्र देव व अन्य की ओर से जनहित याचिका दायर की गयी है. कहा गया कि झारखंड में शिड्यूल एरिया का निर्धारण वर्ष 2007 में गलत तरीके से किया गया. केंद्र सरकार ने राज्य के 15 जिलों को शिड्यूल एरिया घोषित किया है, जबकि कई जिले ऐसे हैं, जहां एसटी की आबादी 50 फीसदी से काफी कम है. लगभग दो तिहाई आबादी अपने राजनीतिक अधिकार से वंचित हो गयी है. वर्ष 2001 की जनगणना को आधार बनाया जाना चाहिए था, लेकिन सरकार ने इसकी अनदेखी कर 1977 में जारी नियमों को आधार बना कर शिडय़ूल एरिया तय कर दिया.