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किसी भी वचन को मुकाम नहीं तक नहीं पहुंचा सकी सरकार

सात शर्तों के लिए सात कदम ही चल सकी सरकारसात सूत्री मांगों को लेकर अर्जुन मुंडा सरकार से झामुमो ने समर्थन वापस लिया थावरीय संवाददाता, रांची झामुमो के सात वचन यानी सात शर्तें, जिसे लेकर तत्कालीन अर्जुन मुंडा की सरकार से झामुमो ने समर्थन वापस लिया था. इन शर्तों को पूरा करने में हेमंत सोरेन […]

सात शर्तों के लिए सात कदम ही चल सकी सरकारसात सूत्री मांगों को लेकर अर्जुन मुंडा सरकार से झामुमो ने समर्थन वापस लिया थावरीय संवाददाता, रांची झामुमो के सात वचन यानी सात शर्तें, जिसे लेकर तत्कालीन अर्जुन मुंडा की सरकार से झामुमो ने समर्थन वापस लिया था. इन शर्तों को पूरा करने में हेमंत सोरेन सरकार सात कदम ही चल सकी है. स्थिति यह है कि सात शर्तों में छह शर्तें ऐसी हैं, जिसके लिए प्रयास हुए हैं पर मुकाम तक नहीं पहुंच सका. सातवीं शर्त 28-28 माह की सरकार की थी, जिसे तब भाजपा ने ही मानने से इनकार दिया था. इसके बाद झामुमो ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा. फिर कांग्रेस और राजद ने सरकार को समर्थन दिया. इसके बाद 13 जुलाई 2013 को हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी. सरकार बने 449 दिन हो चुके हैं. पर उन सात शर्तों में छह शर्त का सवाल आज भी मौजूं है. जिन छह मुख्य मुद्दों को लेकर झामुमो ने सरकार बनायी थी, उन सबको पूरा करने के लिए सरकार ने पहल तो की है, पर कोई भी काम अबतक अंजाम तक नहीं पहुंच सका है. झामुमो की शर्तें और उसकी स्थिति1. सीएनटी एक्ट तथा एसपीटी एक्ट को अक्षरश: एवं कठोरता के साथ सुनिश्चित करें. असंवैधानिक हस्तांतरित जमीन अविलंब वापसी की कार्य योजना घोषित करें.स्थिति : टीएसी की बैठक में थाने की सीमा हटाने की सिफारिश की गयी है. हालांकि इसे लागू करने में अभी काफी लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा. जमीन वापसी के कुछ मामलों का निबटारा किया गया है. 2. 1932 ई. राजस्व खतियान को प्राथमिक आधार वर्ष मानकर स्थानीयता परिभाषित करें.स्थिति : सरकार ने मंत्री राजेंद्र सिंह की अध्यक्षता में स्थानीयता को परिभाषित करने के लिए कमेटी बनायी. कमेटी ने अपनी अंतिम रिपोर्ट सरकार को दे दी है. जिसमें मूलवासी और झारखंडवासी के अलग-अलग प्रावधान किये गये हैं. सरकार ने इस पर जनता से राय लेने की बात कही थी. फिलहाल यह लंबित है. हालांकि अर्जुन मुंडा के शासनकाल में हेमंत सोरेन की ही अध्यक्षता में कमेटी बनी थी. चार बैठकें भी हुई थी. पर इस पर कोई निर्णय उस सरकार में भी नहीं हुआ था. 3. समुचित पुनर्वास एवं किसी भी प्रकार के विस्थापन की आशंका समूल समाप्त करें एवं राज्य भर के विस्थापितों के लिए अविलंब पुनर्वास, रोजगार उपलब्धता एवं कल्याण की योजना बने. स्थिति : इस मामले में स्थिति यथावत है. न तो कोई नयी योजना बनी है और न ही पुरानी नीति में किसी प्रकार का संशोधन किया गया है. 4. राज्य भर के अल्पसंख्यक विद्यालयों विशेषकर 592 मदरसों को अनुदान दिया जाय. स्थिति : संताल-परगना में मदरसों को मान्यता देने के लिए जमीन की शर्त में बदलाव किया गया. इससे मदरसों को मान्यता देने में आसानी हुई. पर अबतक 592 मदरसों में से 76 मदरसों की ही अनुशंसा मान्यता के लिए हुई है. जिन मदरसों की अनुशंसा हुई है उन्हें अनुदान देने की प्रक्रिया चल रही है. अन्य मदरसों की जांच प्रक्रिया चल रही है. 5. नौ क्षेत्ऱीय भाषा को द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता दी गयी, पर इसका पूर्ण रूप से पालन सुनिश्चित हो. स्थिति : 25 नवंबर 2011 को तत्कालीन सरकार ने 12 स्थानीय भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया है. पूर्ण रूप से पालन अभी प्रक्रियाधीन है.6. झारखंड निर्माण आंदोलनकारियों को सम्मान, मानदेय व नौकरी तथा आश्रितों को नौकरी एवं आवास दिया जाय. स्थिति : आंदोलनकारी चिह्नितीकरण आयोग ने अपनी अनुशंसा गृह विभाग को भेज दी है.

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