।। आनंद मोहन/सुनील चौधरी ।।
रांची : हेमंत सोरेन सरकार का गठन घटक दलों ने कुछ एजेंडों के साथ किया था, जिसमें न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) तय किये गये थे. कांग्रेस, झामुमो, राजद व अन्य छोटे दलों ने सरकार के कामकाज का खाका बनाया था. घटक दलों का वादा था कि सरकार अपने कार्यकाल में इन कामों को पूरा करेगी. सबकी सामूहिक जिम्मेवारी तय हुई थी. सरकार अपने तय एजेंडे पर खरा नहीं उतर सकी. कई काम हुए, तो कुछ पाइप लाइन में भी नहीं आये. ऐसी कई महत्वपूर्ण घोषणाओं पर सरकार अमल नहीं कर सकी.
सरकार ने 13 अलग-अलग क्षेत्रों में 120 योजनाएं और कार्यक्रम तय किये थे. इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, उद्योग, बिजली, कृषि, सिंचाई, खनन, महिला एवं बाल विकास, शासन में पारदर्शिता जैसे क्षेत्रों में बदलाव का भरोसा दिलाया था. इन सभी एजेंडा पर सारे घटक दलों को मिल कर काम करना था. सरकार में शामिल कांग्रेस और राजद की भी जिम्मेवारी थी.
हालांकि सरकार ने कम समय में ही आंदोलनकारियों को नौकरी देने, मदरसों को अनुदान देने की प्रक्रिया आरंभ करने, डीबीटी का लाभ देने, महिलाओं को नौकरी में प्राथमिकता देने जैसे कई महत्वपूर्ण काम किये हैं. स्थानीय नीति के लिए कमेटी बनी, पर कोई अंजाम तक नहीं पहुंच सका है. बिजली के क्षेत्र में बिजली बोर्ड का बंटवारा कर चार कंपनियां बना दी गयी. वृद्धा, विधवा व विकलांग पेंशन का वितरण हो रहा है. कई योजनाओं में सरकार को खासी परेशानी का सामना भी करना पड़ा. भूमि विवाद के कारण रांची कैपिटल सिटी व नये विधानसभा का निर्माण लंबित है.