यह स्पष्ट हो कि हमारी चाह क्या है

अमरत्व की भावना ही मृत्य के भय का कारणशंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज का प्रवचन, कहा फोटो—कौशिकसंवाददाता, रांचीसृष्टि का वरण करने से जीवन कृतार्थ नहीं होता है. यह स्पष्ट होना चाहिए कि जीवन मिलने के बाद हमारी चाह क्या है. मनुष्य हमेशा अमरत्व की चाह करता है, इसलिए उसे मृत्यु का भय सताता रहता है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 17, 2014 11:02 PM

अमरत्व की भावना ही मृत्य के भय का कारणशंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज का प्रवचन, कहा फोटो—कौशिकसंवाददाता, रांचीसृष्टि का वरण करने से जीवन कृतार्थ नहीं होता है. यह स्पष्ट होना चाहिए कि जीवन मिलने के बाद हमारी चाह क्या है. मनुष्य हमेशा अमरत्व की चाह करता है, इसलिए उसे मृत्यु का भय सताता रहता है. भागवत गीता के पांचवें अध्याय में इसकी विस्तार से चर्चा हुई है. उक्त बातें शुक्रवार को हरमू स्थित पटेल पार्क में शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कही. उन्होंने बताया कि मनुष्य की चाह हमेशा मोक्ष की होती है. मोक्ष को मुक्ति का रूप माना गया है. मानव जीवन के महत्व के बारे में किसी को ज्ञान नहीं है, इसलिए वह चारों ओर भटकता रहता है. जीवन का एक मात्र उद्देश्य उसे सार्थक बनाने का होना चाहिए. सामान्य विधि में भोग ही अर्थ है. मोह एवं प्रमोद ही काम है. अर्थ की परिभाषा परमात्मा है. प्रवचन से पूर्व न्यूरो सर्जन डॉ एचपी नारायण ने स्वामी निश्चलानंद जी के बारे में विस्तार से जानकारी दी. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी……प्रवचन से पूर्व भजन के माध्यम से लोगों को अध्यात्म की जानकारी दी गयी. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी…, कखन हरब दुख मोर हे भोले नाथ एवं गोविंद जय-जय गोपाल जय-जय, राधा रमण हरि गोविंद जय-जय जैसे भजन प्रस्तुत किये गये. भजन के माध्यम से लोगों को यह बताया गया कि जीवन को सार्थक बनाना है, तो भगवान की शरण में जाये.क्या कहते हैं भक्तमहाराज से पहली बार आठ साल पहले प्रवचन स्थल पर मुलाकात हुई. मैं तभी से उनका भक्त हूं. महाराज की हमेशा यही कामना रहती है कि समाज शोषण व पक्षपात से मुक्त हो. यह कार्य सनातन धर्म से ही हो सकता है. वह बताते हैं कि कैसे जीवन में मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है.डॉ एचपी नारायणमहाराज का प्रवचन आत्मसात करने योग्य होता है. वह हमेशा सात्विक जीवन के बारे में बताते हैं. उनका जब भी रांची में प्रवचन होता है, हम सुनने के लिए अवश्य जाते हैं. मैं चार साल पहले उनके सानिध्य में आया हूं.ब्रज मोहन मंडल

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