Vijay diwas 16 december, India pakistan war 1971 : अद्भुत, अविस्मरणीय, अतुलनीय महा ‘विजय’, भारत की ऐसी जीत जिसकी गाथा यहां है दर्ज
Vijay diwas 16 december, India pakistan war 1971 : भारत में 16 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ और बांग्लादेश में ‘बिजॉय दिबोस’ मनाया जाता है. यह सिर्फ एक युद्ध नहीं है, बल्कि दुनिया में भारतीय सेना के शौर्य का जीता-जागता प्रमाण है. 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की सेना जब हारने लगी, उसकी मदद के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, इटली व अन्य देशों की नेवी का पूरा जत्था आ गया था. ऐसे मुश्किल हालात में भी भारतीय सैनिक डटे रहे.
Vijay diwas 16 december, India pakistan war 1971 : नीरज अमिताभ- भारत में 16 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ और बांग्लादेश में ‘बिजॉय दिबोस’ मनाया जाता है. यह सिर्फ एक युद्ध नहीं है, बल्कि दुनिया में भारतीय सेना के शौर्य का जीता-जागता प्रमाण है. 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की सेना जब हारने लगी, उसकी मदद के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, इटली व अन्य देशों की नेवी का पूरा जत्था आ गया था. ऐसे मुश्किल हालात में भी भारतीय सैनिक डटे रहे. वहीं, युद्ध में भारत के साथ सच्ची दोस्ती निभाते हुए अन्य देशों की सेना के सामने रूस की नेवी ढाल बन कर डट गयी. नतीजतन, भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में करारी शिकस्त दी और 93 हजार सैनिकों के साथ पाक जनरल एए खान नियाजी को आत्मसमर्पण करना पड़ा. इस आत्मसमर्पण की गाथा गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉड्र्स में भी दर्ज है.
रामगढ़ सैन्य छावनी में रखे गये थे ढाका में सरेंडर करनेवाले 10,000 पाक सैनिक
1971 में रामगढ़ में सैन्य छावनी थी. वहां मौजूद सैनिक भारत-पाक युद्ध में भाग लेने गये थे. युद्ध जीतने के बाद रामगढ़ में विजय जुलूस निकाला गया था. युद्ध में भाग लेनेवालों जांबाजों को खुली जीप पर शहर में घुमाया गया था. उस जुलूस में पूरे शहर के लोग शामिल हुए थे. रामगढ़ सैन्य छावनी बाद में सेना के दो रेजिमेंट प्रशिक्षण केंद्र में तब्दील हो गया. 16 दिसंबर 1971 को ढाका में सरेंडर करनेवाले 93 हजार पाक सैनिकों में से लगभग 10 हजार को रामगढ़ सैन्य छावनी में युद्ध बंदी बना कर रखा गया था. रामगढ़ सैन्य छावनी के उत्तरी भाग में दामोदर नद के किनारे तक कंटीली तारों की घेराबंदी कर पाकिस्तानी युद्ध बंदियों की निगरानी की जाती थी. इनके चारों तरफ वाॅच टावर बनाया गया था.
जनरल नियाजी के भतीजे को मारी गोली
कंटीली तारों के बाहर भारतीय सैन्य रक्षकों की गश्ती के लिए जगह थी. कई युद्ध बंदियों ने भागने की भी कोशिश की थी. उनलोगों को शहर में लोगों के सहयोग से पकड़ा गया था. उस समय की एक घटना काफी चर्चा में आयी थी. पाकिस्तानी सेना का एक अधिकारी सुरंग बना कर भागने की कोशिश में था, लेकिन वाॅच टावर के रक्षक को शक हो गया. जैसे ही पाकिस्तानी अधिकारी सुरंग से बाहर निकला, उसे भारतीय रक्षक ने गोली मार दी. इसके बाद यह बात सामने आयी कि उक्त अधिकारी पाकिस्तान के सरेंडर किये गये मेजर जनरल नियाजी का भतीजा था. बाद में समझौता होने पर युद्ध बंदियों को वापस पाकिस्तान भेज दिया गया था.
रांची में रखा गया था 1000 युद्ध बंदियों को
16 दिसंबर 1971 को सरेंडर किये पाक सैनिकों में से 1000 युद्ध बंदियों को रांची के विभिन्न आर्मी कैंप की जेलों में रखा गया था. वहीं, घायल 100 युद्ध बंदियों को नामकुम आर्मी अस्पताल में भर्ती किया गया था. उन लोगों ने भागने के लिए सुरंग बना ली थी. कुछ युद्ध बंदी सुरंग के रास्ते भागने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन भारतीय सेना के जवानों ने उन्हें मार गिराया.
1971 के भारत-पाक युद्ध के महत्वपूर्ण तथ्य
16 दिसंबर 1971 : ढाका में जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी के नेतृत्व में लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने मित्र देशों की सेना के सामने आत्मसमर्पण किया. पत्र पर हस्ताक्षर करते जनरल नियाजी.
पूर्वी पाकिस्तान द्वारा आधिकारिक तौर पर पश्चिमी पाकिस्तान से अलगाव के लिए बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम ने 26 मार्च 1971 को संघर्ष शुरू कर दिया. भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे पूर्ण समर्थन दिया.
मीडिया ने पाकिस्तानी सेना के हाथों बंगालियों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ व्यापक नरसंहार की सूचना दी थी, जिसने लगभग 10 मिलियन बांग्लादेशियों को पड़ोसी भारत में पलायन करने के लिए मजबूर किया था. भारत ने बंगाली शरणार्थियों के लिए अपनी सीमाएं खोल दीं.
भारत-पाक युद्ध प्रभावी रूप से उत्तर-पश्चिमी भारत के हवाई क्षेत्रों में पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) द्वारा पूर्वव्यापी हवाई हमलों के बाद शुरू हुआ, जिसमें आगरा अपने ऑपरेशन चंगेज खान के हिस्से के रूप में शामिल था. ताजमहल को दुश्मन के विमान से छुपाने के लिए टहनियों और पत्तियों का उपयोग कर ढंका गया था.
जवाब में भारतीय वायु सेना ने पश्चिमी मोर्चे में लगभग 4000 सामरिक उड़ानें कीं और पूर्व में दो हजार के करीब उड़ानें भरीं. जबकि, पाकिस्तान एयरफोर्स दोनों मोर्चों पर लगभग 2800 और 30 सामरिक उड़ानें ही कर सका था. भारतीय वायु सेना ने युद्ध के अंत तक पाकिस्तान में हवाई ठिकानों पर छापा मारना जारी रखा.
भारतीय नौसेना के पश्चिमी नौसेना कमान ने 4-5 दिसंबर की रात कोडनाम ट्राइडेंट के तहत कराची बंदरगाह पर एक आश्चर्यजनक हमला किया.
पाकिस्तान ने भी पश्चिमी मोर्चे पर अपने सैनिक जुटा लिए थे. भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की और कई हजार किलोमीटर पाकिस्तानी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.
पाकिस्तान ने युद्ध में लगभग 8000 मृतकों और 25,000 अधिकतम घायलों के साथ हताहत का सामना किया. वहीं, भारत की ओर से 3000 सैनिकों ने शहादत दी और 12,000 सैनिक घायल हो गये.
पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी गुरिल्लाओं ने पूर्व में पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ लड़ने के लिए भारतीय बलों के साथ हाथ मिलाया. उन्होंने भारतीय सेना से हथियार और प्रशिक्षण प्राप्त किया.
सोवियत संघ ने अपने मुक्ति आंदोलन और युद्ध में भारत के साथ पूर्वी पाकिस्तानियों का पक्ष लिया. दूसरी ओर, रिचर्ड निक्सन की अध्यक्षता में संयुक्त राज्य अमेरिका ने आर्थिक और भौतिक रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया.
Posted by: Pritish Sahay