मसजिद-ए-जाफरिया में दस दिवसीय मजलिस-ए-गम शुरूहर जमाने में मजलूमियत की होती है जीत और जालिम की हारसंवाददाता, रांचीमसजिद-ए-जाफरिया में अंजुमन-ए-जाफरिया के तत्वाधान मे रविवार को दस दिवसीय मजलिस-ए-गम की शुरुआत की गयी. इमाम हुसैन की शहादत के उपलक्ष्य में आयोजित मजलिस का आरंभ अता इमाम की मरसिया खानी से हुआ. इस अवसर पर मौलाना हाजी सैयद तहजीबुल हसन रिजवी ने कहा कि जुल्म के खिलाफ आवाज का नाम ही कर्बला है. कुराने मजीद में अल्लाह का इरशाद है कि ‘न जुल्म करो, न जुल्म सहो.’ इतना अच्छा कानून एक छोटे से जुमले की हिदायत में मौजूद है. हर जमाने में मजलूमियत की जीत और जालिम की हार होती है. कर्बला की घटना ने दिखाया कि लाखों का लश्कर हार गया 72 का लश्कर जीत गया. इमाम हुसैन की कुर्बानी पर इंसानियत को नाज है. कासिम अली व नेहाल हुसैन ने मजलिस में पेशखानी की. तकरीर के बाद ‘या हुसैन’ की सदाओं से मसजिद परिसर गूंज उठा. इस मौके पर डॉ शमीम हैदर, इकबाल हुसैन, एसएच फातमी, डॉ सुलेमान कुली, जफरुल हसन, अंजार हुसैन नकवी, जावेद हैदर, सफदर हुसैन, अशरफ हुसैन व अन्य शामिल थे.
कुर्बानी पर इंसानियत को नाज : मौलाना
मसजिद-ए-जाफरिया में दस दिवसीय मजलिस-ए-गम शुरूहर जमाने में मजलूमियत की होती है जीत और जालिम की हारसंवाददाता, रांचीमसजिद-ए-जाफरिया में अंजुमन-ए-जाफरिया के तत्वाधान मे रविवार को दस दिवसीय मजलिस-ए-गम की शुरुआत की गयी. इमाम हुसैन की शहादत के उपलक्ष्य में आयोजित मजलिस का आरंभ अता इमाम की मरसिया खानी से हुआ. इस अवसर पर मौलाना हाजी […]
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