राजकुमार की तरह शादी की, कंगाल की तरह गुजारा भत्ता दिया : कोर्ट

एजेंसियां, नयी दिल्लीदिल्ली की एक अदालत ने एक मामले में कहा कि एक व्यक्ति ने शादी के वक्त तो खुद को ‘राजकुमार’ की तरह पेश किया पर जब अपनी पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता देने की बारी आयी तो वह ‘कंगाल’ बन गया. अदालत ने पति की ओर से पत्नी तथा स्कूल जाने वाले तीन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2014 11:02 PM

एजेंसियां, नयी दिल्लीदिल्ली की एक अदालत ने एक मामले में कहा कि एक व्यक्ति ने शादी के वक्त तो खुद को ‘राजकुमार’ की तरह पेश किया पर जब अपनी पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता देने की बारी आयी तो वह ‘कंगाल’ बन गया. अदालत ने पति की ओर से पत्नी तथा स्कूल जाने वाले तीन बच्चों की खातिर गुजारा भत्ता प्रतिमाह 3,000 रुपये से बढ़ा कर 5,000 रुपये करते हुए यह टिप्पणी की. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मनोज जैन ने कहा, यह एक क्रूर सच है कि जब कोई संपन्न आदमी शादी रचाता है तो वह अपने आपको ‘राजकुमार’ की तरह पेश करता है लेकिन जब गुजारा भत्ता देने की बारी आती है तो वह अपने आपको ‘कंगाल’ से ज्यादा नहीं बताता. मजिस्ट्रेटी अदालत के अंतरिम आदेश के खिलाफ महिला की ओर से दायर अपील पर यह आदेश आया. मजिस्ट्रेटी अदालत ने केवल बच्चों के लिए प्रतिमाह 3,000 रुपये देने का आदेश दिया था.अदालत ने दिया गुजारा भत्ता बढ़ाने का निर्देशमहिला ने खुद के गुजारा भत्ते के लिए व्यक्ति को निर्देश देने के संबंध में मजिस्ट्रेटी अदालत का रुख किया था. लेकिन, अदालत ने इस आधार पर इनकार कर दिया था कि वह खुद कामकाजी महिला है और उसका पति किसी तरह अपना गुजर बसर करता है. इसके बाद महिला ने सत्र अदालत का रुख किया. सत्र अदालत ने अपने आदेश में व्यक्ति को अपनी पूर्व पत्नी और उनके तीन बच्चों को 5,000 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का निर्देश देते हुए कहा कि दिल्ली जैसे महानगर में गुजर बसर बहुत महंगा है. जून में मजिस्ट्रेटी अदालत की ओर से जारी आदेश के बाद भी व्यक्ति ने अपने बच्चों को कुछ भी भत्ता नहीं दिया.अदालत व्यक्ति की इस दलील से भी सहमत नहीं हुई कि वह एक आभूषण दुकान में हर दिन केवल 200 रुपये कमाता है. न्यायाधीश ने कहा, प्रतिवादी (व्यक्ति) अकुशल कामगार नहीं लगता. उसके काम का प्रारूप दिखाता है कि वह एक प्रशिक्षित व्यक्ति है. वह एक दुकान और प्रतिष्ठान में अनियमित कामगार (कैजुअल वर्कर) के तौर पर काम करता है तो इस तरह, दिल्ली सरकार के श्रम विभाग की अधिसूचना के मुताबिक उसका न्यूनतम वेतन प्रतिमाह 8,000 रुपये होगा, न कि 6,000 रुपये प्रतिमाह.बच्चे की सही परवरिश पिता की जिम्मेवारीन्यायाधीश ने कहा, अदालत इस तथ्य से अनजान नहीं है कि दिल्ली जैसे महंगे महानगर में दिनोंदिन गुजर बसर करना बहुत मंहगा होता जा रहा है. अदालत ने कहा कि यह व्यक्ति का कानूनी और नैतिक कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि उसका बच्चा स्कूल जाये और पले बढ़े. इसलिए सिर्फ इसलिए रियायत नहीं दी जा सकती कि पत्नी स्कूल जाने वाले बच्चों और खुद की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश कर रही है. सत्र अदालत ने यह भी कहा कि व्यक्ति ने अपने बैंक खाते की भी जानकारी नहीं दी और उसने अपने नियोक्ता से लिये गये कर्ज का भी कोई रिकॉर्ड नहीं प्रस्तुत किया, जहां पर उसने दिहाड़ी कामगार के तौर पर काम करने का दावा किया है. न्यायाधीश ने कहा कि पुरुष जोड़ीदार की ओर से वास्तविक आमदनी छुपाने या कम करके बताने का बहुत ज्यादा चलन है. अदालत के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है इसलिए पूरी हैसियत और पक्षों की जीवन शैली को ध्यान में रखकर कुछेक मौके पर संभावित आमदनी की क्षमता का पता लगाया जाता है.

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