डॉ मो जाकिर ::::चुनाव

मुसलिमों को आबादी के हिसाब से मिले भागीदारी डॉ मो जाकिररांची. झारखंड विधानसभा के चुनाव का बिगुल बज चुका है. सभी राजनीतिक दल गंठजोड़ करने एवं सीटों के बंटवारे में जुट गयी हैं. पिछले चुनावों के अनुभव पर यह आकलन किया जा सकता है कि इस बार भी कोई एक दल अपने बलबूते सरकार नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 30, 2014 11:02 PM

मुसलिमों को आबादी के हिसाब से मिले भागीदारी डॉ मो जाकिररांची. झारखंड विधानसभा के चुनाव का बिगुल बज चुका है. सभी राजनीतिक दल गंठजोड़ करने एवं सीटों के बंटवारे में जुट गयी हैं. पिछले चुनावों के अनुभव पर यह आकलन किया जा सकता है कि इस बार भी कोई एक दल अपने बलबूते सरकार नहीं बना पायेगी, सिवाय अगर मोदी लहर लोकसभा चुनाव व हाल में हुए महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों की तरह झारखंड में भी चले. 81 विधानसभा सीटों में 27 सीटें अनुसूचित जनजाति तथा नौ सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. अर्थात 44.44 प्रतिशत सीटों पर केवल एसटी और एससी उम्मीदवार होंगे. एसटी को उनकी आबादी के अनुरूप सीटें आरक्षित की गयी है. यह एक संवैधानिक प्रावधान है, लेकिन कई आरक्षित सीटों पर मुसलमानों की अच्छी आबादी है, जिसे नजरअंदाज किया गया है. कुल अनारक्षित सीटें 45 हैं, जिसमें से मात्र दो मुसलिम विधायक 2004 विधानसभा चुनाव में जीते थे और 2009 विधानसभा चुनाव में उनकी संख्या चार थी. इस तरह मुसलमानों की आबादी 13.8 प्रतिशत के हिसाब से सत्ता में उनकी भागीदारी कम रही है. कई अनारक्षित सीटों में मुसलमानों की आबादी 25-35 प्रतिशत तक है जैसे-पाकुड़, जामताड़ा, सारठ, कोडरमा, गांडेय, गिरिडीह, बोकारो, गोड्डा, टुंडी, पश्चिम जमशेदपुर, हटिया, मधुपुर तथा राजधनवार. कोई राजनीतिक दल या गंठबंधन इन क्षेत्रों से मुसलिम उम्मीदवार को टिकट देता है. पार्टियां मुसलमानों की जीत सुनिश्चित करने का सार्थक प्रयास करती हैं, तो मुसलमानों की सत्ता में भागीदारी निश्चित रूप से बढ़ेगी. वैसे मुसलिम मतदाता जिस निर्वाचन क्षेत्र में अधिक होते हैं, वहां कई राजनीतिक दल मुसलमानों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उम्मीदवार बना देते हैं, परिणामस्वरूप वोट का बंटवारा होता है और वहां से कोई दूसरा उम्मीदवार जीत जाता है. मुसलिम वोटों के बिखराव के कारण उनमें नेतृत्व का अभाव पाया जाता है. जात-पात, मसलक से ऊपर उठ कर अगर मुसलमान वोट नहीं देते हैं, तो इस बार चार मुसलिम विधायक का भी जीतना मुश्किल प्रतीत होता है. धर्म निरपेक्ष राज्य में हर समुदाय को उनकी आबादी के अनुरूप सत्ता में भागीदारी मिलना चाहिए. इसके लिए मुसलिम मतदाताओं में जागरूकता लाने और उनके वोटों के बिखराव को रोकने की आवश्यकता है. जिसे इस समुदाय के सामाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ता बुद्धिजीवी एवं उलेमा बखूबी कर सकते हैं.

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