रांची: डीएसपी यूसी झा हत्याकांड के मामले में रांची पुलिस शुरू से ही लापरवाह रही. उनके इलाज से लेकर हत्या की जांच तक में कोताही बरती गयी.
अनुसंधान में तो पुलिस अफसरों ने हद कर दी. मामले में पुलिस ने धीमी गति से अनुसंधान किया. अनुसंधानक बदलते रहे और नियमों की अनदेखी की जाती रही. कानून का एबीसीडी के जानकारों को पता है कि किसी भी आपराधिक मामले में चाजर्शीट से पहले सीनियर अफसर का सुपरविजन नोट व रिपोर्ट-दो जारी होता है. लेकिन, यह सब किये बगैर ही मामले में आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया. वर्ष 2005 में तत्कालीन एसएसपी अनिल पाल्टा ने इस गड़बड़ी को पकड़ा था. तत्कालीन सिटी एसपी से मामले का सुपरविजन कराने के लिए एसएसपी को पुलिस मुख्यालय से पत्रचार करना पड़ा था.
अखबारों में खबर छपने व मुख्यालय स्तर से आदेश जारी होने के बाद सुपरविजन हुआ. इतना ही नहीं न्यायालय में जब मामले का ट्रायल शुरू हुआ, तो पुलिस ने इस मामले में दिलचस्पी ही नहीं ली. पुलिस अधिकारियों ने न तो समय पर अदालत में गवाही दी और न ही पुलिस के द्वारा मामले में गवाह बनाये गये लोगों को अदालत में उपस्थित कराने के लिए कुछ किया गया. फिर से जब मीडिया में खबरें आयी, तब पुलिस सक्रिय हुई और गवाहों का बयान अदालत में दर्ज करवाया.