पीएलएफआइ के सुप्रीमो दिनेश गोप से सीधी बातचीत

दिनेश गोप आतंक का वह नाम है जिसके एक आदेश पर झारखंड के आठ जिलों (खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा प्रमुख हैं) में जिंदगी ठहर जाती है. पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआइ) के सुप्रीमो दिनेश गोप का नाम झारखंड पुलिस की मोस्ट वांटेड सूची में सबसे ऊपर है. सेना के इस पूर्व जवान को पकड़ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:50 PM

दिनेश गोप आतंक का वह नाम है जिसके एक आदेश पर झारखंड के आठ जिलों (खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा प्रमुख हैं) में जिंदगी ठहर जाती है. पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआइ) के सुप्रीमो दिनेश गोप का नाम झारखंड पुलिस की मोस्ट वांटेड सूची में सबसे ऊपर है. सेना के इस पूर्व जवान को पकड़ने के लिए झारखंड में कई अभियान चले, हजारों पुलिसकर्मियों को लगाया गया, पर अभी तक पुलिस उसे पकड़ नहीं सकी. पुलिस के पास उसकी तसवीर भी नहीं है. दिनेश अब तो दूसरे राज्यों में भी अपने संगठन का विस्तार कर रहा है. असम के संगठन से संबंध हैं. उसके पास अत्याधुनिक हथियार और प्रशिक्षित लड़ाकू हैं. पुलिस के लिए चुनौती बने दिनेश गोप से प्रभात खबर के वरीय संवाददाता सुरजीत सिंह ने दो दिन पहले पश्चिम सिंहभूम के पोड़ाहाट के इलाके में बातचीत की. बातचीत के दौरान भी उसने अपनी, किसी सदस्य या वहां मौजूद हथियार की तसवीर उतारने से सीधे इनकार कर दिया.

रांची: पीएलएफआइ के पास एके-47, एके-56, एलएमजी, रॉकेट लांचर, टाइम बम व रिमोट बम भी है. पीएलएफआइ के सुप्रीमो दिनेश गोप ने खुद इस बात को स्वीकार किया है. प्रभात खबर से विशेष बातचीत के दौरान उसने यह बताया कि उसके संगठन में वैसे सदस्य भी हैं,जो कभी लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिलईलम) में शामिल थे. ये लोग आधुनिक हथियार चलाने व गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित हैं. वह खुद को नक्सली/अपराधी नहीं, बल्कि जरूरतमंदों की मदद करनेवाला व्यक्ति मानता है. दिनेश नेता, मंत्री व अफसरों को सबसे बड़ा दुश्मन मानता है. उसने कहा कि जब जनता जाग जायेगी, तो वह खुद राजनीति में उतरेगा.

आपके संगठन को क्या कहा जाये? नक्सली, उग्रवादी संगठन, आपराधिक गिरोह या अन्य कोई संगठन?
जनता का संगठन. जनता के हक, अधिकार के लिए संघर्ष करनेवाला संगठन. हमारे प्रतिद्वंद्वी, हमें बदनाम करने के लिए कुछ भी कह सकते हैं. असल नक्सली तो सरकारी अधिकारी हैं, जो विकास कार्यो से कमीशन के रूप में लेवी वसूलने का काम करते हैं. जो भी इसके खिलाफ आवाज उठाता है, उसे नक्सली-उग्रवादी बताते हैं. पुलिस तो पीएलएफआइ को आपराधिक गिरोह मानती है.
संगठन को बदनाम करने व जनता को बरगलाने के लिए ऐसा कहती है.

जनता का काम कैसे करते हैं, कुछ बतायेंगे?
हम अपने प्रभाववाले इलाकों में कई स्कूल चलाते हैं. बरसात के समय में संगठन के लोग सभी गांवों में कैंप लगा कर मलेरिया, डायरिया से बचाव के लिए काम करते हैं. दवाइयां बांटते हैं.
ठंड में गरीबों के बीच कंबल बांटते हैं. बीज-खाद का भी वितरण
करते हैं.

आपका अतीत क्या रहा है?
मैं पहले आर्मी (सेना) में था. बिहार रेजीमेंट में था. 2002 में मैं लद्दाख में पोस्टेड था. छुट्टी पर आया था. तभी एक ऐसी घटना घटी, जिससे जिंदगी का रास्ता ही बदल दिया.

क्या हुआ था? क्या सामाजिक/आर्थिक परेशानी थी?
बचपन से ही क्रांतिकारी विचार का था. शोषण, अत्याचार व जुल्म के खिलाफ सोचता था. घर की आर्थिक स्थिति न तो खराब थी और न ही बहुत अच्छी. मीडियम थी. (थोड़े गुस्से में). हां, इस फील्ड में आने के लिए मजबूर जरूर हुआ. बात 2002 की है. मेरा घर कर्रा थाना क्षेत्र के चापा गांव में है. एक वर्ग विशेष के लोगों द्वारा गांव की एक गरीब, यतीम व नाबालिग लड़की को नचनी बनने के लिए मजबूर किया जा रहा था. मैंने इसका विरोध किया, तो उस वर्ग विशेष के लोगों ने मुङो गांव से हटाने के लिए साजिश की. पुलिस से मिल कर बकसपुर रेल थाने में मेरे व मेरे भाई सुरेश गोप के खिलाफ डकैती की झूठी प्राथमिकी दर्ज करा दी. जब हम लोग पुलिस से बच कर भाग रहे थे, तब एक मुठभेड़ में मेरे भाई की गोली खत्म हो गयी, तो अंतिम गोली उसने खुद को मार ली. इसी के बाद मैंने जेएलटी संगठन बनाया.

संगठन चलाने का उद्देश्य क्या है? विचारधारा-सिद्धांत क्या हैं?
जनता को शोषण से मुक्ति दिलाना. सत्ता, जागरूक जनता के हाथ में होनी चाहिए.
अगर आपका संगठन अन्याय के खिलाफ लड़ता है, तो इलाके में आतंक क्यों है? प्रभाववाले इलाके में

भय का माहौल क्यों है?
आम जनता के लिए आतंक या भय का माहौल बिल्कुल नहीं है. आप देख सकते हैं, लोग हमारे आस-पास कैसे आ-जा रहे हैं. अगर हम ग्रामीणों को सताते तो आज आपके सामने इस रूप में नहीं होते. मेरे यहां होने की खबर पुलिस को जरूर मिल जाती.

किन हथियारों के बल पर आपका संगठन पुलिस को चुनौती दे रहा है?
संगठन के पास एके-47, एके-56, एसएलआर, एलएमजी, रॉकेट लांचर, टाइम बम व रिमोट बम जैसे हथियार हैं.

संगठन के काम करने का तरीका क्या है?
जनता के लिए काम करते हैं. जनता से पूछते हैं, क्या जरूरत है, क्या करना चाहिए. जनता जो कहती है, वही करते हैं.

संगठन के सदस्यों के लिए प्रशिक्षण की क्या व्यवस्था है?
सदस्यों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था है. प्रशिक्षक और मैं खुद प्रशिक्षण का काम देखता हूं. आर्मी की तरह ट्रेंड किया जाता है.

संगठन कितना बड़ा है? कितने लोग हैं? हथियारबंद और साधारण?
चार राज्यों में संगठन के लोग सक्रिय हैं. झारखंड के हर जिले में कोई न कोई फ्रंट जरूर काम कर रहा है. कितने लोग हैं, यह बताना उचित नहीं.

आपका या केंद्रीय कमेटी का निचले स्तर तक नियंत्रण है?
हां है. बिना ऊपरी कमेटी के निर्णय के कुछ भी नहीं होता.

संगठन का प्रभाव तेजी से बढ़ने की क्या वजह मानते हैं?
जनता की मांग है. जनता निमंत्रण देती है. आइए, यहां काम करिए. बढ़ते प्रभाव से भाकपा माओवादी भी परेशान व भयभीत हैं.

किसे सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं? भाकपा माओवादी या पुलिस?
नेता-मंत्री व अधिकारी हैं सबसे बड़ा दुश्मन. यही लोग व्यवस्था को चलाते हैं. ये इसमें फेल हैं. पुलिस उन्हीं के इशारे पर नाचती है. भाकपा माओवादी से कोई वैचारिक विरोध नहीं है. हम दोनों जनता का ही काम कर रहे हैं.

संगठन का खर्च कैसे चलता है? धन कहां से आता है? क्या लेवी से?
जनता के चंदा से. 10-20 रुपये लोग देते हैं. उसी से काम चलता है. ठेकेदार-पूंजीपति लोग लेवी की बात कह कर हमें बदनाम करते हैं.

संगठन राज्य व समाज में किस तरह का बदलाव लाना चाहता है?
क्रांति चाहता है. जो ताकत आज 10 प्रतिशत शोषक लोगों के पास है, वह जनता के हाथ में आये. सरकार, व्यापार, उद्योग, अखबार सब कुछ पुंजीपतियों के हाथ में है. जब तक यह जनता के हाथ में नहीं आता, कुछ नहीं हो सकता.

संगठन के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
प्रतिक्रियावादियों से संघर्ष. जो देश को चला रहे हैं, सभी मिल कर पैसा-सत्ता, सत्ता-पैसा का खेल खेल रहे हैं.

संगठन पर आरोप लगता है कि निदरेष लोगों की भी हत्या कर देता है?
ऐसा नहीं होता है. कुछ घटनाओं को दूसरे लोग अंजाम देते हैं और नाम पीएलएफआइ का उछाल दिया जाता है. जब भी संगठन के लोग किसी निदरेष की हत्या करते हैं, तो उन्हें सजा जरूर दी जाती है.

यह चर्चा है कि रांची में महेश्वर सिंह की हत्या आपने करायी?
महेश्वर सिंह, हमारे संगठन के दुश्मन थे. वह संगठन की खिलाफत करते थे. हमेशा सुरक्षा में रहते थे. संगठन उन्हें सजा भी देना चाहता था. लेकिन उनकी हत्या में संगठन का कोई हाथ नहीं है.

क्या संगठन में किसी खास जाति-धर्म के लोग ज्यादा हैं?
नहीं, संगठन में सिर्फ एक जाति है. वह है मानव जाति.ऐसा आरोप है कि बिना लेवी दिये आपके प्रभाववाले क्षेत्र में कोई विकास का काम नहीं कर सकता? अगर किया तो उसकी खैर नहीं.

आरोप गलत है. प्रतिद्वंद्वी ऐसा आरोप लगाते हैं. हम आप के माध्यम से यह एलान करते हैं कि कोई भी ठेकेदार हमारे प्रभाववाले इलाके में आकर काम करे. हम लेवी नहीं मांगेंगे. गारंटी देता हूं, हम उनकी सुरक्षा करेंगे. पर, ठेकेदारों को भी अच्छा काम करना होगा. अधिकारियों को जो लेवी (कमीशन) देते हैं, उसका इस्तेमाल योजनाओं की गुणवत्ता में करना होगा.

अगर आपका दावा सही है तो फिर इलाके में स्वास्थ्य, सड़क और शिक्षा का घोर अभाव क्यों है?
यह हाल राजनीतिक कारणों से है. विकास का खाका सिर्फ कागज पर बनता है. आप जिन इलाकों की बात कर रहे हैं, आप खुद सरकारी फाइल में देख लीजिए. कितनी विकास की योजना बनी है. सरकार और अधिकारी काम नहीं करते और अपनी कमी को छिपाने के लिए सारा दोष हमारे संगठन पर मढ़ देते हैं.

पुलिस आपको पकड़ नहीं सकी. राज क्या है?
जनता का साथ है. सहयोग है. कोई जादू नहीं जानता कि गायब हो जाता हूं. मैं जहां भी जाता हूं, वहां के लोग प्रशासन से हमें छुपाते हैं. पुलिस की सूचना हमें देते हैं, लेकिन पुलिस तक हमारी सूचनाएं नहीं पहुंचाते. मुङो पकड़ने के लिए कई बार बड़ा अभियान चलाया गया. हर अभियान विफल रहा.

राजनीतिक पार्टियों से आपके संबंध है?
किसी पार्टी से कोई संबंध नहीं है. कोई भी नेता मेरे पास नहीं आता. क्षेत्र में भी नहीं आते. वह रातों-रात करोड़पति बननेवाले लोग हैं.

पंचायत चुनाव, विधानसभा चुनाव व लोकसभा चुनावा में संगठन की क्या और किस तरह की भूमिका रहती है?

कोई भूमिका नहीं होती है. जनता को लोकतंत्र पर विश्वास है, तो वह जिसे चाहे वोट करे. हम चुनाव बहिष्कार का नारा भी नहीं देते.

क्या आगामी लोकसभा-विधानसभा चुनाव में संगठन अपना प्रत्याशी उतारेगा?
ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं है. जनता को जगाये बिना चुनाव में उतरना ठीक नहीं. पहले उन्हें, उनके हक-अधिकार के बारे में बताना होगा.

कौन सी राजनीतिक पार्टी या नेता को बेहतर मानते हैं?
माले नेता विधायक विनोद सिंह व मासस नेता अरूप चटर्जी.

आरोप है कि आपका झुकाव एक खास पार्टी की ओर है?
यह पूरी तरह गलत है. आपका इशारा पौलूस सुरीन की तरफ है. उससे अब कोई संबंध नहीं है. बदनाम किया गया था. पौलूस, पहले संगठन में था. जेल गया. वहीं से नामांकन किया और विधायक बना. संगठन से उसका कोई रिश्ता नहीं है.

हथियार के बल पर लड़ते ही रहेंगे या कभी मुख्यधारा में आकर चुनाव भी लड़ेंगे?
जब जनता जाग जायेगी, तब व्यवस्था परिवर्तन के लिए संसदीय राजनीति में आऊंगा और वहां की कमियों को दूर करूंगा.

आपके लिए राज्य व देश कितना महत्वपूर्ण है?
जितना राज्य और देश के दूसरे लोगों के लिए है. मैं भी इसी देश, राज्य का निवासी हूं. जनता के लिए काम करता हूं.

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