खूंटी विधानसभा क्षेत्र: रिपोर्ट कार्ड

फोटो सिटी के 11 खूंटी फोल्डर में हैजिला मुख्यालय से सटा एक गांव, जहां बिजली है न पानी.फोटो 6 : गांव में गरीबीफोटो 7 : दूर नदी से पानी लाते हैं ग्रामीण.फोटो 8 : से 11 प्रतिक्रिया देने वाले लोगफोटो-1 खूंटी मेन रोड (बाजारटांड़ मुख्य पथ) की हालतन तो लगे उद्योग, न ही हुआ विकासबोलती […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 13, 2014 11:02 PM

फोटो सिटी के 11 खूंटी फोल्डर में हैजिला मुख्यालय से सटा एक गांव, जहां बिजली है न पानी.फोटो 6 : गांव में गरीबीफोटो 7 : दूर नदी से पानी लाते हैं ग्रामीण.फोटो 8 : से 11 प्रतिक्रिया देने वाले लोगफोटो-1 खूंटी मेन रोड (बाजारटांड़ मुख्य पथ) की हालतन तो लगे उद्योग, न ही हुआ विकासबोलती है सिर्फ नक्सलियों-उग्रवादियों की तूतीपलायन व बेरोजगारी है खूंटी की बड़ी समस्यामनोज जायसवाल, खूंटीखूंटी भगवान बिरसा मुंडा की मातृ व कर्मभूमि रही है. जयपाल सिंह, झारखंड आंदोलन से जुड़े एनइ होरो, खूंटी के गांधी कहे जानेवाले टी मुची राय मुंडा व कडि़या मुंडा जैसे कई नेताओं ने खूंटी को एक अलग पहचान दिलायी है. लेकिन, अब इस जिले स्थिति विपरीत है. खूंटी को अपराध के लिए जाना जाता है. इस जिले में भाकपा माओवादियों व पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआइ) की तूती बोलती है. इस जिले में बेरोजगारी चरम पर है. पलायन यहां की आम समस्या है. रोजगार सृजन के लिए इस जिले में कुछ भी नहीं किया गया. यही वजह है कि पूरा जिला नक्सलवाद की चपेट में है. पांच लाख से अधिक जनसंख्या वाला खूंटी 12 सितंबर 2007 को रांची से अलग होकर नया जिला बना था. यहां के कई नेता केंद्र व राज्य में मंत्री रहे, लेकिन किसी ने विकास की दिशा में सार्थक प्रयास नहीं किया. यही कारण है कि जिले में न तो कोई उद्योग खुला और न ही किसी बड़े शैक्षणिक संस्थान की स्थापना हुई. हां: घोषणाओं व शिलान्यास की कमी यहां कभी नहीं रही. नेताओं व जन प्रतिनिधियों ने एजुकेशनल हब, कृषि विज्ञान केंद्र व पर्यटन स्थलों के विकास के नाम पर सिर्फ घोषणाएं की और शिलान्यास किया. ये कर्म कांड हुए वर्षों बीत गये, पर किसी योजना पर काम शुरू नहीं हुआ. एजुकेशन हब के नाम पर जिन रैयतों की जमीन का अधिग्रहण हुआ, उन्हें आज तक मुआवजा नहीं मिला है. विधानसभा क्षेत्र की स्थिति कब कौन जीता : वर्ष विजेता पार्टी 1977 खुदिया पाहन जनता पार्टी1980 सामू पाहन इंदिरा कांग्रेस1985 सुशीला केरकेट्टा कांग्रेस1990सुशीला केरकेट्टा वही1995 सुशीला केरकेट्टा वही2000 नीलकंठ सिंह मुंडा भाजपा2005 नीलकंठ सिंह मुंडा वही2009 नीलकंठ सिंह मुंडा वहीक्या कहते है ग्रामीण (फोटो 8 से 11) बिनसाय मुंडू : आजादी के बाद भी गांव की दुर्दशा देखने वाला कोई नहीं है. दारा व घुरा पाहन : हम लोग जानवरों से भी बदतर स्थिति में जी रहे हैं. लोतरो पाहन : गांव में आज तक तालाब-कुआं नहीं बन पाया. हम इसके लिए रिश्वत नहीं दे सकते. विधानसभा क्षेत्र का विकास हुआ हैखूंटी विधानसभा क्षेत्र का काफी विकास हुआ है. मेरे विधानसभा क्षेत्र का कोई भी क्षेत्र बुनियादी समस्याओं से ग्रसित नहीं है. कृषि के क्षेत्र में भी समुचित विकास हुआ है. नीलकंठ सिंह मुंडा, विधायकलोगों ने कहाभाजपा का खूंटी विधानसभा क्षेत्र में लंबे समय से अधिक शासन रहा. इसके बावजूद क्षेत्र का विकास नहीं हुआ. इस जिले में भ्रष्टाचार का बोलबाला है. लाल विजय नाथ शाहदेव (फोटो 2) तुलनात्मक दृष्टिकोण से देखें, तो पहले की अपेक्षा क्षेत्र का विकास तो हुआ है, लेकिन रोजगार सृजन जैसे कई जरूरी कार्य इस जिले में बाकी है. फणींद्र मांझी (फोटो 3) विकास तो जरूर हुआ है. महिलाओं के उत्थान के लिए भी कई कार्य किये जा रहे हैं. बैंक से अब महिलाओं को लोन मिलता है. यह सब विधायक की पहल का परिणाम है. कविता वर्मा (फोटो 1)——————————————-कब बदलेगी यह तसवीर (फोटो1)गांवों की बात तो दूर, खूंटी जिला मुख्यालय से सटे बाजारटांड़ का मुख्य पथ करीब सात माह पहले खोद कर छोड़ दिया गया है. निर्माणाधीन पुलिया भी आधी-अधूरी है. इस सड़क पर उड़ते धूल से राहगीर परेशान रहते हैं, पर जन प्रतिनिधियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. ग्राउंड रियलिटीगांव में नहीं है एक भी नलकूपखूंटी : जिला मुख्यालय से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर बसा है कि मुरहू प्रखंड का कोजरोंग गांव. इस गांव की कुल आबादी करीब 500 है. इस जनजातीय गांव के लोग यहां से दो किलोमीटर दूर तजना नदी से पीने का पानी लाते हैं. दूरी अधिक होने के कारण यह काम पुरुषों को ही करना पड़ता है. इस गांव में पांच टोले हैं. कोजरोंग, पुरना टोला, ताला टोला, कोचा टोला, टिकरा टोला एवं पराम टोला. किसी भी टोला में नलकूप नहीं है. गांव में लोग बिजली व सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं. ग्रामीणों को खूंटी या मुरहू जाने के लिए करीब 20 किमी पैदल चलना पड़ता है. बरसात के दिनों में गांव के लोग तजना नदी के पानी से घिर जाते हैं. बुरजु पुल के क्षतिग्रस्त होने से समस्या बढ़ गयी है. बरसात में ग्रामीण जान जोखिम में डाल कर तजना नदी पार करते हैं. रोजमर्रा की जरूरत के लिए ग्रामीणों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. कोजरोंग में प्राइमरी स्कूल तो है, पर यहां शिक्षक कभी-कभार ही आते हैं. गांव के ज्यादातर लोग मुंडारी छोड़ दूसरी भाषा नहीं समझते. यहां तक की हिंदी भी ज्यादातर लोग नहीं समझते हैं.

Next Article

Exit mobile version