सुप्रीम कोर्ट में फिर वापस लायें मामला : स्वतंत्र न्यायाधिकरण

क्या है मामला…… मनोज लकड़ा देंगे……….फोटो अमित दास – आरपीबीए व पैनेम कोल माइंस लिमिटेड के बीच 2006 में हुए एमओयू पर स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण का आयोजनसंवाददाता, रांचीझारखंड के राजमहल पहाड़ बचाओ आंदोलन (आरपीबीए) व पैनेम कोल माइंस लिमिटेड के बीच वर्ष 2006 में हुए एमओयू पर रविवार को एक्सआइएसएस सभागार में स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 16, 2014 9:01 PM

क्या है मामला…… मनोज लकड़ा देंगे……….फोटो अमित दास – आरपीबीए व पैनेम कोल माइंस लिमिटेड के बीच 2006 में हुए एमओयू पर स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण का आयोजनसंवाददाता, रांचीझारखंड के राजमहल पहाड़ बचाओ आंदोलन (आरपीबीए) व पैनेम कोल माइंस लिमिटेड के बीच वर्ष 2006 में हुए एमओयू पर रविवार को एक्सआइएसएस सभागार में स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण का आयोजन किया गया. इसमें न्यायाधीशों के पैनल में फ्रंटलाइन पत्रिका के मुख्य संपादक वेंकटेश रामाकृष्णन, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण, शिक्षाविद बेला भाटिया व प्रो रमेश शरण शामिल थे. इस मौके पर अमरापाड़ा प्रखंड (पाकुड़ जिले) के पुचआड़ा व आसपास के क्षेत्र के लोगों ने समझौते के क्रियान्वयन की स्थिति और इससे जुड़े मुद्दों पर अपनी बात रखी. ग्रामीणों का पक्ष सुनने के बाद पैनल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दायर जिस मामले पर कोर्ट से बाहर समझौता किया गया, उसे फिर से दर्ज कराया जाये. जिन कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द हुआ है, उन्हें फिर आवंटित न किया जाये. ग्रामीणों के साथ हुई बेईमानी न्यायाधीशों के पैनल की ओर से बेला भाटिया ने कहा कि इस मामले में शुरुआत से ही ग्रामीणों के साथ बेईमानी की गयी. ग्रामीणों को 50 फीसदी जमीन खेती लायक बना कर वापस की जानी थी, जो नहीं हुआ. आधा अधूरा पुनर्वास किया गया है, जिसमें ग्रामीणों की सुविधा और संस्कृति का ध्यान नहीं रखा गया. इधर सुप्रीम कोर्ट ने भी कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द कर दिया है. वेंकटेश रामाकृष्णन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया मामला फिर से वापस लाया जाये. जिन कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द हुआ है, वे फिर आवंटित न किये जायंे. प्रो रमेश शरण ने कहा कि ऐसा ही संघर्ष झारखंड के कई क्षेत्रों में चल रहा है. ग्रामीणों ने रखी अपनी बातइससे पूर्व कठलडीह की चांदमुनी मुरमू ने बताया कि उनके पति को जमीन के लिए केवल 2,19,000 रुपये का मुआवजा मिला था. पैनेम द्वारा आजीविका मुआवजा हर साल दिया जाना था, जिसे एकमुश्त करते हुए यह राशि 50,000 रुपये तय की गयी. जिस दिन इसका वितरण हो रहा था, संयोगवश उसके पति उपस्थित नहीं हो पाये और वह मुआवजा आज तक नहीं मिला. उसने बताया कि कंपनी द्वारा दिये गये घरों में दरारें पड़ रही हैं. शौचालय की व्यवस्था नहीं है. गांव के लोगों को नहीं, बल्कि बाहर के लोगों को नौकरियां मिलती हैं. वहां चार डॉक्टर प्रतिनियुक्त किये गये हैं, पर वे अपने कार्य के प्रति गंभीर नहीं हैं. पैनेम के आने के बाद उनके जीवन की खुशहाली चली गयी. उन्हें उनकी जमीन वापस की जाये या जमीन के बदले जमीन दी जाये. सिस्टर वालसा की मौत के बाद ग्रामीणों की स्थिति बदतर हुई है. सुनीता हेमरोम, प्रदीप हेमरोम, फ्रांसिस मुरमू, मरियम हेमरोम, सोनिया देहरी, अनिल मुरमू, रमेश सोरेन, मानुयेन मुरमू ने भी अपनी बात रखी.

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