प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में बोले बाबूलाल मरांडी- स्थानीयता, OBC आरक्षण पर सरकार की नीयत साफ नहीं
भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी सोमवार को प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में शामिल हुए. प्रभात खबर कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे श्री मरांडी ने राजनीतिक मुद्दों पर बेबाकी से बात की.
रांची : भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी सोमवार को प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में शामिल हुए. प्रभात खबर कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे श्री मरांडी ने राजनीतिक मुद्दों पर बेबाकी से बात की. विभिन्न मसलों पर पार्टी के स्टैंड, भावी रणनीति और मिशन 2024 को लेकर बातें रखीं. श्री मरांडी ने अपने पूर्व के राजनीतिक अनुभवों के बारे में बताया. सरकार के कामकाज को लेकर तल्ख टिप्पणी की.
2019 में विधानसभा चुनाव में भाजपा पिट गयी. 2024 में क्या होगा ?
पहली बात मैं यह कहूंगा कि 2019 में भाजपा बुरी तरह से परास्त नहीं हुई, उसे 25 सीटें मिलीं. हां यह कहा जा सकता है कि विधानसभा में बहुमत के आंकड़ों से पीछे रह गयी. अगर वोट प्रतिशत में देखेंगे, तो मामूली अंतर था, लेकिन सीटों की संख्या में काफी अंतर आ गया. जहां तक 2024 का सवाल है, तो भाजपा हमेशा सक्रिय रहती है. भाजपा सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि जनता व समाज के लिए राजनीति करती है.
आपने देखा होगा कि कोरोना संक्रमण काल में भाजपा के नेताओं ने सड़कों पर उतर कर लोगों की मदद की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर भी पार्टी ने सेवा सप्ताह चला कर समाज की सेवा की. रक्तदान शिविर लगाया. पौधे लगाये गये. इनके जन्मदिन पर न केक काटा गया और न ही पूजा पाठ की गयी. जनमुद्दों को लेकर भी पार्टी मुखर रहती है. हां चुनाव आने पर इसकी गति और तेज हो जाती है.
Qकोल्हान और संताल परगना में भाजपा ने कमजोर सीटें चिह्नित की हैं. इन सीटों पर कैसे जीत दर्ज करेंगे ?
रणनीति तो हम मीडिया को नहीं बता सकेंगे, लेकिन हमें भी यह ध्यान में है. इसके लिए विशेष रूप से योजना बनायी गयी है. पार्टी के शीर्ष नेता ऐसी सीटों पर काम कर रहे हैं. जहां तक झारखंड का सवाल है, तो भाजपा लोकसभा व विधानसभा की सीटें जीतती रही है. मुझे पूरा विश्वास है कि 2024 के चुनाव में अभी से बेहतर परिणाम देखने को मिलेगा.
Q1932 के आधार पर स्थानीयता और ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव कर यूपीए गठबंधन ने बड़ा दांव चला है. ऐसे में भाजपा अपना आधार कैसे बचायेगी ?
जिसे आप दांव कह रहे है, उस दांव में सरकार खुद फंस गयी है. जनता अब पूछ रही है कि 1932 खतियान लागू करनेवाले मामले का क्या हुआ. जनता को इनके दांव का पता चल गया है. इससे नियोजन को नहीं जोड़ा गया. जनता जानती है कि इसमें जनहित नहीं, राजनीति ज्यादा है. 2001 में भी स्थानीयता को लेकर फैसला हुआ था. उसमें 1982 में बिहार सरकार में लागू नियमावली को अधिग्रहित किया गया था.
इसके लिए सर्वदलीय बैठक भी हुई थी. इसमें अंतिम सर्वे खतियान के आधार पर इसे लागू करने की बात हुई थी. बिहार में भी यही था. तय किया गया था कि वर्ग तीन और चार की बहाली में इनको प्राथमिकता दी जायेगी. यह मामला कोर्ट में गया. निरस्त भी हो गया है. इसी तरह का मामला ओबीसी आरक्षण का है. इसको लागू कराने की एक प्रक्रिया है. बिना तय प्रक्रिया का पालन किये, इस पर हल्ला करना राजनीति है. पहले भी 73 फीसदी आरक्षण लागू किया था. कोर्ट में नहीं टिका.
खतियान आधारित पहचान को लेकर भाजपा का स्टैंड क्या होगा ?
भाजपा ने इसे लेकर पहले भी स्टैंड लिया है. बिहार सरकार का सर्कुलर अधिग्रहित किया था. तीसरे और चौथे वर्ग की नियुक्ति में प्राथमिकता दी थी.
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने एक स्थानीयता तय की थी. क्या पार्टी आज भी उसके साथ है ?
2009 में बीजेपी और जेएमएम की सरकार 28 महीने चली थी. इसमें हेमंत सोरेन डिप्टी सीएम थे. इसमें हेमंत सोरेन ने सरकार से समर्थन छोड़ा था. इसके लिए स्थानीयता का प्रारूप जो दिया था, उसे स्वीकार नहीं किया था. 2014 में जब रघुवर दास जी की सरकार बनी, तो बीच का रास्ता निकाला गया. 1985 को कट ऑफ डेट रखा गया. बीजेपी जो भी करती है, काफी सोच-विचार कर करती है. वर्तमान सरकार इसे लटकाना चाहती है. यही कारण है आरक्षण और स्थानीयता के मुद्दों को केंद्र को भेज दिया. अगर नीयत साफ रहेगी, तो स्थानीयता तय करने के लिए प्रक्रिया का पालन करना होगा. पहले सर्वे कराना होगा, तब आप कोर्ट में खड़े हो पायेंगे.
राज्य में चार उप चुनाव हुए. एक सीट भी भाजपा नहीं जीती. यह किस तरह का राजनीतिक संकेत है ?
पहले लोग जीतते रहे हैं. हाल में जो चुनाव परिणाम आये हैं, उसको लेकर हम लोग चिंतित हैं. आगे ज्यादा से ज्यादा सीट कैसे जीतें, इसे लेकर रणनीति बना रहे हैं. 2024 में यह प्रयास होगा.
राज्य में भाजपा की कमान किसके पास है? क्या लगता है कि आज भी भाजपा के कार्यकर्ता अलग-अलग ध्रुव में बंटे हैं?
पार्टी में कोई ध्रुव नहीं है. संगठन जब बड़ा होता है, तो सबकी अपनी-अपनी इच्छा होती है. इस कारण कुछ अलग दिखता होगा, लेकिन ऐसा है नहीं.
आप भाजपा में शामिल हुए, तो पार्टी ने आपको विरोधी दल का नेता बनाया. क्या बाबूलाल मरांडी 2024 में पार्टी का चेहरा होंगे?
यह तो पार्टी तय करती है. हम तो पार्टी में कार्यकर्ता के रूप में आये हैं. कार्यकर्ता ही रहना चाहते हैं. पार्टी जो जिम्मेदारी देगी, उसे पूरा किया जायेगा. मैं तो भाजपा में आने के बाद विधानसभा छोड़ना चाहता था. पार्टी ने कहा कि अब विधिवत विलय हो गया है. इससे भागना नहीं चाहिए. यही कारण है हम पार्टी में विधायक के रूप में रहे. आगे पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी, उसका पालन करेंगे.
Qभाजपा में आज तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्री हैं. सरकार की नाकामियां आप सब गिनाते हैं. सड़क पर आप कितना संघर्ष कर पाये ?
ऐसा नहीं है कि हम संघर्ष नहीं कर रहे हैं. हम सरकार की हर गलत नीति और काम का विरोध कर रहे हैं. आगे भी करते रहेंगे. सड़क पर भी दिखे रहे हैं. आगे भी दिखेंगे. जनता की आवाज बनने की कोशिश करते रहेंगे. विधायक दल के नेता के रूप में सड़क पर आंदोलन भी हुआ है.
Qसदन में आपको प्रतिपक्ष का नेता के रूप में मान्यता नहीं मिल पायी. यह कितना कचोटता है ?
कचोटता है. बहुत कचोटता है. मैं हेमंत और शिबू सोरेन परिवार को बहुत अच्छे से जानता हूं. मुझे पता था कि वे लोग ऐसा कर सकते हैं. इस कारण हमने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से कहा था कि मुझे विधायकी छोड़ देने दीजिए. उन्होंने मना कर दिया था. मुझे विधायकी छोड़ने की अनुमति नहीं दी. वे जज्बाती हो गये थे. कानून भी जानते हैं. लेकिन, इसे 10वीं अनुसूची का मामला बनाकर अधिकार का हनन किया जा रहा है. इस कारण चाह कर भी सदन में अपनी बात नहीं रख पाता हूं.
मैं वेल में आकर हल्ला भी नहीं कर सकता है. कभी-कभी सदन के अंदर बोलने के लिए हाथ उठाता हूं, तो मौका नहीं दिया जाता है. इसी राज्य में एक निर्दलीय को नेता माना गया है. सीएम भी बनाया गया है. देश में भी ऐसे कई उदाहरण हैं. प्रधानमंत्री तक बनाये गये हैं. यह सामान्य बात है. भाजपा के सभी विधायकों ने लिखकर मुझे नेता माना है, लेकिन सदन में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया जाता है. सदन में बोलने का मौका नहीं मिलता है, तो काफी कचोटता है.
बिना विपक्ष के नेता का सदन चल रहा है? यह संसदीय परंपरा के लिए कितना सही है ?
यह संसदीय परंपरा के लिए सही नहीं है. इसको सही उनको करना है. भाजपा ने लिखकर दिया है. मेरी पुरानी पार्टी का विलय हुआ है. चुनाव आयोग ने हमारे विलय को मान्यता दे दी. सदन के बाहर कई स्थानों पर भाजपा विधायक के रूप में मतदान भी किया है.
स्पीकर ने आपके दल बदल मामले में सुनवाई पूरी कर ली. फैसला सुरक्षित रखा है. क्या होना है?
यह तो उनको तय करना है. पूरी प्रक्रिया में उन्होंने नियमों का पालन नहीं किया है. यही कारण है कि हम कोर्ट गये हैं. कल इस मामले की सुनवाई भी है.
क्या यह सही है कि आप भाजपा में शामिल होने के बाद विधायक से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ना चाहते थे. क्या लगता है वह फैसला सही होता?
यह सही है कि मैं विधायकी छोड़ना चाहता था. अब तो जो भी होगा, पार्टी की सहमति से होगा. अब तो अपने मन से निर्णय लेने की स्थिति में भी नहीं हूं. अब हर परिस्थिति के लिए पार्टी का आदेश लेना है.
पिछले चुनाव में भाजपा की हार का कारण आजसू से गठबंधन नहीं होना भी था. आगे आजसू के साथ पार्टी का स्टैंड क्या होगा?
हम तो पहले भी साथ थे. आगे भी रहेंगे. समय के साथ सब कुछ धीरे-धीरे स्पष्ट हो जायेगा.
2024 के लोकसभा चुनाव में अब तक के हालात से यूपीए एकजुट दिख रहा है. नीतीश कुमार आक्रामक हैं. राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर हैं. चुनौती कितनी गंभीर होगी?
देखिये, मैं बहुत दूर नहीं जाना चाहता. मैं नहीं समझता हूं कि मोदी जी जिस कद काठी के नेता हैं, उनके सामने देश में कोई नेता है. जहां तक बिहार का सवाल है तो पिछले चुनाव में एनडीए गठबंधन ने मिल कर चुनाव लड़ा. इसके बाद परिणाम सबने देखा. इसलिए मुझे नहीं लगता कोई नया चमत्कार हुआ है. देश में प्रधानमंत्री जैसा काम कर रहे हैं, इससे स्पष्ट है कि 2024 में भी एनडीए गठबंधन की सरकार बनेगी. जहां तक नीतीश कुमार का सवाल है, तो वे यशवंत सिन्हा के रास्ते पर चल पड़े हैं. इसका परिणाम भी वही होगा, जैसा राष्ट्रपति चुनाव में देखने को मिला.
हेमंत सरकार के कामकाज को किस रूप में देखते हैं?
एक शब्द में कहें, तो तीन साल में इन्होंने काम तो किया नहीं, लेकिन कमाया खूब है. इसमें कोई दो मत नहीं है. यह बात मैं प्रामाणिकता से बोल रहा हूं. अगर आप ग्रामीण इलाकों में देखें, तो यहां की सड़कें चलने लायक नहीं हैं. वर्ष 2019 में जो स्थिति थी, उससे और बेहतर होने की बजाय बदतर होती जा रही है. इसलिए मैं कहता हूं कि सरकार ने तीन साल में काम तो किया नहीं, लेकिन कमाया खूब. यह साफ दिखता है. हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि ऐसी भी कोई सरकार होगी.
राज्य सरकार कहती है कि कोरोना की विषम परिस्थिति में भी बेहतर काम किया. नीतियों के मामले में सरकार लगातार काम कर रही है. आप इसका मूल्यांकन कैसे करते हैं ?
अपने से तो सरकार बेहतर ही कहेगी. आज भी रिम्स में जायेंगे, तो स्थिति स्पष्ट हो जायेगी. मशीनें ठीक से काम नहीं करती है. भाजपा की सरकार में तीन नये मेडिकल कॉलेज बनाये गये, लेकिन तीन साल बाद भी वर्तमान सरकार एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी. जहां तक सदर अस्पताल का सवाल है, तो वह सिर्फ रेफर करने वाला अस्पताल बन कर रह गया है. यहां एक भी ऑपरेशन नहीं होते हैं.
हेमंत सोरेन का आरोप है कि केंद्र सरकार सहयोग नहीं कर रही है. पैसा नहीं दे रही है. इस कारण विकास प्रभावित हो रहा है. क्या यह सही है?
हमने कई बार कहा है कि पिछली बार जब केंद्र व राज्य में भाजपा की सरकार थी. अगर उससे तुलना करें, तो पिछली सरकार में प्रत्येक वर्ष जितनी राशि मिली, उससे कहीं ज्यादा इस सरकार को मिली है. परंतु यह सरकार काम ही नहीं कर पाती है. अगर सरकार ने पहले इंस्टॉलमेंट की मिली राशि का काम नहीं किया, तो अगला इंस्टॉलमेंट कैसे मिलेगा. हमने हेमंत सोरेन से बार-बार कहा कि आप हमें लिख कर दें कि केंद्र सरकार किस-किस योजना का पैसा नहीं दे रही है. हम दिल्ली जाकर मंत्री से पैसा दिलाने का काम कर देंगे. कोरोना काल में केंद्रीय मंत्री व सचिव से बात करते थे, तो पता चलता था कि राज्य सरकार को क्या-क्या मिला है. इस संबंध में राज्य सरकार से पूछा जाता है, तो वह बताने का काम नहीं करते हैं.
हेमंत सरकार ने सरना धर्म, ओबीसी आरक्षण आदि मुद्दों को केंद्र के पाले में डाल दिया है. क्या भाजपा इन मुद्दों पर केंद्र सरकार से बात करेगी ?
हर काम को करने की एक प्रक्रिया होती है. इसके तहत ही काम होता है. अगर मानक पूरा करेगी, तो निश्चित तौर पर काम होगा. यह मामला आज का नहीं है. मोदी सरकार तो सिर्फ आठ वर्ष से केंद्र में है. इससे पहले तो कांग्रेस की सरकार रही है. जहां तक सरना कोड का मामला है. इसकी मांग तो पहले से हो रही है. कहीं न कहीं यह मामला फंसा होगा. नहीं तो काम पूरा हो गया होता. हम अभी भी कहते हैं कि यहां के लोगों की भावना है, उसको केंद्र सरकार ध्यान में रखे.
पिछली सरकार में बागी रहे सरयू राय और अमित यादव जैसे कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी. क्या इनकी घर वापसी हो सकती है?
कई लोगों की धीरे-धीरे वापसी हो रही है. जैसे बड़कुवंर गगराई व ताला मरांडी वापस पार्टी में आये. उसी प्रकार से व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग आवेदन दिये जाते हैं. इस पर पार्टी विचार करती है. इसके बाद निर्णय लिये जाते हैं.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है कि भाजपा केवल आरोप लगाती है. बेबुनियाद तथ्य जनता को बताती है. कोई सबूत है, तो कार्रवाई क्यों नहीं करती?
पहली बात कोई आरोप बेबुनियाद नहीं लगाया जाता है. इसके साथ तथ्य जुड़े होते हैं. हेमंत सोरेन ने गड़बड़ी की होगी, तभी तो उन्हें चिंता होती है और तथ्य उजागर हो रहे हैं. जहां तक कार्रवाई का सवाल है, तो वह प्रक्रिया के तहत होता है.
राजभवन का लिफाफा खुल नहीं रहा है. झामुमो बार-बार राजभवन से सच्चाई सामने लाने की बात कह रही है. कुछ मामला है या सिर्फ राजनीति हो रही है?
देखिये पहली बात तो दिल्ली से क्या आया, मुझे नहीं मालूम है. लिफाफे में क्या है, यह भी मैं नहीं बता सकता हूं. हम यही बता सकते हैं कि हेमंत सोरेन ने गड़बड़ी की है. खान व वन मंत्री रहते इन्होंने खनन लीज लिया. यह केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट के तहत गलत है. हम लोगों ने इसको लेकर राज्यपाल को आवेदन दिया. कहा कि मुख्यमंत्री ने गड़बड़ी की है. अभी यह प्रक्रियाधीन है. लेकिन आज भी मैं मानता हूं कि हम लोगों ने जितनी जानकारी ली है, उसके हिसाब से इनकी सदस्यता जायेगी. कानूनविदों की भी यही राय है़. पर कब जायेगी. कैसे जायेगी. यह प्रक्रिया में है. यह हम नहीं बता सकते. यह भी मानता हूं कि हेमंत सोरेन की सदस्यता जानी चाहिए.
आप पुराने भाजपाई रहे हैं. बीच में किसी कारणवश इससे दूर चले गये. पहले की भाजपा और आज की भाजपा में क्या अंतर दिखता है ?
भाजपा जनसंघ के समय से काम कर रही है. उस समय से भाजपा एक देश, एक विधान, एक निशान की वकालत कर रही है. मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद धारा 370 समाप्त हुआ. जम्मू-कश्मीर का स्टेटस झारखंड जैसे अन्य राज्यों की तरह हो गया. पार्टी व्यक्ति नहीं, विचारधारा के तहत काम करती है, लेकिन इसे लागू करने का तरीका हर व्यक्ति का अलग-अलग हो सकता है.
लगभग एक दशक भाजपा से अलग रहना आपकी राजनीतिक भूल रही या परिस्थितियों ने मजबूर कर दिया था.
जो बीत गयी, सो बात गयी.
अंतिम सवाल, क्या झारखंड भाजपा में सब ठीक-ठाक है.
जी, बिल्कुल ठीक-ठाक है.