गुजाराभत्ता शादीशुदा महिला का कानूनी अधिकार : कोर्ट

एजेंसियां, नयी दिल्लीदिल्ली की एक अदालत ने घरेलू हिंसा के एक मामले में पति से अलग हुई महिला और उसके बच्चे को अंतरिम गुजाराभत्ता देने का आदेश खारिज करने से इनकार करते हुए कहा कि ‘अपने पति से गुजाराभत्ते की मांग करना एक शादीशुदा महिला का कानूनी अधिकार है.’ विशेष न्यायाधीश संजय शर्मा ने अदालत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 30, 2014 1:01 PM

एजेंसियां, नयी दिल्लीदिल्ली की एक अदालत ने घरेलू हिंसा के एक मामले में पति से अलग हुई महिला और उसके बच्चे को अंतरिम गुजाराभत्ता देने का आदेश खारिज करने से इनकार करते हुए कहा कि ‘अपने पति से गुजाराभत्ते की मांग करना एक शादीशुदा महिला का कानूनी अधिकार है.’ विशेष न्यायाधीश संजय शर्मा ने अदालत के आदेश के खिलाफ पति की अपील खारिज कर दिया. निचली अदालत ने पति को आदेश दिया कि वह अपनी पत्नी और दो साल के बच्चे को हर माह 8,000 रुपये दे. जज ने कहा ‘यह एक विवाहित महिला का कानूनी अधिकार है कि वह अपने पति से गुजाराभत्ते की मांग करे. यह उसे भीख मांगने से और अभाव से बचाने के लिए है.’ अदालत ने पाया कि पत्नी और बच्चे के अलावा पति पर कोई और अतिरिक्त जिम्मेदारी नहीं है. वह दोनों भी बेहतर जीवन और आम सुख सुविधाओं के हकदार हैं. पति का तर्क : व्यक्ति ने अपनी अपील में तर्क दिया था कि वह गुजाराभत्ता के तौर पर 8000 रुपये प्रतिमाह नहीं दे सकता, क्योंकि उसकी महीने की आय ही 7000 रुपये है, जिसमें से 3000 रुपये प्रति माह मकान का किराया देना पड़ता है. इसलिए वह पत्नी और बच्चों को 8000 रुपये प्रतिमाह किराया नहीं दे सकता. कोर्ट ने खारिज किया : इस पर जज ने उसका तर्क खारिज करते हुए कहा कि व्यक्ति ने अपनी सही आय अदालत से छिपायी. सही दस्तावेज भी नहीं दिखाये. अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया अनुमान के आधार पर पति की मासिक आय 16000 से 18000 रुपये तक हो सकती है. इसलिए उसकी गुजराभत्ता की अपील को खारिज कर दिया.

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