रांची : झारखंड गठन के 23 साल बाद भी राज्य में भूमि सर्वे की सुगबुगाहट तक नहीं है. यहां जमीन के सर्वे के लिए राज्य सरकार के स्तर पर कोई कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकी है. पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दो साल पहले भूमि सर्वे कराने की घोषणा की थी. इसके लिए अधिकारियों को दूसरे राज्यों में जाकर अध्ययन करने का निर्देश दिया था. इसके बावजूद इस दिशा में अब तक कुछ नहीं हो सका है. इधर, विशेषज्ञों का कहना है कि सर्वे नहीं होने की वजह से जमीन के विवाद बढ़ रहे हैं. अगर सर्वे करा कर रैयत को उनकी जमीन का खतियान यानी मलिकाना हक दे दिया जाये, तो जमीन घोटाले नहीं होते. न ही जमीन संबंधी अपराध और भ्रष्टाचार होते. गौरतलब है कि राज्य के चार जिलों रांची, खूंटी, सिमडेगा और गुमला के 875 गांवों में सेटेलाइट मैपिंग के माध्यम से जमीन का सर्वे करना था. इसके लिए आइआइटी रुड़की की ओर से करीब छह साल पहले कार्रवाई की गयी. काफी काम भी हुआ, लेकिन उसका नतीजा धरातल पर नहीं दिख रहा है. ऐसे में यह सर्वे भी फेल रहा है. वहीं, भारत सरकार ने दो साल पहले स्वामित्व योजना की शुरू की थी. इसके तहत राज्य के खूंटी जिले में ड्रोन सर्वे कराने काम पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू हुआ. योजना के तहत हर रैयत को उनके जमीन का मलिकाना हक के लिए सर्वे के बाद कागजात देना था. लेकिन, यहां के लोगों ने ग्रामसभा से बिना अनुमति के सर्वे शुरू करने का विरोध किया. इसके बाद राज्य सरकार ने हस्तक्षेप कर सर्वे पर रोक लगा दी थी. तब से यह सर्वे भी लटका रह गया.
जानकारी के मुताबिक रांची, खूंटी, सिमडेगा और गुमला में 1975 में भूमि का सर्वे शुरू कराया गया था, जो 49 साल में भी पूरा नहीं हुआ. यही स्थिति राज्य के अन्य जिलों की है. धनबाद और बोकारो में 1981, पलामू, गढ़वा, साहिबगंज, दुमका, पाकुड़, जामताड़ा, गोड्डा, देवघर जिले में 1976-77 में सर्वे शुरू हुआ था. पश्चिमी और पूर्वी सिंहभूम में सर्वे हो गया था. वहीं, लोहरदगा में सर्वे हो गया है. वहीं, लातेहार में भी सर्वे हुआ है, पर उसे लेकर अब भी विवाद है.
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