रांची: झारखंड में यह पहला मौका है, जब बिना किसी हिंसक घटना के पांच चरणों का विधानसभा चुनाव संपन्न हो गया. पुलिस के नीचे से ऊपर तक के अफसरों ने लगातार दो माह तक जो मेहनत की, उसका ही नतीजा है कि चुनाव में नक्सली कुछ नहीं कर सके.
सीआरपीएफ व राज्य पुलिस के अधिकारियों से लेकर जवानों तक में बेहतर ताल-मेल होने के कारण ही यह संभव हो पाया. बिना किसी घटना के चुनाव संपन्न कराना मुश्किल काम था, क्योंकि राज्य के 24 में से 20 जिले नक्सल व उग्रवाद प्रभावित हैं. नौ जिले पूरी तरह नक्सलियों की गिरफ्त में हैं. नक्सलियों ने चुनाव का बहिष्कार किया था.
कहीं से भी कोई चूक नहीं हो, इसके लिए डीजीपी राजीव कुमार, एडीजी स्पेशल ब्रांच रेजी डुंगडुंग, एडीजी जैप केएन चौबे, आइजी ऑपरेशन मुरारीलाल मीणा ने सभी 24 जिलों में जाकर हालात की समीक्षा की और सुरक्षा तैयारियों को अंतिम रूप दिया. अधिकारियों ने जहां रणनीति बनायी, वहीं जवानों ने भी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया और नक्सलियों के हर मंसूबे को विफल कर दिया. सबसे अधिक खतरा पहले चरण के चुनाव में था.
पूरा का पूरा इलाका नक्सल प्रभावित था. पुलिस व मतदानकर्मियों को बूथों तक पहुंचने के लिए 12-14 किमी तक पैदल चलना पड़ा. दूसरे व तीसरे चरण में खतरा कम तो हुआ, पर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था. चौथे व पांचवें चरण में खतरा न के बराबर था, लेकिन डर यह कि पिछले लोकसभा चुनाव में दुमका में लापरवाही के कारण नक्सलियों ने पुलिस पर हमला कर दिया था.
लेकिन इस बार हर स्तर पर सुरक्षा तैयारियों को मजबूत बनाया गया. पुलिस को सबसे अधिक सफलता उस रणनीति के कारण मिली, जिसके तहत चुनाव से एक दिन पहले से नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाया गया. अभियान चलने के कारण नक्सली अपनी मांद में ही रह गये और चुनाव के दौरान कुछ कर नहीं सके.