95 गावों में बाल मित्र पंचायत
बच्चे ही उठाते हैं बच्चों के मुद्दे रांची : झारखंड में ग्राम सभा/पंचायतों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. अधिकांश क्षेत्रों में पंचायतों के प्रतिनिधियों को अपने अधिकारों से संबंधित जानकारी नहीं है और न ही पंचायतें अपने क्षेत्र में काम करा पा रही हैं. इसी कमी को पूरा कर रहे हैं गांव के बच्चे. […]
बच्चे ही उठाते हैं बच्चों के मुद्दे
रांची : झारखंड में ग्राम सभा/पंचायतों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. अधिकांश क्षेत्रों में पंचायतों के प्रतिनिधियों को अपने अधिकारों से संबंधित जानकारी नहीं है और न ही पंचायतें अपने क्षेत्र में काम करा पा रही हैं. इसी कमी को पूरा कर रहे हैं गांव के बच्चे.
रांची एवं खूंटी के 95 गांवों में बाल मित्र ग्राम एवं पंचायतें चल रही हैं. पिछले कुछ वर्षो से सफलता पूर्वक काम कर रही हैं. इन पंचायतों का गठन मुख्यत: बाल अधिकारों को लेकर किया गया था. इसमें शामिल सदस्य अपने-अपने गांवों में बच्चों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विमर्श करते हैं. ये भी त्रिस्तरीय व्यवस्था के आधार पर काम कर रहे हैं. बच्चों के ये संगठन ग्राम स्तर, पंचायत स्तर व प्रखंड स्तर पर काम कर रहे हैं.
कैसे हुई बाल मित्र गांवों की शुरुआत
भारतीय किसान संघ नामक स्वयंसेवी संस्था ने अप्रैल 2009 में रांची के चान्हो प्रखंड स्थित 15 गांवों में बाल मित्र गांवों को प्रायोगिक तौर पर शुरू किया था. शुरुआत लेप्सर, नुन्हू, मधुकम, हर्रा, माचाटोली, लुंडरी, बरहे, रानीचांचो सहित अन्य गांवों से हुई थी. प्रत्येक गांव में एक-एक बाल मित्र ग्राम का गठन किया गया. एक बाल मित्र ग्राम में दस बच्चे शामिल होते हैं. बच्चे खुद ही अपना नेता चुनते हैं. इन बच्चों को संस्था की ओर से बाल अधिकार, शिक्षा का अधिकार, बाल श्रम से संबंधित जानकारी दी जाती है. अलग-अलग गांवों से पंचायत स्तर व विभिन्न पंचायतों से प्रखंड स्तर पर इन बच्चों का चयन किया गया है.
अब पंचायत के सदस्य स्कूल नहीं जानेवाले बच्चों को चिह्न्ति करते हैं. उनके अभिभावकों से बात कर उन्हें स्कूल भेजने के लिए राजी करते हैं. बाल श्रम करनेवाले बच्चों के अभिभावकों को भी जानकारी देते हैं कि बच्चों से काम कराने की अपेक्षा वे उन्हें स्कूल भेजें. ये बच्चे नुक्कड़ नाटकों के जरिये भी अपनी बातें रखते हैं. साथ ही बाल पंचायतों के मुद्दों को ग्राम सभा/पंचायतों में भी रखते हैं. ये बच्चे बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठा रहे हैं.चान्हो में बाल पंचायतों की सफलता को देखते हुए 2012 से खूंटी के 40 गांवों में भी बाल पंचायतें शुरू की गयीं. बाद में इनमें 40 और गांव जुटे.