इंडियन ऑयल को पाइप लाइन बिछाने के लिए बाजार दर से अधिक देना मंजूर

परियोजना को सितंबर 2012 तक पूरा करने का लक्ष्य था रांची : इंडियन ऑयल की पारादीप-खूंटी पाइपलाइन परियोजना समय से तीन साल पीछे चल रही है. इसके बनने से पारादीप रिफाइनरी से सीधे पाइपलाइन के जरिये पेट्रोल, डीजल व किरोसिन रांची तक पहुंचाया जा सकेगा. इस परियोजना को सितंबर 2012 तक पूरा किया जाने का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 19, 2015 9:14 AM

परियोजना को सितंबर 2012 तक पूरा करने का लक्ष्य था

रांची : इंडियन ऑयल की पारादीप-खूंटी पाइपलाइन परियोजना समय से तीन साल पीछे चल रही है. इसके बनने से पारादीप रिफाइनरी से सीधे पाइपलाइन के जरिये पेट्रोल, डीजल व किरोसिन रांची तक पहुंचाया जा सकेगा. इस परियोजना को सितंबर 2012 तक पूरा किया जाने का लक्ष्य था, जिसे अभी बढ़ा कर मार्च 2016 किया गया है. परियोजना में झारखंड में 98 किमी तक पाइप लाइन बिछायी जानी है और खूंटी में 32 एकड़ में अत्याधुनिक प्लांट बनाना है.

लेकिन दोनों ही चीजों में सरकारी व्यवधान के कारण देर हो रही है. अभी तक मात्र 70 किमी तक ही पाइप बिछ पाये हैं. इसी तरह कंपनी को 32 एकड़ के स्थान पर खूंटी में 28 एकड़ भूमि

दी गयी है, जिससे डिपो का

निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पा रहा है. सरकार ने 32 एकड़ जमीन देनी की बात कही थी.

जमीन का मामला आरआर पॉलिसी यानी पुनर्वास व पुन:स्थापन नीति लागू किये जाने के कारण अटका हुआ है. कंपनी के सूत्रों के अनुसार शुरुआत में ऐसी कोई बात नहीं थी. पूरी जमीन 60 साल से सरकार के कब्जे में थी. यह जमीन कृषि विभाग की थी. पहले यहां बीज संस्करण का काम होता था. बाद में सरकार ने आरआर पॉलिसी लागू कर दी. इस कारण कंपनी का काम अटक गया. कंपनी के अधिकारियों के अनुसार जमीन पर न तो किसी का घर है और न ही यह किसी की आजीविका का साधन है.

दोनों चीजें रहने पर ही यह पॉलिसी लागू होती है. इंडियन ऑयल ने बाजार दर से ज्यादा पर जमीन की कीमत चुकाने को मंजूरी दी है. स्थानीय प्रशासन के पास यह मामला लंबित है. कंपनी का कहना है कि शुरुआत में बतायी गयी जमीन के अनुसार ही पूरा प्रोजेक्ट डिजाइन किया गया है. खूंटी उपायुक्त के निर्देश के अनुसार कंपनी ने मुआवजे की राशि भी सरकार के पास जमा करा दी थी. जमीन नहीं मिलने के कारण बाउंड्री का काम पूरा नहीं हो पा रहा है. बिना बाउंड्री बनाये उपकरणों को लगाना संभव नहीं है.

लागत भी बढ़ी

जब इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गयी थी, तो झारखंड में 164 करोड़ रुपये खर्च होने थे, जिसमें अब 300 करोड़ से ज्यादा राशि खर्च होने का अनुमान है. इसके साथ ही कंपनी का कारोबार भी प्रभावित हो रहा है.

नयी सरकार से उम्मीद

इंडियन ऑयल के अधिकारियों को नयी सरकार से उम्मीद है कि इस मामले को जल्द सुलझाया जायेगा. मामले को लेकर मुख्यमंत्री से जल्द मुलाकात की जायेगी. कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी इसके लिए जल्द ही झारखंड आयेंगे.

बनने से फायदा ही फायदा

परियोजना के शुरू होने से न केवल कंपनी को बल्कि सरकार व लोगों को भी फायदा होगा. सरकार को पूरा वैट मिलेगा. साथ ही एक्साइज डय़ूटी, जो अभी हल्दिया या बरौनी को मिल रहा है, झारखंड के हिस्से में आ जायेगा. बड़ी संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार भी मिलेगा. इस परियोजना से प्रदूषण नहीं होता. इससे सरकार को कार्बन क्रेडिट का लाभ भी मिलता. वहीं कुछ कम कीमत पर पेट्रोल-डीजल मिलते. कारण कि पाइपलाइन से ट्रांसपोर्टेशन रेलवे की तुलना में काफी सस्ता पड़ता है. ट्रांसपोर्टेशन कीमत में लगभग 30 प्रतिशत की कमी आती.

अन्य कंपनियां भी बना पातीं अपने डिपो

इंडियन ऑयल द्वारा बनाये जा रहे डिपो का काम पूरा होता और सरकार जमीन देती, तो दो और तेल कंपनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम के डिपो भी वहां बन पाते. पूरे देश में जहां भी रिफाइनरी से पाइपलाइन द्वारा तेल पहुंचने की व्यवस्था है, वहां तीनों तेल कंपनियां अपना डिपो बनाती हैं. इससे खर्च में कमी आती है. तेल कंपनियां साझा तौर पर इनका इस्तेमाल करतीं. लेकिन झारखंड में तो एक कंपनी के लिए भी जरूरत भर जमीन नहीं मिल पा रही है.

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