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298 एकड़ वन भूमि बिक्री की जांच 10 साल बाद भी नहीं, दस्तावेज भी गायब

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) 10 साल में भी 298.50 एकड़ वन भूमि बेचने के मामले की जांच पूरी नहीं कर पायी है. बेची गयी वन भूमि की कीमत 100 करोड़ रुपये से अधिक आंकी जा रही है

By Prabhat Khabar News Desk | September 15, 2020 1:55 PM

शकील अख्तर, रांची : भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) 10 साल में भी 298.50 एकड़ वन भूमि बेचने के मामले की जांच पूरी नहीं कर पायी है. बेची गयी वन भूमि की कीमत 100 करोड़ रुपये से अधिक आंकी जा रही है. इस बीच जालसाजी कर वन भूमि बेचने के इस मामले से जुड़े दस्तावेज भी विभाग से गायब हो गये हैं. इस मामले में सिर्फ इतना ही हो सका है कि अभियुक्त बनाये गये राज्य वन सेवा के अधिकारी प्रवेश अग्रवाल को सिमडेगा में वन प्रमंडल पदाधिकारी के पद पर पदस्थापित कर दिया गया है.

प्रवेश अग्रवाल को प्रोन्नत कर भारतीय वन सेवा का अधिकारी बनाने की प्रक्रिया के दौरान हुई शिकायत के बाद इस मामले का खुलासा हुआ. इस सिलसिले में वन विभाग द्वारा मांगी गयी जानकारी के आलोक में एसीबी ने अपना जवाब भेजा है. इसमें कहा गया है कि हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल में जालसाजी कर 298.50 एकड़ जमीन बेचने के आरोप में एसीबी थाने में प्राथमिकी (42/10) दर्ज है.

मुख्य बातें

  • अधिकारी की प्रोन्नति प्रक्रिया के दौरान मिली शिकायत से हुआ खुलासा

  • जालसाजी कर हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल में बेची गयी वन भूमि की कीमत करीब \”100 करोड़ आंकी गयी

  • राज्य वन सेवा के अधिकारी प्रवेश अग्रवाल, तत्कालीन अमीन निरीक्षक समेत अन्य बनाये गये थे अभियुक्त

16 सितंबर 2010 को दर्ज प्राथमिकी की जांच अभी चल रही है. प्राथमिकी में पश्चिमी वन प्रमंडल में पड़नेवाले गांवों के मैप में हेराफेरी कर 298.80 एकड़ वन भूमि को नक्शे से बाहर करने का आरोप है. इसके अलावा साजिश के तहत वन भूमि की बाउंड्री निर्धारित करने के लिए लगाये गये पिलर को उखाड़ने, नक्शे से हस्ताक्षर मिटाने और ओवर राइटिंग करने का आरोप लगाया गया है.

ये हैं आरोप

  • हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल के गांवों के मैप में हेराफेरी कर 298.80 एकड़ वन भूमि को नक्शे से बाहर किया

  • वन भूमि की बाउंड्री तय करने के लिए लगाये गये पिलर उखाड़े, नक्शे से हस्ताक्षर मिटाये और ओवर राइटिंग की

सरकार ने की थी प्रोन्नति की अनुशंसा

राज्य सरकार ने प्रवेश अग्रवाल को प्रोन्नत कर भारतीय वन सेवा में नियुक्त करने के लिए केंद्र सरकार से अनुशंसा की थी. अग्रवाल को भारतीय वन सेवा में प्रोन्नत करने की चल रही प्रक्रिया के दौरान किसी ने केंद्र सरकार से इस अधिकारी के खिलाफ निगरानी में प्राथमिक दर्ज होने की शिकायत की. इसके बाद केंद्र ने राज्य सरकार से विस्तृत जानकारी मांगी. विभागीय स्तर पर इस मामले में हुई खोजबीन के दौरान प्रवेश अग्रवाल के खिलाफ निगरानी में प्राथमिकी दर्ज होने से संबंधित किसी तरह के दस्तावेज नहीं मिले.

अब तक समर्पित नहीं किया गया आरोप पत्र

आइपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज इस प्राथमिकी में तत्कालीन अमीन निरीक्षक सुधीर कुमार सिन्हा सहित अन्य अधिकारियों को अभियुक्त बनाया गया है. निगरानी की ओर से सरकार को भेजे गये जवाब में कहा गया है कि राज्य वन सेवा के अधिकारी प्रवेश अग्रवाल के खिलाफ अब तक आरोप पत्र समर्पित नहीं किया गया है. इस सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी में अभी जांच जारी है.

Post by : Pritish Sahay

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