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आज हेमंत के साथ बैठेंगे प्रदीप यादव, विपक्षी एकता की कवायद
रांची : प्रदेश में विपक्षी दलों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की कवायद चल रही है. झाविमो ने इसके लिए पहल की है. प्रदेश में रघुवर दास की सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दल एक साथ आयेंगे. मंगलवार को झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव झामुमो नेता हेमंत सोरेन के साथ बैठक करेंगे. […]
रांची : प्रदेश में विपक्षी दलों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की कवायद चल रही है. झाविमो ने इसके लिए पहल की है. प्रदेश में रघुवर दास की सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दल एक साथ आयेंगे.
मंगलवार को झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव झामुमो नेता हेमंत सोरेन के साथ बैठक करेंगे. दुमका में दोनों ही दल आगे की रणनीति पर फैसला लेंगे. झाविमो की कोशिश है कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश और स्थानीयता के मुद्दे पर विपक्षी दलों में एकता कायम हो.
सूचना के मुताबिक जल्द ही विपक्षी दलों की बैठक होगी. इसमें वामपंथी दलों के साथ-साथ झारखंड नामधारी दलों को जोड़ा जायेगा. झाविमो ने इसके लिए पूर्व विधायक बंधु तिर्की से भी बात की है. इस साझा आंदोलन के लिए माले, फारवर्ड ब्लॉक, माकपा और भाकपा से भी बात बढ़ायी जायेगी. पूरी मुहिम को झाविमो और झामुमो मिल कर लीड करेंगे. इधर झाविमो नेता प्रदीप यादव ने कहा है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अपनी जगह है. राज्य के लिए दोनों सवाल अहम हैं.
वर्तमान समय में अगर हम चुप रह गये, तो राज्य के लोगों के साथ नाइंसाफी हो जायेगी. हमारी कोशिश है कि विपक्ष की कारगर एकता के साथ आंदोलन को प्रभावी बनाया जाये. झामुमो के हेमंत सोरेन से इन्हीं मुद्दों को लेकर बातचीत करनी है. राज्य के नौजवानों के साथ धोखा हो रहा है.
पिछले दिनों संस्कृत और हिंदी जैसे विषयों में हुई नियुक्ति में 70 फीसदी से ज्यादा लोग दूसरे राज्यों से हैं. उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोगों को नौकरी मिली है. यह भी सही है कि ये चूक पहले की सरकार से हुई है, लेकिन अब चुप रहने से राज्य का नुकसान है. भाजपा की सरकार इस दिशा में प्रयास करे. राज्य में कोई ना कोई कट ऑॅफ डेट होना चाहिए. यहां नियुक्ति में बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश,राजस्थान तक के राज्यों के लिए दरवाजा-खिड़की नहीं खोल सकते हैं.
पहली बार साथ आयेंगे झाविमो-झामुमो
प्रदेश की राजनीति में पहली बार झाविमो-झामुमो की दूरी खत्म होने वाली है. साझा आंदोलन के लिए पहली बार दोनों दल साथ होंगे. इससे पहले कभी भी झाविमो और झामुमो के बीच किसी मोरचे पर गंठबंधन नहीं हुआ. आंदोलन के नाम पर दूरी पटने वाली है. संताल परगना से लेकर दूसरे जगहों पर एक दूसरे के जबरदस्त राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. इस मोरचे में कांग्रेस आती है, तो लंबे समय के बाद झाविमो और कांग्रेस की बात बनेगी.
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