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रैयतों की जमीन बचाये सरकार

रांची: अधिवक्ता सामुएल सोरेन ने कहा कि यहां के कानूनों में संताल परगना में भूमि व रैयतों की सुरक्षा के अनेक प्रावधान हैं, पर उनके विवेकपूर्ण व्यवहार के अभाव में यहां के आदिवासी व मूलवासी रैयत भूमिहीन हो रहे हैं. एक बड़ी आबादी उनकी भूमि का अतिक्रमण कर चुकी है. जमीन को लेकर झगड़े आम […]

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रांची: अधिवक्ता सामुएल सोरेन ने कहा कि यहां के कानूनों में संताल परगना में भूमि व रैयतों की सुरक्षा के अनेक प्रावधान हैं, पर उनके विवेकपूर्ण व्यवहार के अभाव में यहां के आदिवासी व मूलवासी रैयत भूमिहीन हो रहे हैं. एक बड़ी आबादी उनकी भूमि का अतिक्रमण कर चुकी है. जमीन को लेकर झगड़े आम हो चुके हैं.

यदि अवैध दखलदारों को कानूनी प्रक्रिया से जल्द बाहर नहीं निकाला गया, तो निकट भविष्य में यहां के आदिवासियों व मूलवासियों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा. वह बुधवार को ‘संवाद’ की ओर से आयोजित ‘झारखंड में भूमि संबंध व काश्तकारी अधिनियम विषयक दो दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला के समापन के मौके पर बोल रहे थे. आयोजन पुरूलिया रोड स्थित एसडीसी सभागार में किया गया.

संताल में 1,61,000 एकड़ से अधिक जमीन ली
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से विकास के नाम पर संताल परगना में रैयतों की 1,61,000 एकड़ से अधिक जमीन मसानजोर डैम, पैनम कोल माइंस, इसीएल, रेल, सड़क, पत्थर उत्खनन और सरकारी व निजी उपक्रमों की स्थापना के लिए सरकार द्वारा ली गयी है. उन्होंने संताल परगना अधिनियम 1855, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949, भूमि की बंदोबस्ती, ग्राम प्रधान व रैयतों के अधिकार, संताल सिविल रूल और प्रथागत कानून पर विस्तार से जानकारी दी. इस मौके पर गुलाब चंद, श्रवणी, राज कुमार, एनी टुडू, साल्गे मार्डी, जितेंद्र सिंह, सुरेंद्र बिरुली, सिद्धेश्वर सरदार व अन्य मौजूद थे.

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