पांच मेसो अस्पताल अब भी शुरू नहीं

रांची: राज्य के जनजातीय इलाके (मेसो क्षेत्र) में बने पांच नये मेसो अस्पताल का संचालन फंस गया है. इसके लिए निकले टेंडर में विवाद हो जाने के कारण ऐसा हुआ है. कल्याण विभाग ने राज्य भर में कुल 14 मेसो अस्पताल बनाने का निर्णय वर्ष 2003 में लिया था. पर इनमें से पांच अस्पतालों का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 18, 2015 6:08 AM
रांची: राज्य के जनजातीय इलाके (मेसो क्षेत्र) में बने पांच नये मेसो अस्पताल का संचालन फंस गया है. इसके लिए निकले टेंडर में विवाद हो जाने के कारण ऐसा हुआ है. कल्याण विभाग ने राज्य भर में कुल 14 मेसो अस्पताल बनाने का निर्णय वर्ष 2003 में लिया था.

पर इनमें से पांच अस्पतालों का संचालन 12 वर्ष बाद भी शुरू नहीं हो सका है. इससे पहले कुल 14 में से नौ अस्पतालों का संचालन विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं व अस्पतालों के माध्यम से फरवरी 2009 से हो रहा है. पांच वर्ष के लिए संस्थाओं को दिये गये इन अस्पतालों की संचालन अवधि मार्च 2014 में समाप्त हो गयी है.

इसके बाद सरकार ने पुराने नौ तथा बाद में बने पांच नये अस्पतालों के संचालन के लिए एक साथ टेंडर निकाला. इसी बीच नौ अस्पतालों का पहले से संचालन कर रही संस्थाओं ने हाइकोर्ट में इस टेंडर के खिलाफ यह कह कर अपील की कि जो अस्पताल का संचालन पहले से कर रहे हैं, उन्हें ही सभी अस्पताल फिर से दे दिये जायें. इधर, हाइकोर्ट ने अभी पांच फरवरी को सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है. अब फिर से इनका टेंडर होगा.

जैसे-तैसे चल रहे हैं अस्पताल : मार्च 2014 के बाद से सरकार ने संबंधित संस्थाओं-अस्पतालों को संचालन मद की राशि देना बंद कर दिया है. सरकार संस्थाओं को प्रति अस्पताल सालाना 1.59 करोड़ रुपये का भुगतान करती थी. इधर संबंधित संस्थाएं भुगतान की उम्मीद में जैसे-तैसे इन अस्पतालों का संचालन अब भी कर रही हैं. अनगड़ा के जोन्हा में रिंची ट्रस्ट द्वारा संचालित अस्पताल में जहां पहले हर रोज दो से तीन सौ मरीज आते थे, वहीं अब इनकी संख्या 40-50 हो गयी है. इधर नये बने पांच अस्पतालों की हालत भी अनुपयोगी रहने के कारण खराब हो रही है. गौरतलब है कि इन अस्पतालों की निर्माण लागत प्रति अस्पताल करीब 1.3 करोड़ रुपये है. गरीबों को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने वाले ये अस्पताल 50 बेड के हैं. इनमें डिलिवरी सहित फस्र्ट रेफरल यूनिट (एफआरयू) की सुविधा देनी है.

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