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अभियान: राज्य से गायब बच्चों को तलाशने के लिए, ऑपरेशन मुस्कान शुरू

रांची: झारखंड के जिलों से गायब बच्चों की तलाश के लिए झारखंड पुलिस ने ऑपरेशन मुस्कान की शुरुआत की है. ऑपरेशन के तहत राज्य के लापता बच्चों को देश के किसी भी कोने से ढूंढ निकालने का बीड़ा उठाया गया है. बच्चों को बरामद कर उनके परिजनों को सौंपा जायेगा. वहीं जिन बच्चों के परिजनों […]

रांची: झारखंड के जिलों से गायब बच्चों की तलाश के लिए झारखंड पुलिस ने ऑपरेशन मुस्कान की शुरुआत की है. ऑपरेशन के तहत राज्य के लापता बच्चों को देश के किसी भी कोने से ढूंढ निकालने का बीड़ा उठाया गया है. बच्चों को बरामद कर उनके परिजनों को सौंपा जायेगा. वहीं जिन बच्चों के परिजनों का पता नहीं चल पायेगा, उनके लिए पुनर्वास की व्यवस्था की जायेगी. ऑपरेशन की शुरुआत डीजीपी डीके पांडेय के निर्देश पर रविवार से कर दी गयी. ऑपरेशन की विधिवत रूप से शुरुआत अप्रैल माह से होगी. सीआइडी को इसका नोडल एजेंसी बनाया गया है. यह जानकारी रविवार को अपने आवासीय कार्यालय में मीडिया को संबोधित करते हुए सीआइडी एडीजी एसएन प्रधान ने दी.
एडीजी ने कहा कि झारखंड में पिछले पांच-छह साल में करीब 3008 बच्चे गायब हुए, जिनमें 2007 बच्चे बरामद किये जा चुके हैं. इसकी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को भेजी गयी है. कई वैसे बच्चे भी गायब हैं, जिनका रिकॉर्ड पुलिस के पास नहीं है. झारखंड के शहरी क्षेत्र से अधिकांश बच्चे गायब होते हैं. ह्यूमन ट्रैफिकिंग के पीछे प्रमुख कारण नक्सलवाद है. गायब बच्चों में से कुछ नक्सलियों के पास भी हैं.
एडीजी ने बताया कि ऐसा ही ऑपरेशन गाजियाबाद पुलिस (ऑपरेशन स्माइल) चला रही है. केंद्रीय गृह मंत्रलय का भी निर्देश है कि झारखंड में ऐसा ऑपरेशन शुरू हो. एडीजी ने बताया कि गायब बच्चों के बारे सूचना देने के लिए अलग-अलग हेल्पलाइन नंबर हैं. सभी हेल्पलाइन नंबरों को जल्द ही भारत सरकार द्वारा जारी टॉल फ्री हेल्पलाइन नंबर 1098 से जोड़ा जायेगा. बच्चों को बरामद करने के लिए भारत सरकार का ट्रैक द चाइल्ड जो वेब पोर्टल है, उससे सभी वेबसाइट को जोड़ा जायेगा.
एडीजी के अनुसार सीआइडी को सूचना है कि झारखंड के कुछ बच्चे कर्नाटक और उतराखंड में हैं. उन बच्चों के घर की जानकारी ली जा रही है. झारखंड से अधिकांश लोग दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और बंगलुरु काम करने के लिए जाते हैं, लेकिन बाद में वे ह्यूमन ट्रैफिकिंग के शिकार हो जाते हैं. गायब बच्चों को तलाशने के लिए एनजीओ की भी मदद ली जायेगी. झारखंड में पुनर्वास के लिए आवास की संख्या कम हैं. इसमें भी वृद्धि की जायेगी. झारखंड सरकार से पहले से काफी फंड पड़ा हुआ है.

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