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एक रिपोर्टर के दोस्त की मौत की खबर

रजनीश कुमार रांची : पिछले साल 6 दिसंबर को पंकज साव की शादी हुई थी. मैंने उनसे मजाक करते हुए कहा था कि क्या भैया आपने बाबरी विध्वंस की तारीख चुनी. उन्हें ताने मारते हुए कहा, तब तो आपकी शादी में आने से रहा. पंकज को केवल शादी की तारीख याद थी. वह सिडनी से […]

रजनीश कुमार
रांची : पिछले साल 6 दिसंबर को पंकज साव की शादी हुई थी. मैंने उनसे मजाक करते हुए कहा था कि क्या भैया आपने बाबरी विध्वंस की तारीख चुनी. उन्हें ताने मारते हुए कहा, तब तो आपकी शादी में आने से रहा. पंकज को केवल शादी की तारीख याद थी. वह सिडनी से दिल्ली शादी की तैयारी के सिलिसले में ही आये थे. इनकी शादी बनारस में हुई. इनकी पत्नी ऋतु बनारस में ही इलाहाबाद बैंक में जॉब करती हैं.
दो अप्रैल की वह मनहूस रात
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में आधी रात गुजर चुकी थी. पंकज आधी रात बाद अपनी पत्नी से फोन पर बात कर रहे थे. बनारस में तब सुबह के 8 बज रहे थे. जिनकी मुश्किल से तीन महीने पहले शादी हुई है, वे फोन पर क्या बात कर सकते हैं. शादी के बाद लंबा वक्त साथ न बिताने की कसक, दोनों के बीच लंबी दूरियां. पंकज इन दूरियों को पाटने में लगे थे. अगले महीने इनकी पत्नी बनारस से एक साल के लिए सिडनी जानेवाली थीं.
शायद पंकज फोन पर अपनी पत्नी को बता रहे होंगे कि तुम आओगी तो कितना अच्छा हो जायेगा. उनकी पत्नी भी फोन पर ही सिडनी को देख रही होंगी. वह ऑस्ट्रेलिया की सड़कों पर पंकज की उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसाए घूमने की तमन्ना के साथ सिडनी की रात और बनारस के दिन को एक करना चाह रही होंगी. इन्हीं बातों के बीच पंकज सिडनी में नॉर्थ-वेस्ट के जिस अपार्टमेंट में रहते थे, उसकी बाल्कनी से गिर गये. वह अपार्टमेंट के तीसरी मंजिल पर रहते थे. बॉल्कनी से ही रात के एक बजे अपनी पत्नी से बात कर रहे थे. बाल्कनी की रेलिंग लकड़ी की थी और वह अचानक टूट गयी. इसके साथ ही पंकज का जीवन भी खत्म हो गया. दोनों की बातें अधूरी रह गयीं. इनकी पत्नी का फोन आता रहा. इस बार फोन पंकज ने नहीं, बल्कि पुलिस ने रिसीव किया और बताया उनकी मौत हो चुकी है.
आइटी एनालिस्ट थे पंकज
29 साल के पंकज साव टेक महिंद्रा कंपनी में आइटी ऐनालिस्ट थे. सिडनी से पहले वह पुणो में थे. एक साल बाद वह फिर से पुणो लौटने वाले थे. अब पंकज नहीं, उनका शव वतन आयेगा. बाल्कनी से गिरने के बाद पंकज के सिर में गंभीर चोट लगी थी.
गिरिडीह से पहुंचे थे सिडनी
पंकज झारखंड के गिरिडीह से सिडनी पहुंचे थे. इनके पिता गांव में ही साधारण सा बिजनेस करते हैं. अपने शुभम भैया के जरिए इनसे मुलाकात हुई थी. दोनों क्लासमेट थे. पंकज एक सरकारी नौकरी करना चाहते थे, लेकिन शुभम इनकी प्रतिभा को पहचानते थे. सरकारी नौकरी को लेकर शुभम पंकज को हमेशा कोसते थे. फिर पकंज ने ग्रेजुएशन के बाद एमसीए करने का फैसला किया. निमA मध्यवर्गीय परिवार से आनेवाले पंकज के छोटे सपने थे. रांची का वह छोटा सा कमरा. स्टोव के जलने की आवाज. स्टोव पर पकते दाल, भात और चोखा. फिर रात में बनती रोटियां.
एक-दूसरे के खाने को लेकर ताने. फिर पंकज की पढ़ाई की रातें. साथ में देखी गयी फिल्में. रांची की सड़कों पर पी गयी चाय. कितनी बातों को याद करूं. रांची में 2006 के बाद पिछले साल नंवबर में इनसे दिल्ली में मुलाकात हुई. पंकज भैया हैंडसम दिख रहे थे. गिरिडीह की परवरिश पर सिडनी की चमक साफ दिख रही थी. इन्हें देख मन खुश हो गया. पंकज दिल्ली में मेरे कमरे पर रु के थे. तब उनकी शादी नहीं हुई थी. वह घंटों अपनी होनेवाली पत्नी से बातें करते रहे. रात में हमने लिट्टी और चिकन खाये. लंबी बातें की. रांची से लेकर बनारस और सिडनी तक. रात खत्म हुई. सुबह वह चले गये. जाते वक्त उन्होंने कहा शादी में जरूर आना.
अब शव का इंतजार
पिता अब अपने बेटे के शव का इंतजार कर रहा है. पत्नी सोच रही होगी कि काश गुरु वार रात मैं बात ही न करती. क्या बनारस में उस पत्नी की लोग चूड़ियां तोड़वायेंगे. रंगीन कपड़ों की जगह सफेद लिबास में लिपटने को कहेंगे. पंकज से गुरु वार की रात अधूरी बची बातों को लोग भूलने को कहेंगे. प्लीज ऋतु को कोई कुछ मत कहना.
ऋ तु तुम्हारी और पंकज की बातें पूरी नहीं हो पायीं. सिडनी की रात और बनारस के दिन अब कभी नहीं मिल पायेंगे. ऋतु तुम्हें हनीमून का वह वक्त भी याद आयेगा. इस वक्त ने तुम पर कहर ढाया. पर ऋतु तुम्हारे गम में हम साथ हैं. मैं पंकज की मौत की खबर लिख रहा हूं. तुम मत पढ़ना ऋतु. यह तुम्हारे लिए नहीं है. यह सपनों की अधूरी यात्राा पर थम जानेवालों के लिए है. तुम्हारी यात्रा खत्म नहीं हुई.
साभार नवभारत टाइम्स

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