सौ फीसदी जनजातीय आबादीवाले 1070 गांव घटे
संजय रांची : राज्य योजना पर्षद ने जनजातीय (शिडय़ूल ट्राइब या एसटी) गांवों से संबंधित आंकड़े तैयार किये हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर तैयार ये आंकड़े राज्य भर में सौ फीसदी जनजातीय आबादी वाले गांवों की कुल संख्या के हैं. वर्ष 2001 से इसकी तुलना करने पर यह पाया गया कि गत […]
संजय
रांची : राज्य योजना पर्षद ने जनजातीय (शिडय़ूल ट्राइब या एसटी) गांवों से संबंधित आंकड़े तैयार किये हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर तैयार ये आंकड़े राज्य भर में सौ फीसदी जनजातीय आबादी वाले गांवों की कुल संख्या के हैं. वर्ष 2001 से इसकी तुलना करने पर यह पाया गया कि गत 10 वर्षो (2001-11) के दौरान राज्य भर में ऐसे गांवों की संख्या 1070 घटी है. हालांकि इन वर्षो में कुल जनजातीय आबादी 15.5 लाख बढ़ी है.
जानकारों के अनुसार सौ फीसदी जनजातीय आबादी वाले गांव घटने की वजह इन गांवों में अनुसूचित जाति या पिछड़ा वर्ग सहित अन्य समुदायों का समाहित होना है. यानी अब उन गांवों में गैर जनजातीय लोग भी रहते हैं, जिससे ये गांव सौ फीसदी जनजातीय आबादी वाले नहीं रहे.
कुछ छोटे गांवों से सभी लोगों का पलायन कर जाना भी एक कारण हो सकता है, पर इसकी पुष्टि नहीं हुई है. वहीं राज्य के दो जिले ऐसे हैं, जहां सौ फीसदी जनजातीय आबादीवाले गांवों की संख्या बढ़ गयी है. इनमें गढ़वा (एक गांव बढ़ा) व कोडरमा (चार गांव बढ़े) शामिल हैं. वहीं रामगढ़ व हजारीबाग को पहले की तरह एक जिला मानने पर यहां भी ऐसे दो गांव बढ़े हैं. बढ़े हुए गांव संभवत: नये बसे गांव हो सकते हैं.
आंकड़े के अनुसार, गैर जनजातीय आबादी का सबसे ज्यादा मिश्रण दुमका में हुआ है. यहां 290 गांव सौ फीसदी वाली सूची से बाहर हो गये हैं. इसके बाद दूसरा स्थान साहेबगंज का है. जहां 188 गांवों में गैर जनजातीय आबादी बस गयी. तीसरा स्थान पाकुड़ है, जहां 133 गांव पूरी तरह जनजातीय नहीं रहे. वर्ष 2001 की जनगणना 18 जिलों के आधार पर है.
वहीं वर्ष 2011 की जनगणना के वक्त जिलों की कुल संख्या 24 है. इस दौरान पुराने जिलों से अलग कर छह नये जिले (जामताड़ा, सरायकेला-खरसांवा, सिमडेगा, लातेहार, रामगढ़ व खूंटी) बनाये गये हैं. जनजातीय गांवों के घटने-बढ़ने का अंतर नीचे की सूची में दिये गये हैं.