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National Games : उत्तराखंड नेशनल गेम्स में केवल 16 खेलों में भाग लेगा झारखंड

झारखंड ने 2011 में 34वें राष्ट्रीय खेल की मेजबानी की और हमारे खिलाड़ियों ने 96 पदक अपने नाम किये

दिवाकर सिंह, रांची झारखंड ने 2011 में 34वें राष्ट्रीय खेल की मेजबानी की और हमारे खिलाड़ियों ने 96 पदक अपने नाम किये, लेकिन इसके बाद खेलों की संख्या के साथ-साथ पदकों की संख्या में भी कमी आती गयी. हाल ये है कि उत्तराखंड में 28 जनवरी से होनेवाले 38वें नेशनल गेम्स में झारखंड केवल 16 खेलों में अपनी दावेदारी पेश कर रहा है. इनमें से भी चार इवेंट काे टोकन पार्टिसिपेशन के रूप में शामिल किया गया है. कुछ महत्वपूर्ण खेल भी सूची से गायब हैं, जिनमें बैडमिंटन, वॉलीबॉल, फुटबॉल के दोनों वर्ग, पुरुष हाॅकी, टेनिस, शूटिंग शामिल हैं. 14 साल पहले मेजबानी के साथ हमें विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर मिला, लेकिन हम आगे बढ़ने के बजाय पीछे होते गये.

चार ‘टोकन’ खेल शामिल

28 जनवरी 2025 से होने वाले 38वें राष्ट्रीय खेल में हम केवल 16 खेल में शामिल होंगे. इनमें आर्चरी, एथलेटिक्स, हॉकी महिला, कुश्ती, हैंडबॉल, बीच हैंडबॉल, लॉनबॉल, वुशु, बॉक्सिंग, स्क्वॉश, साइकिलिंग, मॉर्डन पेंटाथलन, ट्राइथलन, जूडो, स्विमिंग और योगा शामिल हैं. इनमें स्विमिंग, ट्राइथलन, योगा और जूडो को टोकन खेल के रूप में जगह दी गयी है.

पदकों के मामले में पिछड़ता गया झारखंड

नेशनल गेम्स में झारखंड के खेल के साथ खिलाड़ी भी पिछड़ते चले गये. रांची में 2011 में हुए 34वें नेशनल गेम्स में झारखंड के खिलाड़ियों ने 33 स्वर्ण, 26 रजत और 37 कांस्य समेत कुल 96 पदक जीते थे. इसके बाद 35वें नेशनल गेम्स में झारखंड के पदकों की कुल संख्या 23 रह गयी. केरल में हुए 35वें राष्ट्रीय खेलों में हमारे खिलाड़ियों ने मात्र आठ स्वर्ण, तीन रजत और 12 कांस्य पदक जीते. इसके बाद गुजरात में हुए 36वें नेशनल गेम्स में सिर्फ 16 खेलों में झारखंड की भागीदारी रही, जिसमें कुल 13 पदक मिले. इसके बाद गोवा में हुए 37वें नेशनल गेम्स का आयोजन हुआ. इनमें झारखंड के एथलीट 26 खेलों में शामिल हुए और कुल 25 पदक जीते. इन 25 पदकों में छह स्वर्ण, पांच रजत और 14 कांस्य पदक शामिल हैं.

वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर, लेकिन अभ्यास की कमी

झारखंड ओलिंपिक संघ (जेओए) के महासचिव मधुकांत पाठक ने बताया कि हमारे पास विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर है, लेकिन खिलाड़ियों को अभ्यास का मौका नहीं मिलता है. इसके अलावा लंबे समय तक कोचिंग कैंप की कमी से भी हमारे खिलाड़ी जूझते हैं. इक्विपमेंट के साथ कोच की कमी के कारण भी ऐसा होता है. अब ऐसी स्थिति में खिलाड़ी कहां से तैयार होंगे. वहीं, दूसरे राज्य पूरे वर्ष अपने एथलीटों को नेशनल गेम्स की तैयारी करवाते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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