लॉकडाउन के दौरान 40% लोगों ने लिया कर्ज

अमेरिका की जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की मदद से गैर सरकारी संस्था इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी (आइएसइपी) ने लॉकडाउन के दौरान झारखंड के लोगों को हुई सामाजिक और आर्थिक परेशानी पर एक सर्वे कराया है

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 21, 2020 12:54 AM
an image

मनोज सिंह, रांची : अमेरिका की जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की मदद से गैर सरकारी संस्था इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी (आइएसइपी) ने लॉकडाउन के दौरान झारखंड के लोगों को हुई सामाजिक और आर्थिक परेशानी पर एक सर्वे कराया है. झारखंड में कार्यरत उक्त संस्था ने सभी जिलों के करीब 900 लोगों के दूरभाष आधारित सैंपल सर्वे में पाया कि लॉकडाउन के दौरान करीब 40 फीसदी लोगों को दूसरों से आर्थिक मदद लेनी पड़ी. करीब 60 फीसदी लोगों का या तो काम छूट गया या काम की अवधि कम हो गयी. इनमें 41 फीसदी दैनिक मजदूर तथा करीब 24 फीसदी किसान थे. इन मजदूरों व किसानों में से 54 फीसदी लोग जनजातीय समुदाय के थे.

संस्था के अनुसार झारखंड में करीब 19.40 लाख दैनिक मजदूर काम करते हैं. सर्वे के दौरान लोगों से समय-समय पर जारी होने वाले साफ-सफाई के दिशा-निर्देशों के पालन के संबंध में भी पूछा गया. इसमें पाया गया कि मात्र छह फीसदी लोग ही दिन में कई बार हाथ धोते थे. सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, लॉक डाउन के दौरान मात्र तीन फीसदी लोगों को ही भोजन का संकट हुआ. करीब 85 फीसदी लोगों ने बताया कि उन्हें सरकारी सहायता से भोजन उपलब्ध हुआ. वहीं 54 फीसदी लोगों ने सरकार से आर्थिक सहायता मिलने की बात भी कही.

डीएमएफटी राशि उपयोग की अनुशंसा : आइएसइपी संस्था ने सलाह दी है कि झारखंड में लोगों को जल्द रोजगार देने के लिए डीएमएफटी फंड का उपयोग करना चाहिए. ओड़िशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने इसका व्यापक उपयोग किया है. डीएमएफटी की राशि राज्य में पड़ी हुई है. सार्वजनिक स्थानों में स्वच्छता बनाये रखने लिए बुनियादी ढांचा में निवेश की जरूरत है. संस्था ने कहा है कि सरकार द्वारा जारी एडवाइजरी का पालन कराने की पहल करनी चाहिए.

करीब 60 प्रतिशत लोगों के पास काम का संकट

जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉहान्सेस उरपेल्लेन की देखरेख में झारखंड में यह अध्ययन कराया गया. यहां आइएसइपी के सहयोग से संस्था कई सेक्टर में काम कर रही है. सर्वे का मकसद लॉकडाउन के बाद के असर पर अध्ययन कर स्थिति बताना था.

वगीशा नंदन, प्रोग्राम एसोसिएट , आइएसइपी-जॉन्स हॉपकिंस

Post by : pritish Sahay

Exit mobile version