14 जिलों की पुलिस ने नहीं भेजा सीसीए का प्रस्ताव

रांची : वर्ष 2014 में विभिन्न जिलों की पुलिस ने 71 मामलों के आरोपियों के खिलाफ क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) के तहत कार्रवाई की. आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ नौ जिलों की पुलिस ने ही अपराधियों पर सीसीए लगाने का प्रस्ताव भेजा, जबकि 14 जिलों की पुलिस ने अपराधियों के खिलाफ यह कार्रवाई नहीं की. वहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 22, 2015 6:41 AM
रांची : वर्ष 2014 में विभिन्न जिलों की पुलिस ने 71 मामलों के आरोपियों के खिलाफ क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) के तहत कार्रवाई की. आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ नौ जिलों की पुलिस ने ही अपराधियों पर सीसीए लगाने का प्रस्ताव भेजा, जबकि 14 जिलों की पुलिस ने अपराधियों के खिलाफ यह कार्रवाई नहीं की. वहीं किसी भी जिले की पुलिस ने नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट (एनएसए) के तहत किसी अपराधी के खिलाफ कार्रवाईनहीं की.
उल्लेखनीय है कि पुलिस मुख्यालय और सीआइडी की ओर से जिलों के एसपी को लगातार यह निर्देश दिये जाते रहे हैं कि अपराधियों के खिलाफ सीसीए या एनएसए के तहत कार्रवाई की जाये, ताकि अपराधियों को ज्यादा वक्त तक जेल में रखा जा सके.
समाज के सरोकार से जुड़ते ही सफलता मिलेगी
ज्योति भ्रमर तुबिद
बस एक मिस्डकॉल और आप देश के एक महत्वपूर्ण राजनीतिक दल के सदस्य हो सकते हैं. सोच और विजन के स्तर पर यह एक नई पहल है. इससे आप देश के विकास में सीधे योगदान देनेवाली पार्टी से जुड़ जाते हैं. मेरा यह विचार विचारधारा के स्तर पर और जमीनी सच्चाई के स्तर पर इस सोच को परखने और अपने अनुभवों को आप सब के बीच लाने की कोशिश है.
कोई भी राजनीतिक दल अपने उद्देश्य में समाज सेवा को ही केन्द्रित रखता है. जिस तरह सामाजिक संगठन, स्वयंसेवी संस्थाएं, सरकार और सरकार के विभिन्न तंत्र अपने अंतिम उद्देश्य समाज सेवा और राष्ट्र के विकास को अपना ध्येय बनाते है ठीक उसी तरह एक राजनीतिक दल भी समाज सेवा के माध्यम से समाज और राष्ट्र के विकास के लिए कार्य करता है. याद रहे, हम अपने उद्देश्य को लेकर भ्रमित नहीं है, तो हमारे कार्य सही दिशा में होंगे भले ही इसमें समय कुछ अधिक लगे.
शहरी क्षेत्रों में सदस्य होना और ग्रामीण क्षेत्रों में सदस्य होना दो अलग-अलग विषय है. ग्रामीण क्षेत्रों में अपनापन और भावना बहुत महत्वपूर्ण है. मैंने यह देखा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में यदि नेतृत्व के प्रति संदेह नहीं है. यदि वे उसे अपना समझते हैं और उसके साथ अपने आप को जोड़ने का फैसला करते हैं तो यकीन मानिए कि यह संबंध काफी लम्बे समय तक चलने वाला है. राज्य में ऐसे कई गांव है, जहां आज भी प्रशासन के लोग स्वयंसेवी और सामाजिक संस्थाओं के लोग व राजनीतिक दल अपने कार्यों को लेकर नहीं पहुंच पाये हैं.
ऐसे में सारी कवायद एक सीमा तक जाकर रूक जाती है. मैंने चाईबासा जिले के एक गांव में एक आवासीय विद्यालय देखा. वहां 700 से अधिक बच्चें 2 किमी से अधिक पैदल चलकर अपनी पानी की जरूरत पूरा करते हैं, और फिर विद्यालय में आकर पढ़ाई करते हैं. मैंने उस विद्यालय के लिए एक डीप बोरिंग करवाया. इसके बाद उस गांव के लोगों के साथ मेरा जुड़ाव स्वत: बन गया और उन्हें सदस्यता के लिए आग्रह नहीं करना पड़ा.
यहां मैं केवल अपने दल की बात नहीं बल्कि किसी भी ऐसे दल जो समाज की सेवा करना चाहते हैं, से यह कहना चाहता हूं कि ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े शोर की जरूरत नहीं सहजता से उनकी जरूरतों से खुद को जोड़ने की जरूरत है, उनका विश्वास हासिल करने की जरूरत है.
फिर चाहे कोई भी अभियान हो, वह सफल हो जाता है. कभी-कभी मुङो लगता है कि प्रशासन के लम्बे अनुभवों से बाहर आकर जनता के बीच जुड़ने की कवायद में चुनाव में हार-जीत महत्वपूर्ण नहीं होता. बस अपनी जिजीविषा को समाज के लिए समर्पित होने का उद्देश्य ही मुङो आगे बढ़ने तथा अपने प्रयासों को हमेशा पूर्ण करने की चाहत बनाये रखेगा.
(लेखक पूर्व आइएएस अधिकारी हैं और वर्तमान में भाजपा के सदस्य हैं.)

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