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शिक्षा व्यवस्था में लानी होगी एकरूपता
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए महत्वपूर्ण कदम रंजना कुमारी एक अप्रैल, 2010 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीइ) को राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया एवं राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की कि वे शिक्षा के जरिए देश को मजबूत बनायें. […]
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए महत्वपूर्ण कदम
रंजना कुमारी
एक अप्रैल, 2010 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीइ) को राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया एवं राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की कि वे शिक्षा के जरिए देश को मजबूत बनायें. इस कानून के अंतर्गत कक्षा आठवीं तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराने का प्रावधान है. यह सर्वविदित है.
वर्तमान समय में झारखंड सरकार द्वारा कुल संचालित विद्यालय 42247 है. इसमें शिक्षा विभाग द्वारा 39009, कल्याण विभाग द्वारा 143, स्थानीय समिति द्वारा 177, वित्त प्रदत्त निजी विद्यालय द्वारा 966 एवं वित्त विहीन निजी विद्यालय द्वारा 1158 विद्यालय संचालित हैं. कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय द्वारा 203 विद्यालय संचालित हैं. (स्नेत डीआइएसइ)
जनजातीय कल्याण विभाग द्वारा राज्य में संचालित कुल विद्यालयों की संख्या 15 है जिसमें एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय चार, आश्रम विद्यालय दो, आदिम जनजातीय आवासीय विद्यालय नौ हैं.
कल्याण विभाग के अनुसार कुल 130 विद्यालय संचालित हैं जो अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) एवं अल्पसंख्यक (माइनोरिटी) के बच्चों के लिए हैं. भारत सरकार के श्रम मंत्रलय द्वारा राज्य में कुल 232 विद्यालय संचालित हैं जिसमें बच्चों की संख्या 11,600 है. इन सबके अतिरिक्त राज्य में निजी विद्यालय जो शिक्षा के अधिकार (आरटीइ) के मानकों को पूरा करते हों, के संबंध में पूर्ण जानकारी नहीं है.
साथ ही विभिन्न विभागों द्वारा संचालित विद्यालयों में अलग-अलग मानक तय हैं. भौतिक संसाधन, मानव संसाधन, शिक्षक गुणवत्ता, शिक्षक की नियुक्ति की प्रक्रिया, शिक्षकों का वेतन अलग-अलग है.
या यूं कहें कि प्रत्येक बच्चे पर इकाई व्यय अलग-अलग विभागों के विद्यालयों में अलग-अलग है. ऐसी स्थिति में विद्यालयों में शिक्षण, पठन-पाठन सामग्री, मूल्यांकन की गुणवत्ता की जांच करना एक चुनौती भरा कार्य है. वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 19 मई, 2015 को आदेश दिया कि कल्याण विभाग एवं समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों का संचालन शिक्षा विभाग करेगा (समाचार पत्र के माध्यम से ज्ञात हुआ). यह काफी सराहनीय कदम है. विभागों में सामंजस्य स्थापित कर ही किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है.
श्रम विभाग द्वारा संचालित विद्यालय को भी इस अंब्रेला में लाने की आवश्यकता है. इससे बच्चों का ट्रैकिंग एवं उनके विकास को बेहतर ढंग से आंका जा सकेगा. वर्तमान समय में कहीं-कहीं एक ही चहारदीवारी के अंतर्गत अलग-अलग विभागों के विद्यालय संचालित किये जा रहे हैं, जिनकी कार्य प्रणाली एक-दूसरे से काफी भिन्न है.
इस तरह के निर्णय से शिक्षा की व्यवस्था में एकरूपता आयेगी. साथ ही संचालित शिक्षा व्यवस्था, विभाग केंद्रित न होकर बाल केंद्रित हो पायेगी, जो बच्चे के सही विकास एवं शिक्षा के अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा.
इसके साथ ही हमारी शिक्षा बच्चों की ट्रैफिकिंग रोकने में मददगार हो इसके लिए सुदूर क्षेत्र (नक्सल प्रभावित क्षेत्र) के बच्चों के लिए प्रखंड स्तर पर अधिक से अधिक आवासीय व्यवस्था उपलब्ध करायी जाये एवं उन्हें पास के औपचारिक विद्यालय में नामांकित किये जाने संबंधित योजनाओं का प्रावधान हो. इससे सुरक्षित वातावरण में रहकर बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें.
गुणवत्ता को बढ़ाने में अनुश्रवण, प्रशिक्षण, सामुदायिक मोबिलाइजेशन आदि में जमीनी स्तर पर कार्यरत सामाजिक संस्थाओं की भी सही मायने में भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.
लेखिका झारखंड राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य हैं
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