पानी के उपयोग के लिए बनेगा कानून : उमा भारती
रांची : जल संसाधन, नदी विकास व गंगा सफाई की मंत्री उमा भारती ने कहा कि पर्यावरण प्रदूषित करने में इतने प्रकार के लोग लगे हैं, जिन्हें रोकने के लिए साहसपूर्ण रणनीति की जरूरत है. केंद्र सरकार एक ऐसा कानून लाने जा रही है, जिससे जरूरत के हिसाब से पानी का उपयोग सुनिश्चित होगा. किस […]
रांची : जल संसाधन, नदी विकास व गंगा सफाई की मंत्री उमा भारती ने कहा कि पर्यावरण प्रदूषित करने में इतने प्रकार के लोग लगे हैं, जिन्हें रोकने के लिए साहसपूर्ण रणनीति की जरूरत है. केंद्र सरकार एक ऐसा कानून लाने जा रही है, जिससे जरूरत के हिसाब से पानी का उपयोग सुनिश्चित होगा. किस उद्योग को ट्रीटेड वाटर (पुन: साफ किया पानी) चाहिए और किसको अन-ट्रिटेड वाटर (नदी का जल), यह तय होगा.
उमा भारती शुक्रवार को नामकुम के सिदरौल में पर्यावरण संरक्षण में लोक संगठनों की भूमिका विषय पर आयोजित सम्मेलन का उदघाटन कर बोल रही थीं. कार्यक्रम का आयोजन पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत संस्था युगांतर भारती की ओर से किया गया था.
अगली पीढ़ी की चिंता करनी होगी : उमा भारती ने कहा : तात्कालिक मुद्दों को छोड़ कर हमें अपने बाद की धरती, हवा, पानी और रोशनी सहित अगली पीढ़ी की चिंता करनी होगी. प्राकृतिक संसाधनों का दोहन व इनका प्रदूषण करते जाना और यह सोचना कि अरे छोड़ो बाद में देखा जायेगा..नहीं चलेगा. देश भर के वैज्ञानिकों व पर्यावरणविदों के विचार से मैं सहमत हूं. धरती, हवा व पानी को लगातार प्रदूषित करते हुए हम सामूहिक आत्महत्या की ओर बढ़ रहे हैं.
गंगा सफाई का काम तुरंत दिखनेवाला नहीं : उन्होंने कहा : गंगा सफाई ऐसा काम है, जो तुरंत दिखनेवाला नहीं. मीडिया व आम लोग भी इस संबंध में सवाल पूछते हैं. नदी जोड़ो कार्यक्रम व जल संसाधन का काम तो दिखता है, पर गंगा सफाई का काम नहीं दिखता. इस कारण इस काम का चुनौतीपूर्ण व कठिन होना है. प्रधानमंत्री मंत्रियों की परफॉर्मेस ऑडिट करते हैं.
मैं उनसे पूछती हूं कि क्या लगता है कि मैं काम कर रही हूं? प्रधानमंत्री का जवाब होता है कि उन्हें पता है कि यह काम चुनौतीपूर्ण है. उन्होंने कहा कि गंगा या दूसरी नदियों की सफाई सामाजिक व लोक आचरण का भी प्रश्न है. हम नदियों की पूजा भी करते हैं और उन्हें प्रदूषित भी. हम खुले में प्लास्टिक, पॉलीथीन व पॉलिएस्टर के कपड़े फेंक रहे हैं. ऐसा करना नदी हत्या व गो हत्या के समान है. प्लास्टिक से नदी दम तोड़ रही है, वहीं प्लास्टिक खाने से गायों के पेट फूल रहे हैं, उनमें विष भर रहा है.
सिख समुदाय से लें सीख
उमा भारती ने कहा कि हम हिंदू अपने आस्था के स्थलों को भी साफ-सुथरा नहीं रख सकते. सिख समुदाय से यह सीखा जा सकता है. गुरुद्वारे में बड़े-बड़े अफसर व उनकी पत्नियां भी झाड़ू लगाते हैं. उन्होंने कहा कि गंगा की सफाई के पहले चरण का काम दो वर्ष बाद दिखेगा. आठ माह हो चुका है. गंगा सफाई में गंगा के साथ-साथ इसकी सहायक नदियों की भी सफाई होनी है.
गंगा में 764 उद्योग, 118 नगर निकाय व 1619 गांवों का गंदा पानी जा रहा है. झारखंड में दामोदर को कोयला व पावर (बिजली) वाले गंदा कर रहे हैं. वह गंदा करें और सरकार साफ करे, यह नहीं चलेगा. सभ्यताएं नदियांतलाश कर बसती थी. नदियों का सम्मान रती थी. अब हम नदी से साफ पानी लेते है और उसमें गंदा पानी छोड़ते हैं.
लगायेंगे कैचमेंट एरिया का पता
उन्होंने कहा : हम गंगा की सफाई के साथ-साथ नदियों के कैचमेंट एरिया का भी पता लगा रहे हैं. जीआइएस सर्वे होगा कि नदी की कैचमेंट एरिया (जमीन) कितनी है, संबंधित नदी के पानी की प्रोपर्टी (गुण या खासियत) क्या है. फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीटय़ूट, देहरादून नदियों की बायोडायवर्सिटी (जैव विविधता) तय करेगा. इन सबके बाद हम नदियों के किनारे वहां के अनुकूल पेड़-पौधे लगायेंगे. संबंधित नदी के पानी व आबो-हवा के अनुकूल इसमें जीव-जंतुओं का भी विकास किया जायेगा.
गंगा सफाई के क्रम में सबसे बड़ा खर्च उद्योगों व शहरों के गंदे पानी के नालों पर होना है. नदी जोड़ो अभियान पर भी कई पर्यावरणविद सवाल उठाते हैं. पर सरकार ने तय किया है कि ऐसा करते वक्त नदियों की जैव विविधता व जल-जीवन को बिगड़ने नहीं दिया जायेगा. नेशनल इंवायरमेंटल इंजीनियरिंग एंड रिसर्च इंस्टीटय़ूट (नीरी), नागपुर इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट देगा. पर यह साफ है कि गंगा सफाई का संपूर्ण कार्य समाज व सरकार को मिल कर करना होगा.