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भाजपा का अंतर्कलह हुआ उजागर

पार्टी के बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद चंद्रशेखर अग्रवाल ने जीत दर्ज की रांची : नगर निकाय चुनाव में भाजपा का अंतर्कलह उभर कर सामने आया. भाजपा समर्थित एक भी मेयर और अध्यक्ष पद का प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. प्रत्याशी चयन को लेकर भी पार्टी के अंदर पहले से ही ऊहापोह की स्थिति […]

पार्टी के बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद चंद्रशेखर अग्रवाल ने जीत दर्ज की
रांची : नगर निकाय चुनाव में भाजपा का अंतर्कलह उभर कर सामने आया. भाजपा समर्थित एक भी मेयर और अध्यक्ष पद का प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. प्रत्याशी चयन को लेकर भी पार्टी के अंदर पहले से ही ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी. वैसे भी नगर निकाय चुनाव दलगत आधार पर नहीं होता है. पार्टियों का मौन समर्थन उम्मीदवारों को मिलता है.
इसके बावजूद आगे बढ़ कर भाजपा ने नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन समर्थित उम्मीदवारों की घोषणा की. जिस कारण पार्टी को फजीहत भी उठानी पड़ी. दलगत आधार पर चुनाव न होने और भाजपा द्वारा प्रत्याशी घोषित किये जाने पर चुनाव आयोग ने पार्टी को नोटिस जारी कर दिया.
चुनाव आयोग जाकर पार्टी को स्पष्टीकरण भी देना पड़ा. फजीहत से बचने के लिए पार्टी आयोग के समक्ष मुकर गयी और कह दिया कि पार्टी की ओर से समर्थित उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की गयी है. इन सब मामलों में पार्टी में कहीं तालमेल नहीं दिखा. मुख्यमंत्री ने अपने आप को चुनाव से अलग कर लिया था.
पार्टी को आयोग से राहत तो मिल गयी, लेकिन धनबाद में पार्टी के मेयर पद के समर्थित उम्मीदवार प्रदीप संथालिया ने नामांकन दाखिल करने के बाद चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर पार्टी के अंदर खलबली मचा दी. श्री संथालिया ने खुला पत्र लिख कर कार्यकर्ताओं पर गंभीर आरोप भी लगाये. इससे कार्यकर्ता काफी दुखी भी हुए. डैमेज कंट्रोल करने को लेकर पार्टी की ओर से कोई नेता सामने भी नहीं आया.
मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले भाजपा कार्यसमिति के सदस्य चंद्रशेखर अग्रवाल के चुनाव में खड़ा होने से पार्टी कार्यकर्ताओं में पहले से ही दुविधा की स्थिति बनी हुई थी.
हालांकि मुख्यमंत्री ने चंद्रशेखर अग्रवाल को लेकर कभी स्थिति स्पष्ट नहीं की. उनकी ओर से न तो संथालिया और नहीं अग्रवाल को समर्थन दिया गया. संथालिया के चुनाव में बैठ जाने के बाद चंद्रशेखर अग्रवाल को उम्मीद थी कि कार्यकर्ता होने के नाते पार्टी का उन्हें साथ मिलेगा, पर पार्टी ने पूरे चुनाव से ही पल्ला झाड़ लिया. पहला ऐसा मौका था कि सत्ताधारी पार्टी का कोई उम्मीदवार मेयर चुनाव में नहीं था.
अग्रवाल को अकेले मैदान में छोड़ दिया गया. सूत्रों के मुताबिक पार्टी के कई नेता नहीं चाहते थे कि चंद्रशेखर अग्रवाल चुनाव जीतें. इसके लिए प्रयास भी किया गया. अग्रवाल के बहाने मुख्यमंत्री रघुवर दास पर भी निशाना साधा जा रहा था.
पार्टी के बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद अग्रवाल ने जीत दर्ज की. कहा जा रहा है कि अग्रवाल की जीत से मुख्यमंत्री रघुवर दास की स्थिति और मजबूत हो गयी है. पार्टी के जानकार कहते हैं कि भाजपा की राजनीति अब सत्ता के इर्दगिर्द ही घूमेगी.

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