बेकार पड़ी हैं 266 करोड़ की सरकारी संपत्ति

अस्पताल भवन, समाहरणालय, कॉलेज आदि बन तो गये, लेकिन उपयोग नहीं हो रहा, कुछ अधूरे पड़े हैं झारखंड सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर विकास के लिए अस्पताल, भवन, पुल-पुलिया, पंचायत भवन या अन्य भवन बनाती है, लेकिन थोड़ी-थोड़ी कमियों के कारण इनका उपयोग नहीं हो पाता. सरकार का पैसा फंस जाता है. इंफ्रास्ट्रर तैयार हैं, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 17, 2015 5:46 AM
अस्पताल भवन, समाहरणालय, कॉलेज आदि बन तो गये, लेकिन उपयोग नहीं हो रहा, कुछ अधूरे पड़े हैं
झारखंड सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर विकास के लिए अस्पताल, भवन, पुल-पुलिया, पंचायत भवन या अन्य भवन बनाती है, लेकिन थोड़ी-थोड़ी कमियों के कारण इनका उपयोग नहीं हो पाता. सरकार का पैसा फंस जाता है. इंफ्रास्ट्रर तैयार हैं, लेकिन उपयोग नहीं होने के कारण धीरे-धीरे ये खराब होने लगते हैं. एक उदाहरण ही काफी है.
रांची में 143 करोड़ की लागत से सदर अस्पताल तीन साल से बन कर पड़ा है. मरीज इलाज के लिए दक्षिण के राज्यों में जा रहे हैं. कहीं पुल बन कर तैयार है, लेकिन एप्रोच रोड नहीं है. करोड़ों रुपये के भवन तो बन जा रहे हैं, लेकिन यों ही पड़े हुए हैं. यह पैसे की बरबादी है. जिन उद्देश्यों के लिए ये बनाये गये, वे पूरे नहीं हो पाये. कहीं प्लानिंग में गड़बड़ी, तो कहीं लापरवाही के कारण सरकार के करोड़ों रुपये फंस गये हैं.
रांची में बेकार पड़े 143 करोड़ के सदर अस्पताल के नये भवन
रांची : झारखंड में विकास पर सरकार ने जितनी राशि खर्च की है, उसमें से लगभग 266 करोड़ से अधिक रुपये की लागत से बने भवन, पुल-पुलिया, अस्पताल या अन्य सरकारी भवन बिना उपयोग के पड़े हुए हैं. यानी अभी तक ये डेड एसेट्स हैं. यह आंकड़ा राज्य के सिर्फ 19 जिलों का है.
इन जिलों में भी सिर्फ प्रमुख योजनाओं का ही उल्लेख किया गया है. अगर सारे डेड एसेट्स का संकलन किया जाये, तो यह राशि और भी ज्यादा होगी. मामूली कारणों से इनका उपयोग नहीं हो पा रहा है. कोई अधिकारी यह देखने नहीं जाता कि इन डेड एसेट्स का उपयोग क्यों नहीं हो पा रहा है.
बनने के बाद उपयोग नहीं होने के कारण यह सरकारी संपत्ति बरबाद हो रही है. इनमें अधिकतर इमारतें हैं. दरअसल राज्य सरकार ने इनका निर्माण विभिन्न क्षेत्रों के विकास और आम जनता को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से शुरू किया था. पर इनमें से कई का निर्माण पूरा नहीं हो पाया. ये अधूरी ही रह गयीं. कुछ का निर्माण तो हुआ, पर इनमें काम प्रारंभ नहीं हो सका
इनमें कुछ इमारतें छोटे-छोटे कार्य के शेष रह जाने के कारण वर्षो से बेकार पड़ी हैं. कोई देखनेवाला नहीं है कि किन आज ये योजनाएं किस हाल में हैं. ऐसे रवैये का कारण विकास और आम जनता को सहूलियत देने का सरकार का उद्देश्य अधूरा रह गया है.
गढ़वा : कृषि कॉलेज बना, पर पढ़ाई नहीं
गढ़वा में 2008-09 में कृषि महाविद्यालय का कार्य प्रारंभ किया गया था. करीब 40 करोड़ की लागत से इसका निर्माण हुआ था. पर छात्रों को अब तक इसमें पढ़ाई की सुविधा नहीं मिल पायी. राज्य में मात्र एक ही कृषि महाविद्यालय है और यहां कृषि के विकास के लिए बड़े पैमाने पर कृषि विशेषज्ञ की आवश्यकता है. अगर यह बन गया होता तो हर साल कई छात्र यहां से पढ़ कर निकलते. इसी प्रकार पाकुड़ में करीब 12 करोड़ की लागत से बना समाहरणालय भवन बेकार पड़ा है. यहां काम नहीं हो रहा. पूर्वी सिंहभूम में करीब 13 करोड़ के भवनों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. ये सभी बन कर तैयार हैं. इसी तरह धनबाद में करीब 22 करोड़ की लागत से बनाये गये भवन बेकार पड़े हैं.
करोड़ों के अस्पताल अधूरा बना कर छोड़ दिये गये
सुदूरवर्ती इलाकों में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार ने कुछ जिलों में अस्पताल व स्वास्थ्य केंद्र बनाने का निर्णय लिया था. काम शुरू हुआ, पर इन अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्र में अब तक किसी मरीज का इलाज नहीं हो पाया. कारण है, अस्पताल बन कर तैयार हैं, पर 10 से 12 वर्ष बीत जाने के बाद भी इन्हें शुरू नहीं किया जा सका. चतरा में 2008 से सदर अस्पताल का निर्माण करीब पांच करोड़ की लागत से शुरू हुआ था. पर अधूरा बना कर छोड़ दिया गया. संवेदक ने ही काम करने से मना कर दिया.
गढ़वा के भवनाथपुर में दो करोड़ की लागत से 2006-07 में स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण शुरू किया गया. भवन तैयार हो गया, पर इसे अब तक अंतिम रूप नहीं दिया गया. इसी तरह गुमला में 50 बेड का अस्पताल वर्षो से ऐसे ही पड़ा है. गोड्डा में मदर चाइल्ड हेल्थ हॉस्पिटल का निर्माण चार करोड़ की लागत से किया गया, पर इसमें अब तक किसी का इलाज नहीं हो पाया. मधुपुर के जगदीशपुर में करीब डेढ़ करोड़ की लागत से बना उपस्वास्थ्य केंद्र बेकार पड़ा है.
कम कीमत पर झारखंड में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए रांची शहर में नये सदर अस्पताल का निर्माण 2012 में किया गया. पर पिछले तीन साल से सदर अस्पताल का भवन बेकार पड़ा है. सरकार अब तक इसका संचालन नहीं शुरू करा पायी है. वजह चाहे जो भी हो, पर लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं.
कहां कौन सी संपत्ति बेकार पड़ी है
जिला संपत्ति का नाम काम शुरू/ बना लागत
रांची सदर अस्पताल 2012 143 करोड़
गढ़वा कृषि महाविद्यालय 2008-09 40 करोड़
स्वास्थ्य केंद्र 2006-07 02 करोड़
कोडरमा जल मीनार 2012 06 करोड़
चतरा हर्बल पार्क 2004-05 04 करोड़
सदर अस्पताल भवन 2008 4.96 करोड़
गुमला चमड़ा कारखाना 1983 1.20 करोड़
50 बेड का अस्पताल 2008 62 लाख
हजारीबाग विज्ञान भवन 2005 67 लाख
परीक्षा भवन 2002 38 लाख
पलामू आइआइटी कॉलेज 2008 1.5 करोड़
सिमडेगा डैम का सुंदरीकरण व हैवी मशीन —- 1 करोड़
लोहरदगा पोस्टमार्टम हाउस —- 2.08 करोड़
स्वास्थ्य सुविधा केंद्र 2007-08 1.63 करोड़
रामगढ़ चेकडैम 2012 11 लाख
शेष सूची पेज 19 पर
कहां कौन सी संपत्ति बेकार पड़ी है
जिला संपत्ति का नाम काम शुरू/ बना लागत
रामगढ़ पुलिया 2003 12 लाख
धनबाद बाघमारा आइटीआइ 2010-11 07 करोड़
रेफरल अस्पताल 2011-12 06 करोड़
मेगा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स 2004-05 05 करोड़
डॉक्टर्स क्वार्टर 2006-07 03 करोड़
तारामंडल 2004-05 80 लाख
बोकारो स्टॉफ क्वार्टर 2012-13 1.46 करोड़
डीसी, एसपी व जज आवास 2002 1.12 करोड़
गिरिडीह प्रशिक्षण केंद्र 2011-12 24 लाख
होमगार्ड कैंप 2009-10 55 लाख
मनोचिकित्सालय 2002 8.5 लाख
देवघर उपस्वास्थ्य केंद्र जगदीशपुर 2012 1.32 करोड़
डॉक्टर क्वार्टर 2013 62 लाख
गोड्डा मदर चाइल्ड हेल्थ हॉस्पिटल —- 04 करोड़
पाकुड़ समाहरणालय भवन 2014 11.80 करोड़
पूर्वी सिंहभूम सराय 2008 06 करोड़
पर्यटन सूचना केंद्र, जमशेदपुर 2009 02 करोड़
18 पंचायत भवन, घाटशिला 2010 04 करोड़
कचरा प्लांट का वाहन —- 70 लाख
प सिंहभूम पोस्टमार्टम हाउस, चक्रधरपुर 2008 10 लाख
लातेहार मशीनें —- 1 करोड़
कुल 266.06 करोड़

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