शहर से नहीं हटे खटाल
हाइकोर्ट ने वर्ष 2006 में ही दिया था निर्देश, फिर भी रांची : राजधानी के खटालों को शहर से बाहर बसाने की योजना पर ग्रहण लग गया है. शहर के खटाल कब शहर से बाहर बसाये जायेंगे, इसकी सही जानकारी न तो राज्य सरकार के पास है और न ही रांची जिला प्रशासन के पास. […]
हाइकोर्ट ने वर्ष 2006 में ही दिया था निर्देश, फिर भी
रांची : राजधानी के खटालों को शहर से बाहर बसाने की योजना पर ग्रहण लग गया है. शहर के खटाल कब शहर से बाहर बसाये जायेंगे, इसकी सही जानकारी न तो राज्य सरकार के पास है और न ही रांची जिला प्रशासन के पास. यह स्थिति तब बनी हुई है, जब झारखंड हाइकोर्ट ने वर्ष 2006 में ही शहर से बाहर सभी खटालों को बसाने का निर्देश दिया था. अब तक इस आदेश का पालन गंभीरता से नहीं किया गया है.
मुआवजा की राशि उपलब्ध करायी, पर नहीं हुआ जमीन अधिग्रहण : झारखंड हाइकोर्ट के आदेश के आलोक में वर्ष 2006 में डेयरी डेवलपमेंट डिपार्टमेंट ने जिला प्रशासन को छह करोड़ की राशि जमीन अधिग्रहण के लिए उपलब्ध करायी.
इसके बाद प्रशासन ने खटाल के लिए झिरी व नामकुम में जमीन चिह्न्ति की. जमीन अधिग्रहण में हुए विवाद के बाद इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. उसके बाद इन खटालों को बसाने को लेकर कोई प्रयास नहीं किया गया.
गली-मोहल्ले से लेकर पॉश कॉलोनी में खुल गये खटाल
रांची शहर में वर्तमान में 800 से अधिक छोटे-बड़े खटाल हैं. अधिकतर स्थलों पर गाय व भैंस को खुले स्थान में ही बांध दिया जाता है. कई बार तो गाय-भैंसों को खुले में छोड़ दिया जाता है.
जिस कारण ये सड़क पर ही बैठे रहते हैं, जिससे ट्रैफिक की समस्या सहित दुर्घटना भी हो जाती है. खुले स्थानों में बंधे होने व गोबर आदि को खुले में फेंक दिये जाने के कारण मक्खी मच्छरों का प्रकोप भी शहर में बढ़ गया है. इस गंदगी से उठते बदबू के कारण लोगों का जीना भी मुहाल है.