।।राजकुमार।।
रांचीः शारदीय नवरात्र शनिवार से शुरू हो रहा है. इस वर्ष प्रतिपदा नहीं मिलने के कारण अमावस्या से ही मां की आराधना शुरू हो जायेगी. शनिवार को प्रतिपदा शाम 6.15 बजे से लग रहा है जो शाम 5.34 बजे तक है. इसके बाद द्वितीया लग जायेगी. वाराणसी पंचांग के अनुसार शनिवार को रात्रिशेष (भोर) 5.07 बजे तक हस्ता नक्षत्र है. भक्त इस समय तक कलश की स्थापना कर मां की आराधना कर सकते है. अभिजीत मुहूर्त दिन के 11.37 से 12.24 बजे तक है. इस मुहूर्त में कलश की स्थापना की जा सकती है. वाराणसी व बंगला पंचांग के अनुसार मां का आगमन डोली व गमन गज पर हो रहा है. आने का फल शुभ नहीं माना जा रहा है. वहीं जाने का फल शुभ माना जा रहा है. मिथिला पंचांग के अनुसार इस बार मां का आगमन घोड़ा व गमन महिष पर है. इसके अनुसार आगमन व गमन दोनों का फल शुभ नहीं माना जा रहा है.
पंडित कपिलदेव मिश्र ने कहा कि मिथिला पंचांग के अनुसार कलश स्थापना प्रात: काल में साढ़े सात बजे से पूर्व हो जाये, तो उत्तम है, अन्यथा नौ बजे के बाद कलश स्थापित करें. शनिवार को कलश स्थापना के साथ ही राजधानी भक्ति में डूबने लगेगी. इस दिन मां के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होगी.
कैसे करें मां की आराधना
नवरात्र में मां की आराधना कलश बैठाकर या बिना कलश बैठाये भी की जा सकती है. काफी संख्या में भक्त इस दिन अपने घरों में कलश स्थापित करते हैं. भक्तों की सुविधा के लिए घरों में सामान्य तरीके से कलश स्थापना के लिए आचार्य जयनारायण पांडेय ने मंत्र बताया है. इस विधि से लोग कलश की स्थापना कर आराधना कर सकते हैं. इन मंत्रों से हर दिन देवी की पूजा की जा सकती है. विसजर्न के दिन यथाशक्ति पंडितों को दक्षिणा दें अथवा मंदिरों में दान कर दें. यजमान आसन पर बैठने से पूर्व मां का ध्यान करें और पूजा वाले स्थल को पवित्र कर लें. पूरब की ओर मुख करके और अपनी पत्नी को दाहिनी ओर बैठा कर मां का ध्यान करें. इसके बाद ऊं केशवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, ऊं माधवाय नम: बोल कर तीन बार आचमन करें. इसके बाद अनामिका अंगुली में अंगूठी अथवा कुश की बनी अंगूठी पहनें. फिर ऊं पुंडरी काक्ष: पुनातु बोल कर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर जल छिड़कें. कलश स्थापन, जौ का रोपण, गणोश, गौरी, शंकर, विष्णु, सूर्य,नवग्रहों व षोडश मातृका का पूजन करें. फिर देवी की आराधना करें.
संकल्प के मंत्र
यजमान हाथ में जल, अक्षत, फूल, फल, पान, कसैली, फल व द्रव्य लेकर संकल्प करें- ऊँ विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्री श्वेत वाराहकल्पे, अष्टाविशंतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणो जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे पराभव नाम संवत्सरे श्रीसूर्ये दक्षिणायने शरद ऋतौ आश्विने मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदि तिथौ शनिवासरे कन्याराशि स्थिते सूर्ये एवं शेषेषु ग्रहेषु यथायथा राशि स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुण विशेषण विष्टियां शुभ पुण्य तिथौ अमुक गोत्र: (अपने गोत्र का नाम) अमुक शर्मा (वर्मा, गुप्त) अहं इह जन्मनि जन्मान्तरे वा श्रीदुर्गा देवी प्रीत्र्यथ सर्वपापक्षय पूर्वक-दीर्घायुर्विपुल धन धान्य पुत्र पौत्रद्यनवच्छिन्न सन्तति वृद्धि: स्थिर लक्ष्मी कीर्तिलाभ – शत्रु पराजय सदभीष्ट सिद्धर्यथ महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपां दुर्गा देवीं पूजनं स्वस्तिवाचनं गणोशाम्बिकयो: पूजनं पञ्चदेव नवग्रह षोडश मात्रदिक पूजनं कलश पूजनं च अहं करिष्ये’- के साथ अर्पण करें.
नवरात्र में कब कौन सी तिथि है
-शारदीय नवरात्र में कब कौन सी तिथि है : डा सुनील बम्र्मन ने कहा कि पांच अक्तूबर को प्रतिपदा सुबह 6.15 से रात्रि शेष 5.34 तक . द्वितीया -शनिवार, पांच अक्तूबर रात्रि शेष 5.35 बजे से रविवार छह अक्तूबर को रात्रि शेष 4.35 बजे तक.
-तृतीया – रविवार छह अक्तूबर रात्रि शेष 4.36 बजे से सोमवार सात अक्तूबर को रात 3.08 बजे तक.
-चतुर्थी- सोमवार सात अक्तूबर रात 3.09 बजे से मंगलवार, आठ अक्तूबर को रात 1.21 बजे तक.
-पंचमी- मंगलवार आठ अक्तूबर रात 1.22 बजे से बुधवार, नौ अक्तूबर को रात 11.18 बजे तक.
-षष्ठी -बुधवार नौ अक्तूबर रात 11.19 बजे से गुरुवार, दस अक्तूबर रात 9.02 बजे तक.
-महासप्तमी -गुरुवार, 10 अक्तूबर रात 9.03 से शुक्रवार, 11 अक्तूबर शाम 6.40 बजे तक.
– महाअष्टमी – शुक्रवार, 11 अक्तूबर शाम 6.41 से शनिवार, 12 अक्तूबर शाम 4.16 बजे तक.
– महानवमी- शनिवार, 12 अक्तूबर शाम 4.17 बजे से रविवार, 13 अक्तूबर दिन के 1.53 बजे तक.
-महादशमी- रविवार, 13 अक्तूबर दिन के 1.54 बजे से सोमवार, 14 अक्तूबर दिन के 11.39 बजे तक.
कलश स्थापना के मंत्र सहित पूजन मंत्र
सर्व प्रथम कलश में जल,गंगाजल,सर्वोषधि,दूर्वा, कुश, पंचपल्लव, सप्तमृतिका,कसैली,पंचर-,द्रव्य डालकर उस पर ढक्कन लगाकर ढक्कन में अक्षत डालकर उस पर नारियल एक कपड़े में लपेटकर रख लें और फिर उसकी पूजा अर्चना कर लें. इसके बाद त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं कतरुमिह जलोदभव. सान्निध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा संधि. इसके बाद भगवती का ध्यान कर लें
ध्यान : ऊं भूर्भव: स्व: त्रिगुणात्मकायै महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती स्वरूपायै जगदंबायै दुर्गादेव्यै नम: श्री दुर्गा ध्यायामि.
आवाहन : आवाहनं समर्पयामि बोल कर आवाहन करें.
आसन : आसनं समर्पयामि बोल कर आसन पर अक्षत, फूल छिड़कें.
पाद्य : पाद्यं समर्पयामि कह कर जल प्रदान करें .
अर्घ्य : अर्घ्य समर्पयामि बोल कर अक्षत, फूल , जलादि दें.
स्नान : स्नानीयं जलं समर्पयामि कह कर स्नान के लिए जल दें.
सुगंधित द्रव्य : सुगंधित द्रव्यं समर्पयामि कह कर इत्र आदि से स्नान करायें.
पंचामृत : पंचामृतं स्नानं समर्पयामि बोल कर पंचामृत से स्नान करायें, पश्चात शुद्ध जल छिड़कें.
वस्त्र : वस्त्रं समर्पयामि बोल कर वस्त्र दें.
अक्षत : अक्षतान समर्पयामि बोल कर अक्षत दें.
चंदन : चंदनं समर्पयामि बोल कर चंदन चढ़ायें.
हरिद्रा (हल्दी) : हरिद्राचरूण समर्पयामि बोल कर हल्दी चूर्ण दें.
गुलाल : कुमकुमं समर्पयामि कह कर गुलाल चढ़ायें.
सिंदूर : सिदूरं समर्पयामि बोल कर सिंदूर चढ़ायें.
काजल : कज्जलं समर्पयामि बोल कर काजल दें.
विल्लपत्र : विल्व पत्रणि समर्पयामि बोल कर बेल पत्र चढ़ायें.
पुष्प : पुष्पमालां समर्पयामि बोल कर फूल एवं फूल-माला पहनायें.
नाना परिमल द्रव्य : नाना परिमल द्रव्यं समर्पयामि कह कर अबीर-गुलाल, हल्दी चूर्णादि द्रव्य दें.
धूप : धूपं आध्रापयामि बोल कर धूप अथवा अगरबत्ती दिखायें.
दीप : दीपं दर्शयामि बोल कर दीपक दिखावें.
नैवेद्य : नैवेद्यं निवेदयामि बोल कर विभिन्न नैवेद्य, ऋतुफलानि समर्पयामि बोल कर विभिन्न फल अर्पित करें.
तांबूल : मुखवासार्थं तांबूलं समर्पयामि बोल कर लौंग, इलायची के साथ पान दें.
दक्षिणा : दक्षिणां समर्पयामि बोल कर दक्षिणा प्रदान करें.
प्रार्थना : दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तो: स्वस्थें : स्मृता मतिमती व शुभां ददासि दारिद्रय दु:ख भय हारिणि का त्वदन्या सर्वोपकार करणाय सदाद्र्रचित्ता.
अखंड दीप प्रज्वलित करने का मंत्र : भो दीप देवी रुपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्य विघ्न कृत्त 1 यावत् कर्म समाप्ति : स्योतता तवत्वं स्थिरो भव 11 .
इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. पाठ के बाद आरती करें. इसके पश्चात पुष्पांजलि कर लें.
प्रथम दिन : शैल पुत्री देव्यै नम: कह कर उपयरुक्त विधि से पूजन करें. हर दिन अलग-अलग देवी के नाम का जप कर इस विधि से पूजा कर सकते हैं.
इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. पाठ के बाद आरती करें. इसके पश्चात पुष्पांजलि कर लें.
क्या-क्या करें
सबसे पहले सभी सामग्री को एकत्रित कर लें. कोशिश करें कि पूजा शुरू होने या करने की अवधि में इधर-उधर न जाना पड़े. कलश स्थापना से पूर्व स्थल का पवित्रीकरण करते हुए पूजा स्थल को पीले सरसों आदि दे कर बांध लें. इसके बाद संकल्प कर लें और बालू, मिट्टी आदि को मिला लें और उसमें जौ का छिड़काव कर दें और हल्के पानी से सींच दें. इससे पूर्व पूजा स्थल पर अल्पना व कलश रखने वाले स्थल पर अष्टदल कमल आदि बना दें. मां की प्रतिमा के सामने कलश स्थापित करें. इससे पूर्व मिट्टी में मिलायी हुई सभी सामग्री को वहां रखें. इसके बाद इस पर कलश रख दें. कलश में ही गोबर से गणोश जी की प्रतिमा बना दें या प्रतीक स्वरूप गोबर चिपका दें और हर दिन इसी की आराधना करें. चाहे तो हर दिन कलश स्थापना के लिए दिये गये मंत्र के साथ देवी की आराधना कर सकते हैं अथवा भगवान का ध्यान कर सभी पुराने फूल आदि को हटा कर भगवान की प्रतिमा को साफ कर ताजे फूल आदि चढ़ा लें और दुर्गासप्तशती का पाठ करें. यदि पूरा पाठ नहीं कर पा रहे हैं, तो सिद्ध कुजिंका स्त्रोत,कवच,अर्गला, कील व नवार्ण मंत्र का एक माला,रात्रि सूक्त तथा एक से चार अध्याय का पाठ करें.इसके बाद देवी सूक्त का पाठ कर लें.इसके बाद नित्य दिन सुबह व शाम में भगवान की आरती कर उन्हें प्रसाद अर्पित करें.
कैसे-कैसे क्या करें
सबसे पहले संकल्प,कलश स्थापना, सभी देवी देवताओं का आवाहन, कलश पर गणोश सहित अन्य देवी देवी देवता का पूजन,भगवती पूजन, अखंड दीप प्रज्जवलित कर लें, पाठ शुरू करने से पूर्व नवार्ण मंत्र का एक माला कर लें.इसके बाद पाठ आरंभ करें.पाठ की समाप्ति के बाद पुन: एक बार नवार्ण मंत्र का एक माला कर लें. संभव हो तो देवी सूक्त का पाठ कर लें,इसके बाद आरती व पुष्पांजलि कर क्षमा प्रार्थना करें. हर दिन इसी क्रिया को दोहरायें .
देवी की आराधना प्रतिमा अथवा फोटो रख कर भी की जा सकती है. प्रतिमा चांदी,कांसा, मिट्टी की हो सकती है. इसके अलावा अखंड दीप जलाने में घी,तील अथवा सरसों तेल का इस्तेमाल कर सकते है.
महिषासुर मर्दिनी का आह्वान आज
रांचीः पितृ पक्ष का समापन शुक्रवार को है. शुक्रवार को प्रात : 6.21 बजे से अमावस्या है, जो शनिवार को 6.14 बजे तक रहेगी. शुक्रवार को प्रात: 6.08 बजे सूर्योदय है. इस दिन सुबह में लोग विभिन्न नदियों व तालाबों पर जाकर अपने पितरों को तर्पण व पिंडदान करेंगे. इस दिन पितृ पक्ष का समापन हो जायेगा. पंडितों व गरीबों को भोजन कराने व दान-पुण्य करने के बाद स्वयं अन्न ग्रहण करेंगे. इस दिन जिन लोगों को अपने माता-पिता की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है, वे जलांजलि देकर तर्पण कर सकते हैं. ऐसा करने से पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर लौट जाते हैं. राजधानी के बड़ा तालाब, जगन्नाथपुर तालाब, स्वर्णरेखा नदी तट, बटम तालाब सहित अन्य तालाबों व नदी तटों पर लोग तर्पण के लिए एकत्रित होते हैं. इस दिन कौआ आदि को भी भोजन कराने का विशेष महत्व है.सुबह में लोग रेडियो से प्रसारित महिषासुर मर्दिनी मां का आह्वान सुनेंगे. इसी दिन से शारदीय नवरात्र शुरू होता है. लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं व मिठाइयां खिलाते हैं. कई लोग घरों में चंडी पाठ भी करते हैं. महालया के दिन से ही मां दुर्गा के आगमन की तैयारी शुरू कर दी जाती है. शाम में राजधानी के विभिन्न बंगला मंडपों में महिषासुरमर्दिनी का मंचन किया जायेगा.
किस दिन किस देवी की आराधना
प्रथम दिन :’शैलपुत्री’ के नाम से आह्वान कर पूजन करें
द्वितीय दिन : ब्रह्मचारी
तृतीय दिन : चंद्रघंटा
चतुर्थ दिन : कुष्मांडा
पंचम दिन :स्कंदमाता
षष्ठ दिन : कात्यायनी
सप्तम दिन : कालरात्रि
अष्टम दिन : महा गौरी
नवम दिन : सिद्धि दात्री की पूजा करे.
नवमी के दिन : हवन और दशमी के दिन – विसजर्न.