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जल नीति बनी, लेकिन लागू नहीं कर पायी राज्य सरकार

राज्य भर में भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन को लेकर सरकार चिंतित जल संसाधनों के विकास को स्थिर और उसका पूरा लाभ सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी रांची : झारखंड सरकार ने जल नीति तो बनायी, पर इसे राज्य भर में लागू नहीं किया जा सका. जल नीति के लागू नहीं होने से राज्य के […]

राज्य भर में भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन को लेकर सरकार चिंतित
जल संसाधनों के विकास को स्थिर और उसका पूरा लाभ सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी
रांची : झारखंड सरकार ने जल नीति तो बनायी, पर इसे राज्य भर में लागू नहीं किया जा सका. जल नीति के लागू नहीं होने से राज्य के नदी बेसिन, जल के उपयोग और आधारभूत संरचना का विकास नहीं हो रहा है. भूगर्भ जल संसाधन का दोहन भी इससे नियमित नहीं हो पा रहा है. इतना ही नहीं राज्य भर में पुनर्भरन (रीचाजिर्ग) को भी प्रभावी नहीं किया जा रहा है. भूगर्भ जल की उपलब्धता और उसके सतत विकास प्रबंधन को भी कारगर नहीं बनाया जा सका है.
राज्य भर में चास, रातू, धनबाद, रामगढ़, गोड्डा, जमशेदपुर सदर, झरिया और कांके में भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन को लेकर सरकार चिंतित भी है. जल की गुणवत्ता और भूगर्भ जल की क्षमता का समय-समय पर पुनर्निधारण भी नहीं हो पा रहा है. वैसे क्षेत्र जहां भूगर्भ जल का स्तर काफी नीचे चला गया है, उसे केंद्र के मार्फत डार्क जोन घोषित कर, वहां जल संरक्षण को उच्च प्राथमिकता देने की बातें भी कही गयी हैं.
पेयजल को प्राथमिकता
जल नीति में प्राथमिकता के आधार पर पानी के उपयोग की बातें कही गयी हैं. इसमें पीने के पानी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है. इसमें लोगों के उपयोग की सभी जरूरतों और घरेलू उपयोग तथा जानवरों के लिए पानी मुहैया कराने को उच्च प्राथमिकता में शामिल किया गया है. पेयजल के बाद सिंचाई के लिए पानी देने, पानी से बिजली का उत्पादन, कृषि आधारित उद्योगों को पानी देने, औद्योगिक विकास तथा अन्य सभी उपयोगी कार्यकलापों को पानी देने पर बल दिया गया है.
क्षेत्र विशेष की आवश्यकता को देखते हुए पेयजल को छोड़ कर अन्य तरह के जल के उपयोग में आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तन करने की बातें भी शामिल की गयी हैं. सरकार की मानें, तो बिजली और सिंचाई का कार्यक्रम एक साथ चलाने का निर्णय भी लिया गया है. जल संसाधनों के विकास को स्थिर और उसका पूरा लाभ सुनिश्चित करना भी राज्य सरकार की जिम्मेदारी के रूप में तय की गयी है.
सूखा प्रबंधन पर जोर
जल नीति में सूखाग्रस्त इलाकों में सूखे की स्थिति से प्रभावी ढंग से निबटने की बातें कही गयी हैं. इसका मुकाबला करने के लिए सूखे का पूर्वानुमान करने और उसका मूल्यांकन करने का उपबंध भी किया गया है.
सूखाग्रस्त क्षत्रों में मिट्टी की नमी से संबंधित संरक्षण कार्य, फार्म, तालाब का निर्माण, केटी वीयर्स बनाने, जल संरक्षण पद्धति, इवापोरेशन (वाष्पीकरण) से होनेवाले नुकसान को पूरा करने जैसे कार्यो को पूरा करने का काम सरकार की तरफ से कराये जाने का उल्लेख किया गया है. सूखाग्रस्त इलाकों में ड्रिप तथा स्प्रींकलर सिंचाई को बढ़ावा देने, सिंचाई परियोजनाओं की तैयारी और दूसरे जगहों से पानी उपलब्ध कराने की बातें कही गयी हैं.
नीति में जल संरक्षण पर विशेष ध्यान
नीति के तहत जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया है. पानी के सभी प्रकार के उपयोग और उसमें सुधार किये जाने पर भी बल दिया गया है. जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक कर, उन्हें शिक्षित करने पर भी जोर दिया गया है. जल संसाधन की योजनाओं (डैम, तालाब, आहर, पोखर) में बारिश के पानी को संचित करने की बातें नीति में कही गयी हैं.
सतही जल को पीने योग्य बनाने और भूगर्भ जल की कमी वाले क्षेत्रों में परियोजनाओं को बढ़ावा देने और उसे क्रियान्वित करने की बातें भी कही गयी हैं. सरकार का मानना है कि ऐसी योजनाओं से भुगर्भ जल का पुनर्भरण भी होगा. जल संसाधनों के संवर्धन के लिए पानी का पुन: उपयोग करने की विधि विकसित करने का जिक्र नीति में है
जल निकायों (तालाब, पोखर आदि) से होनेवाले इवापोरेशन (वाष्पीकरण) को नियंत्रित करने के लिए सरकार की तरफ से प्रयास करने की बातें भी कही गयी हैं. जल संरक्षण के लिए प्राथमिक विद्यालय से ही जल साक्षरता कार्यक्रम शुरू करने की बातों का उल्लेख भी नीति में है.

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