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कभी बाघ मारने के लिए मिलता था इनाम

आज दर्शन दुर्लभ मनोज सिंह रांची : सन 1911 से 1913 के बीच रांची, लोहरदगा, सिमडेगा, गुमला, खूंटी आदि में बाघों का आतंक था. अंग्रेजों ने बाघ मारने वालों के लिए 500 रुपये इनाम की घोषणा की थी. दो वर्षो में 177 लोगों को बाघ ने मार डाला था. अंग्रेजों की इस घोषणा के बाद […]

आज दर्शन दुर्लभ
मनोज सिंह
रांची : सन 1911 से 1913 के बीच रांची, लोहरदगा, सिमडेगा, गुमला, खूंटी आदि में बाघों का आतंक था. अंग्रेजों ने बाघ मारने वालों के लिए 500 रुपये इनाम की घोषणा की थी. दो वर्षो में 177 लोगों को बाघ ने मार डाला था. अंग्रेजों की इस घोषणा के बाद रांची में दो साल के अंदर 34 बाघ मार डाले गये. इसका जिक्र रांची के गजेटियर में भी है. आज स्थिति एकदम विपरीत हो गयी है.
अब बाघ बचाने के लिए पैसे खर्च हो रहे हैं. इसके बाद भी झारखंड के जगंलों में बाघ होने या नहीं होने को लेकर संशय है. वन विभाग दावा करता है कि आज भी पलामू के जंगलों (बेतला टाइगर रिजर्व) में बाघ हैं. फूट प्रिंट दिखते हैं. भारत सरकार करोड़ों रुपये बाघ बचाने के लिए झारखंड सरकार को दे रही है. अब बाघों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है.
15 कर्मियों के जिम्मे 12 हजार वर्ग किमी एरिया : पलामू टाइगर रिजर्व में 21 हजार से अधिक जंगली जानवरों का जिम्मा मात्र 15 सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों पर है. पलामू टाइगर प्रोजेक्ट (बेतला) में वन विभाग के आंकड़े के मुताबिक यहां जानवरों की कुल संख्या 21 हजार 291 है. इसका क्षेत्रफल करीब 12 हजार वर्ग किलोमीटर है. टाइगर रिजर्व (कोर व बफर एरिया) में कुल स्वीकृत पद करीब 175 हैं. इसमें मात्र 15 अधिकारी और कर्मचारी ही हैं.
जानवरों की संख्या भी लगातार घटती रही है. 10 साल में करीब 30 बाघ गायब हो गये. एक भी प्राथमिकी नहीं हुई. अभी विभाग चार बाघ होने का दावा करता है. 2003 में इसकी संख्या 34 के आसपास बतायी जाती है.
सात साल में भारत सरकार ने दिये नौ करोड़ : पिछले दस साल में पलामू टाइगर प्रोजेक्ट में सरकार ने 47 करोड़ रुपये खर्च कर दिये हैं. इस प्रोजेक्ट के लिए राज्य और केंद्र सरकार से राशि मिलती है. अब तक केंद्र ही इस प्रोजेक्ट के लिए नौ करोड़ रुपये दे चुका है.

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