पांच कक्षाएं, शिक्षक एक बीमार पड़े, तो गयी पढ़ाई
मनोज लाल/संजय रांची : चितरकोटा प्राथमिक विद्यालय में कक्षा पांच तक की पढ़ाई होती है. पांचों कक्षाओं में विद्यार्थी हैं. छह से सात कमरे भी हैं, पर विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए एक ही शिक्षक हैं महादेव उरांव. एक ही शिक्षक के भरोसे पूरा विद्यालय चलता है. पहले सारे बच्चे अलग-अलग क्लास रूम में बैठते […]
मनोज लाल/संजय
रांची : चितरकोटा प्राथमिक विद्यालय में कक्षा पांच तक की पढ़ाई होती है. पांचों कक्षाओं में विद्यार्थी हैं. छह से सात कमरे भी हैं, पर विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए एक ही शिक्षक हैं महादेव उरांव. एक ही शिक्षक के भरोसे पूरा विद्यालय चलता है. पहले सारे बच्चे अलग-अलग क्लास रूम में बैठते थे.
शिक्षक को इस क्लास से उस क्लास में दौड़ना पड़ता था. अब उन्होंने सभी बच्चों को दो क्लास रूम में बैठाना शुरू कर दिया है. दोनों क्लास रूम अगल-बगल है. एक क्लास में पढ़ाते हैं, तो दूसरे क्लास रूम में बच्चों का शोर सुन कर तुरंत उसमें चले जाते हैं. इस तरह पढ़ाई कम होती है बच्चों कों संभालने में ही उनका पूरा समय गुजर जाता है.
अगर शिक्षक बीमार पड़े या किसी कारण से छुट्टी लेनी पड़ी, तो स्कूल बंद करने की नौबत आ जाती है. हालांकि शिक्षक कहते हैं कि उन्होंने कभी छुट्टी ली ही नहीं है. इसलिए स्कूल बंद नहीं करना पड़ा. पर बीमार तो कोई भी पड़ सकता है. ऐसे में तो स्कूल में ताला लटक जायेगा.
अंडा-भात तो मिल रहा, पर ज्ञान नहीं : स्कूल में बच्चों की स्थिति से यह पता चला कि उन्हें मिड डे मील में अंडा-भात तो मिल रहा है, लेकिन पर्याप्त ज्ञान नहीं. बच्चों का पूरा समय खेलने-हल्ला करने में ही गुजर जाता है. जैसे ही अंडा-भात का खाने का समय आता है, बच्चे टूट पड़ते हैं. इस तरह उनका ज्यादा ध्यान खाना पर ही रहता है.
कमजोर हो रही है नींव
ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था पर कहते हैं : बच्चों में शिक्षा की नींव कमजोर पड़ रही है. कमजोर नींव से वे कितने ऊपर तक जायेंगे. अगर विद्यालय में पठन-पाठन की पूरी व्यवस्था होती, तो इन बच्चों का भी पठन-पाठन अच्छा होता. वे इसके महत्व को समझते और आगे बढ़ते.
घटते जा रहे हैं विद्यार्थी भी
सबसे अहम बात है कि स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या लगातार घटती जा रही है. फिलहाल विद्यालय में 52 ही विद्यार्थी हैं. पहले 100 के पास इनकी संख्या थी. इनकी उपस्थिति भी कम रह रही है. बुधवार को इनकी उपस्थिति मात्र 33 ही थी.
मजबूरी में भेजते हैं सरकारी स्कूल
ग्रामीणों ने बताया कि यहां मजबूरी में ही लोग सरकारी स्कूल में भेजते हैं. इस पढ़ाई से बच्चों का कुछ नहीं हो सकता है. यहां से पढ़ कर तो ठीक से जोड़-घटाव भी नहीं कर सकेंगे. जिनके पास संसाधन है, वे अपने बच्चों को पंचायत से बाहर निजी स्कूलों में पढ़ने भेज रहे हैं.
खींचतान कर चला रहे स्कूल : शिक्षक
स्कूल के शिक्षक महादेव उरांव का कहना है कि किसी तरह खींचतान कर स्कूल चला रहे हैं. अकेले में ब हुत दिक्कत होती है. एक बार जरूरी मीटिंग में जाना था, तो किसी दूसरे से विद्यालय में उस वक्त रहने का आग्रह करके गये थे. बहुत जरूरी होने पर भी कहीं नहीं जा पाते.