बिकनेवाले हैं राज्य के तीन बड़े उद्योग

तीन कंपनियों की मदद की गुहार हुई बेकार सुनील चौधरी रांची : राज्य के तीन बड़े उद्योग बिकने वाले हैं. चंदनकियारी स्थित इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स लिमिटेड के स्टील प्लांट, सरायकेला-खरसावां जिले के पदमपुर स्थित आधुनिक पावर एंड नेचुरल रिसोर्सेज लिमिटेड के पावर प्लांट और चंदवा स्थित अभिजीत ग्रुप के पावर प्लांट बिकने वाले हैं. तीनों कंपनियों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 13, 2015 2:26 AM
तीन कंपनियों की मदद की गुहार हुई बेकार
सुनील चौधरी
रांची : राज्य के तीन बड़े उद्योग बिकने वाले हैं. चंदनकियारी स्थित इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स लिमिटेड के स्टील प्लांट, सरायकेला-खरसावां जिले के पदमपुर स्थित आधुनिक पावर एंड नेचुरल रिसोर्सेज लिमिटेड के पावर प्लांट और चंदवा स्थित अभिजीत ग्रुप के पावर प्लांट बिकने वाले हैं. तीनों कंपनियों पर कर्ज का दबाव बढ़ता जा रहा है. इसके चलते तीनों कंपनियां नये प्रमोटर देख रही है या कहीं से कोई आर्थिक मदद की तलाश कर रही है. बताया गया कि अपनी-अपनी वित्तीय वजहों के साथ-साथ राज्य और केंद्र सरकार में विभिन्न प्रकार के क्लीयरेंस आदि में विलंब की वजह से भी यह नौबत आयी है. तीनों कंपनियों ने राज्य सरकार से भी मदद की गुहार लगायी है.
आधुनिक को हर माह देना पड़ता है 50 करोड़ का ब्याज: आधुनिक पावर द्वारा 270 मेगावाट की दो यूनिट लगायी गयी है. कुल 540 मेगावाट की क्षमता है, जिसमें एक यूनिट चालू है. 122 मेगावाट बिजली झारखंड ऊर्जा विकास निगम को दी जाती है. कंपनी को हर माह 30 करोड़ रुपये मिलते हैं.
शेष बिजली के लिए भी ऊर्जा विकास निगम के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट हो चुका है. कंपनी ने मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा है कि ऊर्जा विकास निगम शेष बिजली को नहीं ले रहा है, जिसके चलते एक यूनिट को बंद रखना पड़ा रहा है. कंपनी 3.70 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली देने पर पीपीए कर चुकी है. मुख्य सचिव को लिखा गया है कि कंपनी द्वारा 3376 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है, जो वित्तीय संस्थानों द्वारा कर्ज के तौर पर दिया गया है. कंपनी में 10 हजार लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से काम कर रहे हैं. पर ऊर्जा विकास निगम द्वारा बिजली न खरीदे जाने की वजह से भारी घाटा हो रहा है. साथ ही उद्योग विभाग द्वारा सब्सिडी न दिये जाने की बात कही गयी है. कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि हर माह 50 करोड़ रुपये ब्याज के रूप में देने पड़ रहे हैं. जबकि आय केवल 30 करोड़ रुपये ही है. 20 करोड़ रुपये प्रति माह का घाटा हो रहा है.
यह भी वजह बतायी गयी है कि पावर प्लांट के लिए आवंटित कोल ब्लॉक गणेशपुर भी रद्द हो गया है. बाहर से कोयला खरीद कर बिजली बनाने में लागत बढ़ जाती है. इसके चलते वित्तीय संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. वित्तीय दबाव कम करने के लिए कंपनी ने हाल ही में छंटनी भी की है. इसमें 500 से अधिक कर्मचारियों को हटा दिया गया है. सूत्रों ने बताया कि कंपनी को एसबीआइ, आइडीएफसी जैसे संस्थानों ने फायनेंस उपलब्ध कराया है. अब वित्तीय संस्थान ही अपनी राशि वसूलने के लिए दबाव बढ़ा रहे हैं, यहां तक कि नये प्रमोटर की तलाश के लिए भी दबाव बनाया जा रहा है. कंपनी द्वारा मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव को पत्र लिख कर अविलंब मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया है.
हर दिन तीन करोड़ का ब्याज
बोकारो जिले के चंदनकियारी स्थित इलेक्ट्रोस्टील ने 11350 करोड़ रुपये का निवेश कर 1.50 एमटीपीए क्षमता के इंटीग्रेटेड स्टील प्लांट की स्थापना की है. यह राशि भी विभिन्न बैंकों द्वारा फायनेंस कर दी गयी है. कंपनी की कुल प्रस्तावित क्षमता 2.5 एमटीपीए की है. पर 1600 करोड़ रुपये अतिरिक्त राशि बैंकों द्वारा दिये जाने से इनकार कर दिया गया है. यहां भी लगभग नौ हजार लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिला हुआ है. मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बने प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग ग्रुप (पीएमजी) में भी कंपनी ने मदद की गुहार लगायी है. पीएमजी में कंपनी द्वारा कहा गया है कि हर माह 85 करोड़ यानी हर दिन तीन करोड़ रुपये का ब्याज कंपनी को भुगतान करना है. मार्च 2015 से किसी प्रकार की राशि बैंकर्स को नहीं दी गयी है.
बैंकों द्वारा एकाउंट को एनपीए कर दिये जाने की चेतावनी दी गयी है. कंपनी को आवंटित पर्वतपुर कोल ब्लॉक रद्द हो चुका है. कंपनी को आवंटित कोदलीबाद आयरन ओर माइंस का फॉरेस्ट एवं इनवायरमेंट क्लीयरेंस अक्तूबर 2014 से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पास लंबित है. बताया गया कि बैंकर्स द्वारा ही नये प्रमोटर के लिए दबाव दिया गया है.
सूत्रों ने बताया कि टाटा स्टील द्वारा इस प्लांट के अधिग्रहण की बात हुई थी. फिर बाद में मामला नहीं बन सका और टाटा स्टील पीछे हट गयी. अब नये प्रमोटर की तलाश की जा रही है. दूसरी ओर कंपनी ने सरकार से गुहार लगायी है कि यदि केवल 1600 करोड़ रुपये बैंकर्स कर्ज दे दे, तो कंपनी खुद से भी चला सकती है. राज्य सरकार से भी एसएलबीसी से बात करने का अनुरोध किया गया है.
कंपनी को बेचना चाहते हैं बैंकर्स
1740 मेगावाट के एक बड़े पावर प्लांट लगाने की आधारशिला अभिजीत ग्रुप द्वारा वर्ष 2006 में रखी गयी थी. तब किसी को एहसास भी नहीं था कि एक दिन ऐसा होगा जब कंपनी को बेचने की नौबत आ जायेगी. आज वही हुआ, कभी 12 हजार से अधिक लोगों को रोजगार देने वाली कंपनी में काम नहीं हैं. लोग बेरोजगार हो गये हैं. लगभग नौ हजार करोड़ रुपये की लागत से पावर प्लांट की स्थापना शुरू की गयी थी. कई वित्तीय संस्थानों ने इस पावर प्लांट के लिए फायनेंस उपलब्ध कराया था.
पावर प्लांट का 90 फीसदी काम भी पूरा हो चुका था. तब पूरे चंदवा में रौनक थी. इसी दौरान वर्ष 2013-14 में कोयला घोटाला में इस कपंनी का नाम आया. इसी दौरान कंपनी को आवंटित चितरपुर कोल ब्लॉक भी रद्द हो गया. वर्ष 2010 में ही पावर प्लांट पूरा होने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. पर विलंब होते गया और वर्ष 2013 तक 90 फीसदी काम पूरा हुआ. कोलगेट के कारण कंपनी विवादों में घिरती गयी. नतीजा यह हुआ कि वित्तीय संस्थानों ने अतिरिक्त राशि देने से इनकार कर दिया और कंपनी को बेचने का दबाव देने लगी. वर्ष 2014 से कई बड़ी कंपनियां यहां आयी और इसका आकलन किया. कई बार अधिग्रहण की बात उठी, पर नहीं हो सका. स्थिति यह है कि लगभग 12 हजार लोग बेकार हो गये. रांची के मैपल टावर में बना कार्यालय बंद कर दिया गया है.
चंदवा में भी सारे कार्यालय बंद कर दिये गये हैं. तमाम बड़े अधिकारियों ने सैलरी न मिलने की वजह से कंपनी से किनारा कर लिया. दूसरे रोजगार में लगे गये. बच गये तो केवल मजदूर जो आज भी कंपनी खुलने की आस में बैठे हैं. पीएमजी में भी मामला उठा, पर कोई बात नहीं बनी.
कंपनियों की अपनी-अपनी वजह है : उद्योग सचिव हिमानी पांडेय कहती हैं कि कंपनियां बैंकों से ऋण लेकर निवेश करती हैं. बैंकर्स द्वारा राशि वसूलने की कार्रवाई होती है, तब बात बिकने तक की होती है. जहां तक सरकार की बात है तो इसमें सरकार क्या कर सकती है. राज्य सरकार तो यही चाहती है कि कंपनियां यहां चले, ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिले. केंद्र सरकार की पीएमजी खुद इन कंपनियों की मॉनिटरिंग भी कर रही है, पर अपनी-अपनी वजहों से कंपनियों के समक्ष ये नौबत आयी है.

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