वरीय संवाददाता, रांची
हजारीबाग जिले के लैंपस-पैक्स मैनेजरों ने अपनी जेब से धान खरीद पर 8.30 करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया है. उनका कहना है कि यह रकम न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से धान खरीदने पर खर्च की गयी है. अब यह पैसे खाद्य आपूर्ति विभाग से वापस मांगे गये हैं. प्रबंधकों ने लिखित रूप से यह कहा है कि यह पैसे लैंपस-पैक्स को ही उपलब्ध कराया जाये. पर विभाग ने उनसे कहा है कि कृषकवार आंकड़ा दें. बतायें कि किस किसान से उसकी कितनी जमीन का कितना धान खरीदा गया था. अांकड़े उपलब्ध कराने के बाद पैसे किसानों के खाते में भेजे जायेंगे.
इससे पहले हजारीबाग के जिला आपूर्ति पदाधिकारी व जिला सहकारिता पदाधिकारी ने भी खाद्य आपूर्ति विभाग को बताया था कि उनके जिले में किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 61539.93 क्विंटल धान खरीदा गया है. इसकी कुल कीमत 1360 रुपये प्रति क्विंटल की निर्धारित दर से 8.30 करोड़ रुपये होती है. दरअसल बगैर किसी फंड के धान खरीद का कुछ ऐसा ही दावा देवघर, पलामू व गढ़वा जिले के अधिकारियों ने भी किया था. पर बाद में देवघर, गढ़वा व पलामू की बात गलत निकली. अब सिर्फ हजारीबाग जिला ही अपने दावे पर कायम है.
इसकी सत्यता की जांच के लिए खाद्य आपूर्ति विभाग के विशेष सचिव रवि रंजन हजारीबाग गये थे. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में धान खरीद की पुष्टि की है. धान खरीद की घटना यदि सही हुई भी, तो सरकार को 8.30 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. क्योंकि किसानों से खरीदे गये धान से चावल निकाल कर इसे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) को देने की अंतिम तिथि 30 जून को ही समाप्त हो गयी है तथा एफसीआइ ने चावल लेने से इनकार कर दिया है.
गड़बड़ी का रेकॉर्ड पुराना
किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद में गड़बड़ी होती रही है. झूठी खरीद की बात कई बार पुख्ता हुई है. चावल मिल मालिकों के साथ मिल कर जिला सहकारिता तथा जिला आपूर्ति पदाधिकारियों ने खूब अनियमितता की, पर किसी का बाल बांका भी नहीं हुआ. अपवाद छोड़ संबंधित जिले के उपायुक्तों ने भी गड़बड़ी से आंखें फेर ली. चावल मिलों पर भी अभी खरीफ मौसम 2012-13 का करीब 75 करोड़ रुपये बकाया है. इन्होंने धान देकर चावल नहीं दिया. अकेले हजारीबाग के मिलों ने सरकार को 42 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया है.