अवैध रूप से चल रहे क्रशर का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के पास
नयी दिल्ली : झारखंड राज्य में अवैध रूप से चल रहे क्रशर (पत्थर तोड़ना) का मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के पास पहुंच गया है. इस मामले पर 28 अगस्त को सुनवाई होगी. एनजीटी के अध्यक्ष न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार की प्रिंसिपल बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी. प्रिंसिपल बेंच में अध्यक्ष के अलावा […]
लगभग 20 पेज की याचिका में कोर्ट को बताया गया है कि राज्य में किस तरह से अवैध खनन का कारोबार चल रहा है. सरकारी खजाने को चपत लगाया जा रहा है. साथ ही पर्यावरण एवं मानवीय जीवन को गहरा नुकसान पहुंचाया जा रहा है. आवेदन के साथ ही अवैध रूप से तोड़े जा रहे पत्थरों पर प्रभात खबर द्वारा चलाये गये अभियान की कॉपी संलग्न की गयी है.
गौरतलब है कि अवैध रूप से चलाये जा रहे क्रशर पर प्रभात खबर ने अप्रैल माह में अभियान चलाया था, जिसे आधार बनाते हुए यह मामला एनजीटी में पहुंचा है. याचिका में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, झारखंड सरकार, झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वार्डेंन फॉरेस्ट वाइल्ड लाइफ डोरंडा, उपायुक्त हजारीबाग एवं कोडरमा, जिला खनन अधिकारी, हजारीबाग एवं कोडरमा, रूपक सिंह, धन लक्ष्मी स्टोन वर्क्स, श्रीराम स्टोन चिप्स तथा हरियाणा के मेसर्स सी एंड सी कंस्ट्रक्शन कंपनी को प्रतिवादी बनाया गया है. दिल्ली हाइकोर्ट के अधिवक्ता सत्य प्रकाश, ग्राम पोस्ट चलकुसा, जिला हजारीबाग की ओर से दायर की गयी याचिका में बताया गया है कि हजारीबाग और कोडरमा जिले में बड़ी संख्या में माइंस ऑनर और क्रशर ऑनर एक ही हैं.
वह बम-बारूद आता कहां से है. याचिका में कहा गया है कि पत्थर तोड़ने का जो काम करते हैं, उन्हें ‘कनसेंट टू ऑपरेट’ करने की अनुमति दी गयी है, न कि लाइसेंस. जबकि नियम के मुताबिक आवासीय इलाकों के 500 मीटर के दायरे में क्रशर नहीं चलाया जा सकता है. जिन 132 खनन मालिकों की लिस्ट माइनिंग विभाग की ओर से दी गयी है, उन सभी को ‘कनसेंट टू ऑपरेट’ दिया गया है. लेकिन वह कनसेंट ही अवैध है. क्योंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का नियम है कि आवासीय इलाकों में खनन की अनुमति दी ही नहीं जा सकती है, फिर भी राज्य सरकार ने दिया. जिन लोगों ने खनन के लिए आवेदन दिया और जिन्हें कनसेंट नहीं मिला, वह भी माइनिंग कर रहे हैं. आवासीय इलाकों के आसपास स्कूल, कॉलेज, सामुदायिक भवन के अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग है, जिससे लाखों लोग रोज गुजरते हैं. यहां रहनेवाले आवासीय परिसरों में लोगों को अस्थमा, टीबी सहित कइ तरह की गंभीर बीमारी हो रहे हैं. जो माइनिंग किया जा रहा है, उसका मेजरमेंट नहीं होता. 100 फीट से लेकर हजार फीट नीचे तक खनन किया गया है, जिसकी वजह से पानी का स्तर 25 फीट से 400 फीट नीचे तक चला गया. इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह हुआ कि वहां के लोग जो पानी के लिए कुएं पर निर्भर थे, वह भी सूख गया. इससे पूरे पर्यावरणीय परिस्थति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. कोडरमा में आठ से 10 किलोमीटर तक 100 फीट नीचे तक खुदाई कर दी गयी है, जिसके कारण पानी की भयंकर किल्लत इन इलाकों में है. अवैध खनन का नतीजा ही है कि कृषि के आलवा पेयजल का भयंकर संकट है.