जो पत्र होमगार्ड डीजी को दिया गया, वह सिर्फ एक सादा कागज है. उस पर पत्रांक-दिनांक अंकित है. जिस संस्था जागरण समिति के नाम से पत्र दिया गया है, उसका पैड तक का इस्तेमाल नहीं किया गया. पुलिस के कई अधिकारी कहते हैं : विभाग में कई सीनियर अफसर अपने कनीय को डराने और काबू में करने के लिए अज्ञात लोगों से आवेदन डलवाने का काम करते रहे हैं.
एक डीजीपी के कार्यकाल में तो ऐसे आवेदनों की संख्या बहुत बढ़ गयी थी. तब आइजी, डीआइजी, एसपी, डीएसपी पर आरोपों के कई आवेदन पुलिस मुख्यालय आते थे, जिसमें न तो पत्र देनेवाले का पता होता था और न ही उसकी गंभीरता से जांच की जाती थी. आवेदनों में भ्रष्टाचार करने, किसी मामले में किसी एक के पक्ष में काम करने, अपराधियों से सांठगांठ रखने, जमीन कारोबारियों से मिले होने समेत दूसरे तरह की शिकायतें होती थी. शिकायत उन्हीं अफसरों के खिलाफ आती थी, जिससे बड़े अफसर की नहीं पटती थी. फिर फाइल खोल कर जांच कराने के नाम पर संबंधित अफसर को डराने का सिलसिला शुरू होता था. कई बार तो अफसरों से वसूली भी की गयी. तब की शिकायतों पर खुली फाइलें आज भी पुलिस मुख्यालय में बिना जांच कराये पड़ी हुई है.