झारखंड : दवा विक्रेता व कंपाउंडर कर रहे हैं डॉक्टरी
रांची: रांची के दवा दुकानदार व कंपाउंडर डॉक्टर बन गये हैं. इनके पास एमबीबीएस की कोई डिग्री नहीं है, इसके बाद भी ये गंभीर मरीजों का इलाज करते हैं. मरीजों को देनेवाली परची में खुद को जेनरल फिजिशियन लिखते हैं. इसी तरह के एक डॉक्टर हरमू हाउसिंग कॉलोनी में बैठते हैं, जिनका नाम माया उरांव […]

रांची: रांची के दवा दुकानदार व कंपाउंडर डॉक्टर बन गये हैं. इनके पास एमबीबीएस की कोई डिग्री नहीं है, इसके बाद भी ये गंभीर मरीजों का इलाज करते हैं. मरीजों को देनेवाली परची में खुद को जेनरल फिजिशियन लिखते हैं. इसी तरह के एक डॉक्टर हरमू हाउसिंग कॉलोनी में बैठते हैं, जिनका नाम माया उरांव है़.
वह कार्तिक उरांव चौक पर अपने आवास में मरीजों को परामर्श देते हैं. उन्होंने बकायदा बोर्ड भी लगा रखा है, जिसमें खुद को जेनरल फिजिशियन लिखा है. पिछले 25 सालों से अधिक समय से मरीजों को देख रहे हैं. कोकर इंडस्ट्रियल एरिया में भी इसी तरह के एक डॉक्टर बैठते हैं, अपना नाम कभी मो असलम, तो कभी मो अली बताते हैं. उनकी दवा दुकान है़ मरीजों को दवा देते-देते अब वह उनका इलाज भी करने लगे हैं. न्यू मधुकम इलाके में भी ऐसे एक दर्जन से अधिक डॉक्टर अपना निजी क्लिनिक चलाते हैं.
औषधि निरीक्षकों की नहीं पड़ रही नजर
बिना डिग्रीवाले डॉक्टर धड़ल्ले से मरीजों का इलाज कर रहे हैं, लेकिन इन पर औषधि निरीक्षकों की नजर नहीं पड़ती है. औषधि निरीक्षक सिर्फ दवा दुकान की जांच कर खानापूर्ति करते हैं. जानकारों की माने तो बिना डिग्री के चिकित्सक मरीजों का इलाज करते हैं, इसकी जानकारी औषधि निरीक्षकों को है, लेकिन कोई कार्रवाई करना नहीं चाहता.
50 से 100 रुपये रखी है फीस
इन फरजी डॉक्टरों की फीस 50 से 100 रुपये तक है. माया उरांव की फीस 50 रुपये है, तो असलम हर मरीज से 100 रुपये लेते हैं. इनके पास बड़े-बड़े लोग भी आते हैं. हालांकि कम फीस होने के कारण गरीब मरीजों की अधिक भीड़ लगी रहती है. इन फरजी डॉक्टरों के पास दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों (एमआर) की भीड़ भी लगी रहती है. दवा व गिफ्ट भी देते हैं.
‘‘ अभी तो कोई शिकायत नहीं आयी है. जनता ने ही उसे डॉक्टर बना दिया है. अगर कोई शिकायत आयेगी, तो उन पर जांच कर कार्रवाई की जायेगी.
डॉ गोपाल श्रीवास्तव, सिविल सर्जन